सोमवार, 17 जुलाई 2017
बुधवार, 28 जून 2017
अद्भुत, अविस्मरणीय, महाकाल की कृपा से हुई एक मुलाकात का संक्षिप्त संस्मरण
बापू का हस्त लिखित असली पत्र, प्रथम राष्ट्रपति
राजेंद्र बाबू के लिखे पत्र, सुभाष बाबू की उज्जैन में ली गई दुर्लभ तस्वीर ये
सारी चीजें एक साथ देखने को मिल जाएं तो आपका बल्लियों उछल जाना लाजिमी है।
बापू (महात्मा गांधी) द्वारा लिखे गए पत्र की मूल प्रति |
मेरे साथ भी आज यही हुआ। जब एक बड़े सरकारी अधिकारी के कैबिन में एक अनौपचारिक मुलाकात के लिए घुसा तो हाथ में अपनी दो किताबें थी। लेखक हूं, पत्रकार हूं, ये हूं वो हूं का बहुत सारा पानी चढ़ा हुआ था। थोड़ी देर ही हुई कि सारा पानी उतर गया। बैठने के बाद एक किताब देखकर हैरान रह गया।
भगत सिंह की जेल डायरी, ये मेरे पिता की किताबों के कलेक्शन में बहुत सालों से है। जिस शख्स से मिलने गया था जानता भी नहीं था कि वो इसके रचयिता हैं। यही नहीं अब तक करीब साठ किताबें लिख चुके हैं। भगत सिंह और स्वामी विवेकानंद पर लिखी गई उनकी वृहद रचनाएं ज्ञानपीठ लगातार छाप रहा है। धर्मयुग के लेखक तो रहे ही साथ ही जिस जमाने में लोग मीडिया नहीं जानते थे तब वे रशिया और जापान के प्रतिष्ठित अखबारों से जुड़ चुके थे।
राजेंद्र बाबू (राजेंद्र प्रसाद जी) द्वारा लिखे गए पत्र की मूल प्रति |
मैं बात कर रहा हूं आधुनिक युग के आर्यभट्ट कहे जाने वाले महान ज्योतिष पं. सूर्य नारायण व्यास जी की और आज मुलाकात हुई उनके यशस्वी और अत्यंत ओजवान पुत्र राजशेखर व्यास जी से।
आधुनिक युग के आर्यभट्ट पं. सूर्यनारायण व्यास जी |
गागर में सागर वाली मुलाकात थी ऐसा लगा कि आज, महाकाल के उपासक रहे पं. सूर्य नारायण व्यास जी का ही आशीर्वाद मिल गया हो। पिताजी को फोन पर जानकारी दी तो ये जानकर और अच्छा लगा कि पिताजी खुद पं. का आशीर्वाद लेने कई बार उज्जैन जा चुके थे। आज की पीढ़ी को ऐसे लोगों के बारे में ज्यादा से ज्याद जानने की आवश्यकता है उम्मीद है मैं इसमें अपना कुछ योगदान दे पाऊंगा। वाह अद्भुत अविस्मरणीय।
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पं. राजशेखर व्यास जी से आशीर्वाद लेते हुए पं. जी पर डाक टिकट जारी करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी |
सोमवार, 26 जून 2017
शनिवार, 24 जून 2017
शुक्रवार, 31 मार्च 2017
पद्म श्री डॉ. नरेंद्र कोहली के सत्य की खोज पर विचार
आप किसी को गुरु माने से ज्यादा आवश्यक है योग्य गुरु आपको शिष्य मानें.. आध्यात्मिक जगत में स्वामी गंगाराम जी ने ये सौभाग्य दिया तो लेखक के तौर पर साहित्य जगत में वर्तमान दौर के सबसे प्रतिष्ठित नाम और पद्म श्री से सम्मानित किए गए डॉ. नरेंद्र कोहली का प्रेम और आशीर्वाद सदा मिलता रहा है.. सत्य की खोज किताब की शुरुआत में कुछ अध्याय उन्हें भेजे थे। जिन्हें उनका स्नेह प्राप्त है वो जानते हैं कि उनकी हास्य विनोद की क्षमता अप्रतिम है। उन्होंने कहा बड़ी जल्दी वो काम कर रहे हो जो हमें करना चाहिए। फिर कहा कुछ लिखकर भेजूंगा। वो सिर्फ औपचारिकता में किसी आलेख या पुस्तक को नहीं पढ़ते बल्कि पूरा समय देकर गंभीरता से उस पर विचार करते हैं। ऐसी ही अपेक्षा उनकी अपनी पुस्तकों को लेकर भी रहती है। उन्होंने जो मेल कुछ दिनों बाद भेजा वो भी किसी बड़े सम्मान से कम नहीं था। उसे अपने पास संजोकर रखा है। आज जब उनके शुभचिंतक उन्हें पद्म श्री मिलने की खुशियां मना रहे हैं.. उनके मेरे लिए कहे गए ये शब्द और भी अहम लग रहे हैं। अपनी बढ़ाई किस को पसंद नहीं और फिर वो डॉ. कोहली के शब्दों में हो तो क्या बात। हम ही क्या हमारे पिताजी भी नरेंद्र कोहली जी के साहित्य को अपनी धरोहर समझते रहे हैं और जब उनके शब्दों में अपने किसी लेखन की तारीफ मिले तो अहसास क्या होगा, शब्दों में बयां करना मुश्किल होगा। राज्य सभा टीवी के कार्यक्रम शख्सियत में उनके बारे में मुझसे भी विचार लिए गए और इस कार्यक्रम में उन्होंने जो बात मेरे बारे में कही वो भी दिल को छू लेने वाली थी.. ये कार्यक्रम तो इंटरनेट पर आपको मिल जाएगा.. फिलहाल उनका भेजा वो मेल साझा कर रहा हूं जो उन्होंने सत्य की खोज की शुरुआत में मुझे लिख कर भेजा था।
बुधवार, 8 फ़रवरी 2017
मैं जानता भी नहीं था कि मेरे बाजू वाली सीट पर बैठा वो शख्स इतनी बड़ी शख्सियत है!
प्लेन की यात्रा में अगली पंक्ति का टिकट था। सीट बीच वाली थी। प्लेन
में घंटे भर की यात्रा करनी होती है फिर भी बीच वाली सीट को लेकर हीन मनोदशा पता
नहीं क्यूं हो जाती है। मैं खड़ा खड़ा सीट बदलने की योजना बना रहा था क्यूंकि कुछ
पीछे ही हमारे सीनियर दीपक चौरसिया बैठे थे। सोचा उनके साथ बातचीत करते हुए जाने
का मौका मिल जाएगा। खड़े खड़े विचार कर ही रहा था कि जो
सज्जन विंडो सीट पर थे वो आए और मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा क्या मैं अपनी सीट पर
बैठ जाऊं। बहुत सौम्य चेहरा और सौम्य आवाज, मैंने कहा जी जरूर। फिर मैं भी सोचते
विचारते अपनी मिडिल सीट पर बैठ गया। इतने में आइल सीट पर बैठे सज्जन आ गए।
उन्होंने आते ही जोरदार आवाज के साथ मेरे साथ बैठे सज्जन का अभिवादन किया और उनके
पैर छुए। इसके बाद उन्होंने मुझसे अनुरोध किया कि क्या मैं मिडिल सीट पर बैठ सकता
हूं। नेकी और पूछ पूछ मैं तो उधार ही बैठा था। खैर सीट की अदला बदली हो गई। इसके
बाद अब मिडिल सीट पर बैठे सज्जन ने अपना फोन निकला और विंडो सीट पर बैठे सज्जन के
साथ सेल्फियां खींचने लगे। मुझे उनके बातचीत के अंदाज और उनके प्रति दिख रहे
उत्साह से लगा कि हो न हो मेरे बाजू में बैठे सज्जन कोई खास व्यक्ति हैं। मैंने
मिडिल सीट वाले भाई साहब से पूछा ये हैं कौन? उन्होंने कान में फुसफुसाते हुए कहा देश
के रक्षा राज्य मंत्री।
डॉ. सुभाष भामरे के बारे में मैं बहुत नहीं जानता था लेकिन वो एक
बेहतरीन डॉक्टर रहे हैं और कैंसर के प्रति उन्होंने जागरुकता का बड़ा अभियान चलाया
था और साथ ही वो मोदी कैबिनेट के सबसे बेहतरीन मंत्रियों में शामिल हैं, इतनी
जानकारियां मुझे थीं। सीट बदलने पर थोड़ा सा निराश हुआ लेकिन अब भी ज्यादा दूर
नहीं था मेरे और मंत्री जी के बीच वही सज्जन थे जिनसे मुझे उनके बारे में जानकारी
मिली। वो भी मराठी मूल के थे और रक्षा राज्य मंत्री भी धुले के सांसद हैं और
महाराष्ट्र के काफी लोकप्रिय नेता भी हैं। दोनों की बातें चल रही थीं और मुझे भी
मराठी का थोड़ा बहुत ज्ञान होने से बातचीत में दिलचस्पी हो रही थी। मैंने बातचीत
के बीच में अपना सिर घुसाया और पहले तो मंत्री जी को नहीं पहचानने के लिए उनसे
माफी मांगी। हंसते हुए ये भी कहा कि मोदी कैबिनेट के इतने बड़े मंत्री बाजू वाली
सीट पर बैठे होंगे इसका जरा भी गुमान नहीं था। फिर उनसे पूछा कि क्या अब प्रैक्टिस
कर पाते हैं? क्यूंकि मूलतः वो एक डॉक्टर हैं। उन्होंने जवाब दिया इस मंत्रालय में
आने के बाद तो बिलकुल भी नहीं, जिम्मेदारियां बहुत हैं।
अब बारी मेरी थी। डॉ. भामरे को मैंने अपना परिचय दिया। एक घंटे से
ज्यादा का वक्त था और मेरे भीतर सवालों की कोई कमी नहीं थी। बातों बातों में मेरी
पुस्तकों के बारे में चर्चा निकली और ब्लूम्सबरी के साथ प्रकाशित होने वाली पुस्तक
के बारे में भी कुछ जानकारियां उन्हें दी। वो इसके विषय को सुनकर बहुत उत्साहित हो
गए। उन्होंने कहा मुझे इसकी पहली प्रति जरूर देना। इसकी विषय वस्तु उनकी दिलचस्पी
का विषय है। इस पुस्तक के बारे में तो मैं आपको आगे कभी विस्तार से बताऊंगा ही
लेकिन इस लंबी यात्रा के बाद उनके व्यक्तित्व का एक बेहतरीन पहलू सामने आया जिसकी
वजह से मैंने इस मुलाकात पर इतना लंबा ब्लॉग लिखने का मन बनाया। यात्रा खत्म होने
को थी मैंने संकोच के साथ पूछा प्लेन के बाहर तो आप तक पहुंचना बहुत कठिन होगा। किताब
लेकर कैसे पहुंचूंगा आप तक? क्या रक्षा मंत्रालय के जरिए संपर्क करूं? उन्होंने हंसते हुए
कहा हां ये तो एक बढ़िया तरीका है ही लेकिन आप मेरा पर्सनल नंबर भी रख सकते हैं।
बातें करते करते कैसे एक घंटा बीत गया पता ही नहीं लगा।
प्लेन के लैंड करते ही बारी थी उनका प्रोटोकॉल देखने की। मैंने तो ये
देखा है कि हम जैसे छोटे मोटे पत्रकारों को भी कई बार सीआईएसएफ के भाईयों की वजह
से कुछ विशेष ट्रीटमेंट मिल जाता है फिर रक्षा राज्य मंत्री के लिए तो विशेष
सुविधाएं निश्चित तौर पर होंगी। हम प्लेन से नीचे उतरे तो मैंने सोचा उन्हें उनकी
कार तक छोड़ देता हूं फिर बस से आगमन स्थल तक पहुंच जाऊंगा। मुझे आश्चर्य तब हुआ
जब वो मेरे ही साथ सीधे बस में चढ़ गए। मैंने भी उनसे पूछ लिया आप बस में क्यूं जा
रहे हैं?
उन्होंने कहा क्यूं नहीं जैसे सब जा रहे मैं भी जाऊंगा। मैं उनसे प्लेन में हुई
लंबी बातचीत के बाद उनकी सहजता और विजन का जबरदस्त कायल हो ही गया था लेकिन उनकी
सादगी ने मुझे और प्रभावित किया। आम तौर पर इस तरह के प्रशंसा पत्र को चाटूकारिता
माना जा सकता है लेकिन मुझे सचमुच ये कहने में कोई परहेज नहीं कि टीम मोदी में कई
ऐसे चेहरे हैं जो सचमुच जिम्मेदारियां उठाने के काबिल हैं। डॉ. सुभाष भामरे की
योग्यता को उनके बस में बैठने भर से नहीं तौला जा रहा बल्कि एक डॉक्टर के तौर पर
कामयाब रहने के बाद राजनीति और फिर देश के बड़े मंत्रालय तक बेदाग तरीके से पहुंचने
की उनकी यात्रा भी उनकी योग्यता का प्रमाण हैं। मैं उन्हें अपनी किताब की पहली
प्रति दे पाऊंगा या नहीं ये कहना तो मुश्किल है। उनके पर्सनल नंबर पर मुझे जवाब
मिलेगा या नहीं ये कहना भी मुश्किल है, लेकिन उनके साथ घंटे भर की हवाई यात्रा के
बाद की गई कुछ मिनटों की बस यात्रा को मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा।
रविवार, 29 जनवरी 2017
मूर्ख हैं वो इतिहासकार जो पद्मावती को काल्पनिक किरदार कहते हैं
हमारे आज के इतिहासकार जो कर रहे हैं वहीं पुराने
इतिहासकारों ने भी किया। इरफान हबीब और नजफ हैदर जैसे इतिहासकारों ने पद्मावती को
काल्पनिक किरदार तक कह डाला। यदि इनके नजरिए से इतिहास को खंगालने बैठे तो बाबर के
आने के बाद इतिहास में की गई छेड़खानी और अंग्रेजों से हमारे संघर्ष तक बात आकर
सिमट जाती है। भला हो हमारे उन महान साहित्यकारों का जिनकी वजह से आज भी हम राम,
कृष्ण और वैदिक परंपरा में अपने इतिहास को पा लेते हैं वरना हमारी हालत तो वो कर
दी गई की हम बाबर के हमले के बाद ही अपने अस्तित्व को मानें। रही सही कसर हमारे उन
कथित अपनों ने पूरी कर दी जो खुद भी विदेशी आक्रांताओं के प्रभाव में आ गए। जब
अपने कुछ कहते हैं तो लोग विश्वास करते हैं और यही वजह है कि इनका इस्तेमाल जमकर
इतिहास के पुराने पन्नों को मिटाने के लिए किया गया। इस सबके बीज मलिक मुहम्मद
जायसी जैसे सूफी भी हुए जिन्होंने इतिहास को साहित्य के नजरिए से लिखा। उनकी वजह
से इतिहास के कुछ पन्ने आज भी हमारे पास मौजूद हैं। ऐतिहासिक किताबों में जिनका
जिक्र नहीं वो किरदार कभी हुए ही नहीं ये कहना उतना ही गलत है जितना अपने पर दादा
की तस्वीर नहीं होने पर उनके अस्तित्व को खारिज कर देना।
इतिहास किस्सों कहानियों और साहित्य से ही आगे
बढ़ता है। रामचरित मानस सिर्फ साहित्य की अप्रतिम रचना मात्र नहीं है, हर भारत
वासी के लिए उसके गौरव पूर्ण इतिहास की साक्षी भी है। वाल्मिकी रामायण को परंपरागत
अवधी भाषा में गोस्वामी ने लिखकर बदलते वक्त में भी उस इतिहास को जिंदा रखा।
महाभारत महज साहित्यिक रचना नहीं है वो हमारे समृद्ध इतिहास का लेख जोखा है। सिर्फ
कहानियों तक सिमट जाना बेवकूफी है। हमारे असली साहित्यकारों ने किस तरह से इतिहास
को कलात्मकता के साथ पेश किया इस पर गौर करने की जरूरत है। हमारे इतिहास से एक बात
तो साफ है कि हम आस्था से भरपूर हैं।
आस्था ही हमारे अस्तित्व का मूल है। इस आस्था पर न तो पहले कोई चोट कर पाया
न आज कर सकता है और न हीं भविष्य में कोई कर पाएगा। यही साहित्य या इतिहास हमें
मुगलों और अंग्रेजों के हमलों के बावजूद अपनी परंपरा से जोड़े रखता है।
इस इतिहास को जो नहीं समझते उन्हें भारतीय इतिहास
पर टिप्पणी करने की कोई जरूरत नहीं है। वे वही काम कर रहे हैं जो मुगलों के
इतिहासकारों ने अपने आकाओं को पहचान दिलाने के लिए किया था। दरअसल इतिहास आईना
दिखा देता है और इतिहास वर्तमान आस्थाओं से भी जुड़ा होता है। वो लोग जो सनातन
सभ्यता को खत्म करने के लिए आए थे क्या ऐसा इतिहास लिखेंगे जो सनातन सभ्यता के
गौरव को बताए? जाहिर तौर पर इतिहास को भुलाने का भरसक प्रयास किया गया लेकिन जहां
ज्ञानी पैदा होते हैं वहां आक्रांताओं की तिकड़मे काम नहीं आती। ये ज्ञानी व्यास,
तुलसी और वर्तमान समय में विवेकानंद जैसे लोग हुए जिन्होंने इस सनातन सभ्यता के
सही इतिहास को जिंदा रखने का सफल प्रयास किया। दुनिया की किसी सभ्यता का इतिहास
उतना अक्षुण नहीं रह सकता जितना हमारा है। हम जानते हैं कि योग हमारे ज्ञानियों की
देन है, हम जानते हैं जिसे आज फिलॉसफी कहते हैं वो हमारे इतिहास की देन है। विदेशी
आक्रांताओं ने यहां से चुरा चुरा के अपना नया इतिहास तो गढ़ लिया लेकिन हमारे मूल
तत्वों पर चोट नहीं कर पाए।
ये सच है कि साहित्यिक रचनाओं में कवि या
साहित्यकार को अपनी कल्पनाओं को भी रखने की छूट मिलती है। आज के दौर के लेखक
नरेंद्र कोहली या ईशान महेश जैसे लोग आज भी राम कृष्ण और सुदामा जैसे किरदारों को
लेकर अपने उपन्यास लिखते हैं। इसमें उनकी कल्पनाएं होती हैं लेकिन ऐतिहासिक तत्वों
को जस का तस लिया जाता है। सीता-राम या राधा-कृष्ण का प्रेम हो या फिर हनुमान जी
की भक्ति हो इसका मूल तत्व कभी कोई नहीं बदल पाएगा। तुलसी ने भी इसे ऐसे ही लिए
उनसे पहले वाल्मिकी ने भी। आज के साहित्यकार भी नई कल्पनाएं गढ़ते हैं लेकिन
ऐतिहासिक तथ्यों के साथ कोई छेड़छाड़ कर ही नहीं सकता क्यूंकि उसे पाठक स्वीकार ही
नहीं कर पाएंगे। रानी पद्मावती के सौंदर्य को लेकर या उनके तोते को लेकर या उनके
जीवन को लेकर कई बातों पर जाएसी ने अपनी कल्पनाओं को भी उकेरा होगा लेकिन इस तथ्य
को कोई नहीं बदल सकता कि मुगल आक्रांताओं की नजर हिंदू राजाओं की रानियों पर रहती
थी। ये दरअसल इन घटिया आक्रांताओं की हवस मात्र नहीं बल्कि किसी राजा और उसकी
प्रजा को नीचा दिखाने की एक राजनीतिक साजिश भी होती थी। मेवाड़ के महाराज रावल रतन
सिंह की 15 रानियां थीं जिनमें सबसे छोटी पद्मावती थीं। वो अत्यंत रूपवान थीं और
अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ की प्रजा के
मानस को छलनी करने के लिए उन पर कुदृष्टि डालने का असफल प्रयास भी किया था। अन्य
गरिमामयी रानियों की तरह उन्होंने भी प्रजा का मान रखने के लिए जौहर कर लिया था।
ये एक ऐसा काला इतिहास है जो खिलजी के किसी वंशज को आज भी पचता नहीं है। ये इतिहास
बताता है कि ये आक्रांता किस घटिया मानसिकता के साथ हमारे पवित्र देश में आए थे।
जाएसी ने बेशक पद्मावती के रूप पर पूरा साहित्य
लिख दिया इसमें उनकी कल्पनाएं भी हो सकती हैं लेकिन कुछ तथ्य ऐसे हैं जिन्हें वो
भी नहीं बदल सकते थे। इन सब तथ्यों में सबसे महत्वपूर्ण ये है कि रानी पद्मावती एक
शौर्यवान और गरिमामयी रानी थीं जिनके लिए सम्मान उनके प्राणों से भी बढ़कर
था। हमारे इस गौरवपूर्ण इतिहास को कोई मूर्ख अपने क्षूद्र स्वार्थों के लिए कल्पना
कहे तो किसे बर्दाश्त होगा? आज इतिहास को कल्पना की तरह दिखाने वाले भी
प्रयोग कर सकते हैं लेकिन मूल तथ्यों के साथ छेड़ छाड़ कोई नहीं कर सकता। यदि किसी
रचना में खिलजी को हीरो दिखाया जाएगा तो ये नाकाबिल ए बर्दाश्त ही होगा। ऐसा है या
नहीं ये कहना तो मुश्किल है लेकिन फिल्म में लीड हीरो के तौर पर लिया गया किरदार
यदि रावल रतन सिंह न होकर खिलजी है तो ये इतिहास से खिलवाड़ ही है। ऐसे किसी भी
प्रयास का विरोध होना ही चाहिए क्यूंकि ये मुगल कालीन घटिया इतिहासकारों की परंपरा
को आगे बढ़ाने का ही एक प्रयास है। यहां भी फिल्म को हिट कराने जैसे क्षूद्र
मंतव्य के अलावा और कोई कलात्मक पहलु दिखाई नहीं पड़ता।
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