शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

दाढ़ी बढ़ाना कट्टरपंथ नहीं लेकिन दाढ़ी के पीछे की जेहनियत कट्टरपंथ हो सकती है

जुनैद जमशेद पर लिखी गई मेरी एक टिप्पणी पर कई मुस्लिम भाइयों के कमेंट आए। इन सभी का कहना था कि संगीत छोड़ कर कोई खुदा की इबादत करे तो उसे कट्टरपंथी क्यूं कहा जाए? सचमुच जुनैद की कोई गलती नहीं थी असली गुनहगार तो वो हैं जो मजहब को गलत तरीके से पेश कर युवाओं का दिमाग खराब कर देते हैं। मेरी टिप्पणी पर जो मुस्लिम भाई कुछ नाराज दिखाई पड़े उनके सवालों के भी मैंने जवाब दिए। वो जुनैद को सिर्फ दाढ़ी तक सीमित मानकर चल रहे थे। ऐसे में जुनैद जमशेद की कहानी को इन सवालों और उनके जवाबों में समझना बहुत जरूरी है। ये इसीलिए जरूरी है ताकि कट्टरपंथियों के हाथों की कठपुतली बनकर कोई और जुनैद संगीत को हराम कहकर उन्मादी बातें न करने लगे। दाढ़ी तो हर धर्म का हिस्सा ऐसे में किसी के सिर्फ दाढ़ी भर रख लेने से कोई कट्टर नहीं हो जाता है। असली आफत है उस दाढ़ी को बढ़ाने के पीछे छिपी सोच। पहले मेरी फेसबुक पर की गई टिप्पणी को जस का तस लिख रहा हूं। दरअसल पाकिस्तान में हुए प्लेन क्रेश के बाद जुनैद के बारे में जाना और फिर दिलचस्पी बढ़ गई। उसकी जिंदगी ठीक वैसी थी जैसी पाकिस्तानी फिल्म खुदा के लिए में एक सिंगर की दिखाई गई थी, जो अपना संगीत छोड़कर एक तालीबान आतंकी बन जाता है। बांग्लादेश में हाल में हुए आतंकी हमले के एक आतंकवादी की भी ऐसी ही कहानी थी। 
जुनैद जमशेद
मेरी टिप्पणी कुछ यूं थी...
पाकिस्तान के प्लेन क्रैश में मारे गए 47 लोगों में एक जुनैद जमशेद थे... अच्छा खासा सिंगर कट्टर पंथी हो गया था... अभी पढ़ा उसके बारे में तो जाना कि जिस जमाने में लोग पॉप समझ रहे थे वो स्टार बन गया था.. कट्टरपंथी सोच कैसे अच्छे खासे लोगों को खतरनाक बना देती है कि कहानी था जुनैद.. भारतीय श्रोताओं के लिए एक मजेदार चीज भी जानने को मिली... जुनैद ने अपने बैंड VitalSigns के जरिए एक गाना सांवली सलोनी सी महबूबा गाया था.. भारतीय श्रोताओं ने इसे.. 1994 की फिल्म हम सब चोर हैं.. में सुना.. इस गाने को भी चुरा के .. सांवली सलोनी तेरी झील सी आंखे .. बना दिया गया था.. जुनैद कलाकार था और हम कला प्रेमी है .. 

जुनैद और अन्य 46 लोगों को श्रद्धांजलि के साथ 1991 का उसका ये गाना मैंने अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट किया था। इस पर कई मुस्लिम भाइयों की टिप्पणी आई कि सिर्फ दाढ़ी की वजह से जुनैद को कट्टर नहीं कहना चाहिए। और भी कई टिप्णियां आईं जिनमें मेरे एक भाई अफी कुरैशी ने लिखा- डॉ. साब आपने जो रिसर्च की उसे जानकर अच्छा लगा लेकिन आपको एक जानकारी दे दूं। भगवान, अल्लाह, गॉड, वाहेगुरु के लिए गलत बंदों को नेक राह पर लाना, अमन कायम करना, झगड़ों से, शराब से, जुआ से, चोरी से, डकैती से हर उस गलत काम से रोकना जिसे समाज में बुरा समझा जाता हो, उसे कट्टरपंथी नहीं कहते भाई.. उसे सदक ए जरिया कहते हैं। प्लीज रिसर्च सही करो और कट्टरपंथी और भलाई में फर्क ढूंढों...

इस बात में मुझे कुछ भी गलत नहीं लगा और आमतौर पर मैं रिसर्च पूरी करके ही लिखता हूं। इस मामले में भी मैंने काफी पढ़ा था लेकिन ज्यादा लिखने का मन नहीं किया। मैंने जवाब में लिखा भी कि मैं एक मृतात्मा और वो भी अच्छे कलाकार के बारे में कोई गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ना चाहता। सच तो ये था कि जितने लोग मुझ से इस मसले पर बहस कर रहे थे वो खुद ही जुनैद की कहानी नहीं जानते थे। मैंने ऐसी कई खबरों के लिंक पेस्ट किए जहां जुनैद के खिलाफ पाकिस्तान में ही मामला दर्ज किया गया था लेकिन जुनैद के बारे में उनके एक पुराने जानकार और साथी की टिप्पणी सबसे अहम है। दरअसल इसमें अच्छे खासे युवाओं के ब्रेन वॉश का दर्द छिपा हुआ है। ये टिप्पणी पाकिस्तान के मशहूर फिल्मकार और संगीतकार शोएब मंसूर की थी। हिंदी में ये टिप्पणी कुछ इस तरह होगी...

“शोएब मंसूर, 2007- आम सुबह की तरह मैं अखबार पढ़ रहा था इसमें मैंने अपने दोस्त जुनैद जमशेद का इंटरव्यू देखा। उसकी वेशभूषा और तस्वीर देखने के बाद मैं इस इंटरव्यू को पढ़ने से खुद को नहीं रोक पाया। जैसे जैसे मैं पढ़ता गया वैसे वैसे और दुखी होता गया। उसने कहा था कि वो म्यूजिक इसीलिए छोड़ चुका है क्यूंकि ये हराम है। मैं भौंचक्का रह गया। कोई ये कैसे विश्वास कर सकता है कि खुदा की इंसानों को दी गईं दो बड़ी नैमतें.. संगीत और पेंटिंग कभी भी हराम हो सकती हैं। मुझे अहसास हुआ कि जुनैद जैसे भटके हुए लोगों को कोई हक नहीं है कि वो ऐसे ही भटके हुए हजारों युवाओं को दिशा दिखाने का काम करें। मैंने उसे अपने जीवन के अहम 16 साल उसे दिए थे। मुझे आश्चर्य था कि वो ऐसे कैसे इन 16 सालों के साथ को एक तरफ फेंक सकता है वो भी मुझसे बिना सलाह मशविरा किए? मुझे लगा कि ये मेरी जिम्मेदारी है कि समाज को ऐसे कट्टरपंथियों के जरिए हो रहे नुकसान से बचाया जाए।”

शोएब की कही हुई बातें कई जागरूक मुस्लिम विचारक कहते रहे हैं इसके बावजूद वो समाज में आने वाले इस खतरनाक बदलाव को नहीं रोक पाते हैं। जुनैद के प्रति उसे न जानने वालों की अंधभक्ति ये बताती है कि ये बात इस्लाम की नहीं है बल्कि इस्लाम के नाम पर भटके हुए युवाओं में और भटकाव पैदा करने की है। मेरे मुस्लिम मित्र ने फिर पूछा कि मैंने भी दाढ़ी रख ली है तो क्या मुझे भी कट्टरपंथी कहेंगे। मेरा जवाब था बिलकुल नहीं इस मुद्दे का दाढ़ी से कोई लेना देना है ही नहीं। असली वजह है जेहनियत। हमें जेहनियत पर बहस करनी चाहिए दाढ़ी या चोगे पर नहीं। ये बात सिर्फ जुनैद जमशेद की नहीं है ये बात हर उस युवा की है जो मजहब के नाम पर भटकाव की राह पकड़ रहा है। कट्टरपंथियों का मकसद ही होता है ऐसे लोगों को भ्रमित करना जिन्हें दूसरे युवा अपना रोल मॉडल मानते हैं। फिर इनके प्रभाव में आकर कई और युवा भी दाढ़ी बढ़ा लेते हैं। पाकिस्तान के कई क्रिकेटर्स आपको इसी रूप में मिलेंगे। इंजमाम वर्ल्ड कप के दौरान एक सीरिज में कई दिनों तक मेरे साथ एक्सपर्ट के रूप में बैठे। मेरी उनसे अच्छी मित्रता हो गई थी लेकिन मुझे एहसास हुआ कि कई मुद्दों पर उनका एक जकड़ा हुआ रूप भी है। यही वजह है कि वो अपने लोगों के लिए या अपने देश के उन युवाओं के लिए जो उन्हें अपना रोल मॉडल मानते हैं के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं। युवा जाकिर नाइक जैसे भड़काऊ भाषण देने वालों पर ज्यादा भरोसा करते हैं जबकि इस्लाम के कई जानकार खुद ही ऐसे लोगों को खतरनाक करार देते रहे हैं। जब जुनैद की कहानी लिख रहा था तो नुसरत साहब की कव्वालियां भी सुन रहा था। आम तौर पर लिखते हुए उन्हें सुनना बहुत सुकून देता है। उन्हें सुनते हुए ये ख्याल भी आ रहा था कि किसी जेहनियत के चक्कर में फंसकर वो भी दाढ़ी बड़ा लेते तो ये खूबसूरत यादें कभी न मिल पातीं।







शनिवार, 22 अक्टूबर 2016

यूपी में ब्राह्मण के शंखनाद और राम नाम की गूंज


पहले कांग्रेस ने अपनी छबि के विपरीत जाते हुए यूपी में ब्राह्मण कार्ड खेला। शीला दीक्षित और राज बब्बर को यूपी में चेहरा बनाकर उतार दिया। अब समाजवादी पार्टी ने भी अपनी छबि से विपरीत काम करते हुए राम की शरण ले ली। मुल्ला मुलायम के नाम से मशहूर नेता जी को भी अब राम नाम जपने की जरूरत महसूस हो रही है। कांग्रेस के लिए रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपने आंकलन से बताया कि इस दफा चुनाव में ब्राह्मण मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। समाजवादी पार्टी के राजनैतिक पंडितों को बीजेपी की हवा के बीच हिंदू मतदाताओं को रिझाने की चिंता सता रही है। वहीं बीजेपी ने भी जय श्रीराम के नारे को बुलंद कर ये अहसास करा दिया कि राम का नाम उसके लिए भी उत्तर प्रदेश चुनाव की नैया पार लगाने वाला है। राहुल गांधी की नहा धोकर हनुमान जी की पूजा पाठ वाली तस्वीरें भी आप नहीं भूले होंगे। एक बात तो साफ है कि सभी राजनैतिक दलों की नजर इस बार हिंदू वोटों पर लगी हुई है। खास तौर पर ब्राह्मण वोटों को अपनी तरफ करने का प्रयास सभी दलों की तरफ से किया जा रहा है। इसकी अहम वजह है 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे। इस चुनाव में ये वोट बैंक बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत बना। यदि मोदी और बीजेपी का वही असर यूपी पर देखने को मिला तो विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी को एक बड़ी जीत हासिल होगी। राम नाम की नैया पर सवार बीजेपी के पीछे पीछे समाजवादी पार्टी जैसे राजनैतिक दल भी अब इस जप के महत्व को समझ रहे हैं।

विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़े उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दशहरे पर ‘जय श्री राम’ का नारा बुलन्द करने के साथ ही ‘राम संग्रहालय’ का निर्माण करवाने का निर्णय लेकर अयोध्या को एक बार फिर सुर्खियों में ला खडा किया। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी ने भी रामायण सर्किट की सौगात देकर राम भक्तों को रिझाने की कोशिश की है। विपक्ष इसे नरेंद्र मोदी की सोची समझी रणनीति का हिस्सा मान रहा है तो बीजेपी का कहना है कि पार्टी ने मंदिर मुद्दे को कभी भी राजनीति से जोड़कर नहीं देखा। राम मंदिर को अपने मेनिफेस्टो का अहम हिस्सा बताने वाली बीजेपी की राम मंदिर पर ज्यादा जिम्मेदारी है लेकिन अभी तक इस मुद्दे पर बीजेपी निशाने पर ही रही है। मंदिर से शुरू हुए और म्यूजियम तक पहुंचे के आरोप भी बीजेपी पर लगने लगे हैं। विनय कटियार जैसे नेताओं ने भी इस मुद्दे पर अपने तेवर तल्ख कर लिए। 

बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती कहती हैं कि चुनाव के मौके पर बीजेपी और सपा दोनों मिलकर अयोध्या मुद्दे को गरम करना चाहते हैं। उनका कहना है कि मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए सपा अध्यक्ष मुलायम यादव को हर चुनाव में ‘बाबरी विध्वंस’ की याद आती है तो दूसरी ओर उनके मुख्यमंत्री पुत्र हिन्दुओं में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए अयोध्या में थीमपार्क बनवाने जा रहे हैं। दूसरी तरफ ब्राह्मणों को अपना चेहरा बनाने वाली कांग्रेस का आरोप है कि चुनाव के समय ही रामायण संग्रहालय बनवाने की याद क्यों आई। इसके आगे पीछे भी इस योजना पर काम किया जा सकता था। 

बीजेपी ने कहा कि अयोध्या और श्री राम को हमने हमेशा से आस्था का विषय माना है। पार्टी ने इसे राजनीति या चुनाव से जोड़कर कभी नहीं देखा है। बीजेपी का ये भी कहना है कि विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है इसलिए वो अनावाश्यक रूप से आरोप लगाते रहते हैं।

बयान बाजी की राजनीति तो होती रहेगी लेकिन जाति और धर्म की राजनीति यूपी की राजनीति का एक अहम सच है। इस सच को कोई भी राजनीतिक दल अनदेखा नहीं कर सकता पर अचानक यूपी की पूरी सियासत में ब्राह्मण बेहद महत्वपूर्ण हो गए हैं। 2017 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्दे नजर क्या सपा क्या कांग्रेस सभी ब्राह्मणों को रिझाने की जुगत में लगे हुए हैं। उत्तर प्रदेश में 10 प्रतिशत ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी की सियासी नांव किनारे लगाने के लिहाज से एक हैसियत रखते हैं। जिस तरफ ब्राह्मण मुड़ जाते हैं उस पार्टी की नैय्या पार लग जाती है। हांलाकि ये भी एक तथ्य है कि लंबे समय से उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण हाशिए पर आ गए थे। 

इस बार पूरा चुनावी गणित उल्टा हो गया है। ब्राह्मण वोट को बीजेपी बाय डिफॉल्ट अपने साथ मानती है और इसीलिए उसका जोर दलितों को लुभाने पर है। करीब 22 फीसदी दलितों का साथ बीजेपी के पास आ जाए तो सूबे में उसकी सरकार होगी। 2007 में दलितों की मसीहा मायावती ने 86 ब्राह्मणों को टिकट दिया था और इस वोट बैंक की ताकत भी सियासी दलों को दिखाई थी। बेशक वो सपा और बीजेपी पर सवाल खड़े करें लेकिन वो भी राम नाम की सियासत के खिलाफ खुलकर कुछ नहीं बोल पाएंगी। मायावती का ध्यान भी ब्राह्मण वोटों पर लगा है। वहीं अभी तक मुस्लिम, यादव और दूसरे ओबीसी की राजनीति करने वाली समाजवादी पार्टी भी ब्राह्मणों को रिझाने में जुटी है। 

पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा ने लगभग 40 ब्राह्मण सम्मेलन किए थे। बसपा पार्टी ने नारा दिया था, ब्राह्मण शंख बजायेगा, हाथी दिल्ली जायेगा, लेकिन मोदी की आंधी में ब्राह्मण के बीजेपी में जाने से बसपा का खाता भी नहीं खुल सका था। 1990 पहले ब्राह्मण को कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता था। 1990 के आंदोलन के दौरान ब्राह्मणों ने बीजेपी का दामन थामा जिससे पार्टी सीधे 221 सीट जीतकर सूबे की सत्ता पर काबिज़ हो गई लेकिन उसके बाद बीजेपी में ब्राह्मणों की अनदेखी होने लगी। एक समय ऐसा भी आया जब ब्राह्मणों की हालत पार्टी में पतली हौ गई। ब्राह्मणों का भी बीजेपी से मोह भंग हुआ और इसका नतीजा रिजल्ट 2007 और 2009 में देखने को मिला। बीजेपी महज 10 लोकसभा सीट और 40 विधानसभा सीटों पर सिमट कर रह गई। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी जीत के जिस शिखर पर दिखाई पड़ती है उसके पीछे उसे मिला ब्राह्मणों का साथ ही है। 

2014 के नतीजों ने सभी राजनैतिक दलों को ब्राह्मण मतदाताओं को रिझाऩे की जरूरत महसूस करवाई है। इसके साथ ही अभी तक मुस्लिम मतदाताओं के पीछे भागने वाले राजनैतिक दलों को हिंदू मतदाताओं की याद आ रही है। हिंदू मतदाता जातियों में बंटा हुआ है और यही वजह है कि उस सवर्ण दलित, पिछड़े, अति पिछड़े जैसे अलग-अलग भाग देखने को मिलते हैं। जब राम नाम की बात आती है तो आस्था जाति से ऊपर उठकर होती है। सवर्णों के साथ के अलावा राम का नाम इन हिंदू मतदाताओं को भी अपनी तरफ आकर्षित करने का एक जरिया है। मुस्लिम मतदाता बीजेपी की तरफ न के बराबर जाएगा ऐसे में तमाम दूसरे राजनैतिक दल बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। एमआईएम जैसे दलों की घुसपैठ हो या फिर सपा और कांग्रेस के बीच चुनाव का कन्फ्यूजन, करीब 18 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं का बंटना तय है। लोकसभा चुनाव में उनका पूरा का पूरा वोट बीजेपी के खिलाफ रहा लेकिन इसके बावजूद बीजेपी को बड़ी कामयाबी मिली। बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने की ये कोशिश कितनी कामयाब होगी ये कहना तो मुश्किल है लेकिन ये तय है कि चाहे कांग्रेस हो या समाजवादी पार्टी वो चुनाव से पहले ही अपनी रणनीति के जरिए बीजेपी को चुनाव जीता हुआ दिखा रही है।



सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

मुहर्रम के बाद भी मातम क्यों ?


मुहर्रम तो मातम का दिन है ही लेकिन इसके बीत जाने के बाद भी कई घरों में मातम पसरा हुआ है। ये घर उन परिवारों के जिनके अपनों को दुर्गा विसर्जन के दौरान बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। अब हिंदू संगठनों का आरोप है कि ममता के राज में 'सोनार बांग्ला बर्बाद बांग्ला 'बन गया है| वैसे मुहर्रम पर इस तरह की हिंसा और उसमें हिंदुओं का मारा जाना कोई नई बात नहीं है वामपंथियों के राज में भी हिन्दुओं की दुर्दशा ही होती थी, लेकिन अब हिंसा के शिकार लोग और उनके परिजन ये तक कहने से नहीं चूक रहे हैं कि ममता ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए वो सब अत्याचार किये है जो कभी मुस्लिम अक्रान्ताओ के राज में भी नहीं किये गए थे|
इस साल दुर्गा पूजा पर ऐसे प्रतिबन्ध लगाये गए जो पहले कभी नहीं लगाए गए थे| मा. उच्च न्यायलय के हस्तक्षेप के बाद हिन्दू समाज ने चैन की साँस ली, लेकिन मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के द्वारा भड़काए गए लोगों ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रो में हिंसा का अभूतपूर्व तांडव किया| विश्व हिन्दू परिषद ने तो यहां तक दावा किया है कि कई जगहों पर मां दुर्गा  के पूजा पंडालो में गौमांस फेका गया और प्रतिमाओं को खंडित किया गया। हांलाकि इससे जुड़ी खबरें मीडिया में वैसे भी नहीं आती हैं। ये एक संवेदन शील मुद्दा माना जाता है लेकिन इस संवेदनशीलता की आड़ में हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
लोग कई तस्वीरें और वीडियो तो साझा कर रहे हैं लेकिन सही तस्वीर तक सामने नहीं आने दी जा रही है। अगर सचमुच यही स्थिति बनी हुई है तो ये भी तय है कि कोर्ट की फटकार सुनने वाली सरकार और उसका प्रशासन ऐसी खबरों को बाहर आने ही नहीं दे रहा होगा। हिन्दू मंदिरों को तोडे जाने की घटनाओं का दावा भी विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ पदाधिकारी कर रहे हैं। ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जहां मकानों और दुकानों पर हमले कर उन्हें लुटा गया बाद में उन्हें जला दिया गया और हिन्दुओ पर जानलेवा हमले किये गए| बांग्ला देश में हिंदुओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। वहां की सरकार ने अपने यहाँ हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने का भरोसा दिलाया लेकिन ये सिर्फ दिखावा ही साबित हुआ है। हद तो ये है कि हमारे अपने देश के एक राज्य पं. बंगाल में भी बांग्लादेश जैसे हालात दिख रहे हैं और राज्य सरकार पर हिंसा करने वालों को संरक्षण देने के गंभीर आरोप लग रहे हैं। आरोप ये लग रहे हैं कि पुलिस हिंसा करने वालों को रोकने की जगह पीड़ित हिन्दुओं पर ही मामले दर्ज कर रही है|
बंगाल में पहले भी कई जगह हिन्दू समाज दुर्गा पूजा नहीं कर पता था| परन्तु इस बार सब सीमाएं पार हो गयी| बंगाल के कई स्थानों पर हिन्दूओं पर वो अत्याचार हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था| वहां से ठीक ठीक आंकड़े तो नहीं मिल पाए लेकिन विश्व हिंदू परिषद ने औपचारिक रूप से जो आंकड़े सामने रखे उनके मुताबिक मालदा जिले के कालिग्राम, खराबा, रिशिपारा, चांचल; मुर्शिदाबाद के तालतली, घोसपारा, जालंगी, हुगली के उर्दिपारा, चंदननगर, तेलानिपारा, उर्दिबाजार; नार्थ २४ परगना के हाजीनगर, नैहाटी; प. मिदनापुर गोलाबाजार, खरकपुर, पूर्व मिदनापुर के कालाबेरिया, भगवानपुर, बर्दवान के हथखोला, बल्लव्पुर्घाट, कतोआ; हावड़ा के सकरैल, अन्दुलन, आरगोरी, मानिकपुर, वीरभूम के कान्करताला तथा नादिया के हाजीनगर जैसे इलाकों में कई जगहों पर हिन्दुओ पर अमानवीय अत्याचार किये गए| कई इलाके ऐसे भी हैं जहां ११ अक्टूबर से शुरू हुई हिंसा आज भी नहीं रुक पाई है|

तुष्टिकरण की राजनीति ने देश में 'सेक्युलर माफिया' को जन्म दिया है। ममता बनर्जी ने जिस तरह का बर्ताव दुर्गा पूजा के दौरान किया है उससे साफ है कि वो मुस्लिम मतदाताओं की भगवान बनने के लिए हिंदुओं पर होने वाली हिंसा को नजरअंदाज करने से भी गुरेज नहीं कर रही। हमारे देश में ऐसे मुददे पर बात करना या लिखना तक संवेदनशील मानान जाता है लेकिन इस आतंक की आग पीछे असली वजह होती है तुष्टिकरण की आग को भड़काया जाना| ये आग इतनी भयानक है कि इसे भड़काने वाले भी इससे नहीं बच पाएंगे।  ममता बनर्जी नहीं भूली होंगी कि किस तरह कोलकाता के एक मौलवी ने मांगे पूरी न होने पर उन्हें कैसे धमकाया था| अभी कालिग्राम और चांचल में हिंसा को रोकने वाले पुलिस वालोँ और जिलाधीश को किस प्रकार पीटा गया  और पुलिस स्टेशन को लूट लिया गया,  ये भी हिंसा करने वालों को मिली खुली छूट की तरफ इशारा करता है।

ऐसा नहीं है कि तुष्टिकरण की राजनीति से उपजी इस हिंसा का शिकार सिर्फ बंगाल के हिंदू हो रहे हैं। इसी तरह का दृश्य बिहार में भी दिखाई दे रहा है| चंपारण के  पुरकालिया, रक्सौल, सुगौली, किशनगंज, मधेपूरा, गोपालगंज, पिरो [आरा ], मिल्की, भागलपुर गाँव, औरंगाबाद के वरुण, खोगीय व पटना के बस्तियारपुर जैसे बीसियों गावों में इसी प्रकार के अत्याचार हो रहे है। मोतिहारी-चम्पारण के इलाके में दुर्गा विसर्जन के दौरान निकले उत्सव के दौरान गोलीबारी की जानकारी मुझे खुद एक स्थानीय पत्रकार ने दी। ये खबरें मीडिया में इसीलिए नहीं दिखाई जा रही क्यूंकि इन्हें संवेदनशील कहकर दबा दिया जाता है। एडवाइजरी जारी कर दी जाती है। उस वक्त प्रशासन मुस्तैद क्यूं नहीं होता जब दुर्गा माता की पूजा बाधित की जाती है?| नितीश का 'सुशासन ' आज माता के भक्तों के लिए दुशासन बन गया है| आज भी बिहार में कई स्थानों पर मजहब के नाम पर लगाई गई ये आग ठंडी नहीं हुई है| हिंसा करने वालों पर कार्यवाही करने में अक्षम नितीश सरकार पर पीड़ित हिन्दुओ पर ही झूठे मामले दर्ज कर खानापूर्ति करने के आरोप भी लग रहे हैं

बात यहां तक बिगड़ चुकी है कि अब हिंदू वादी संगठन ये कह रहे हैं कि यदि कथित सेक्युलर सरकारें अपने संवैधानिक कर्तव्यो को पूरा नहीं करेगी तो हिन्दू को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए स्वयम खड़ा होना पड़ेगा कर्नाटक में एक हिन्दू कार्यकर्ता की दिन दहाड़े हत्या ने भी देश को स्तब्ध कर साबित करने की कोशिश की है कि मजहबी सियासत को किस तरह से एक बार फिर हवा दी जा रही है।

बुधवार, 5 अक्टूबर 2016

दादरी पार्ट 2- अखलाक की हत्या के आरोपी रवि की रहस्यमयी मौत!

अखलाक की हत्या के आरोप में जेल में बंद रवि की संदिग्ध स्तिथियों में मौत हो गई। उसकी पत्नि और मां ने जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि ये मौत जेलर के टॉर्चर की वजह से हुई है। रवि की मां और पत्नि से हुई बातचीत में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। इन लोगों से अखलाक की हत्या के आरोप में बंद युवकों को टॉर्चर नहीं करने के नाम पर लगातार पैसे मांगे जा रहे थे। रवि की पत्नि ने ये भी बताया कि जब अस्पलताल ले जाया जा रहा था तब अपने पति से बात करने के लिए उन्हें 5 हजार रुपए देने पड़े। रवि ने मरने से पहले एक चिठ्ठी भी अपनी पत्नि को दी है जिसमें उसने अपनी आप बीती भी लिखी है।
मृतक रवि की पत्नि

उनका दावा है कि रवि की मौत टॉर्चर की वजह से हुई है। कुछ दिनों पहले जेल में रवि पर कुछ लोगों ने हमला भी किया था। जेल के जेलर पर भी गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। जेलर के बारे में इन लोगों का आरोप है कि वो हमलावरों का पक्ष ले रहा था  और इस हमले के बाद रवि को ही बुरी तरह से टॉर्चर किया गया। जेलर ........ (नाम लिखना हमारे देश में संवेदनशील माना जाता है) के बारे में रवि के कुछ रिश्तेदारों ने भी जिक्र किया। उनका कहना था कि कुछ दिनों पहले गांव में एक पोस्टर भी उनके घर के बाहर लगाया गया था कि अपने बच्चों को भूल जाओ अब वो वापस नहीं आएंगे। दादरी दो गुटों में बंटा हुआ है और सियासत करने वाले इन्हें बांटे रखना चाहते हैं लेकिन इस बीच रवि की पत्नि की हालत एक और दर्द को बंया कर रही है। वो कुछ कुछ देर में बोलते बोलते बेहोश हो जा रही हैं। उनका कहना है कि यहां से लोगों को बिना किसी सबूत पर ही उठा लिया गया था।

जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए रवि की पत्नि और मां ने कहा है कि उनसे लगातार कहा जा रहा था कि वो अपने परिजनों को यदि टॉर्चर से बचाना चाहते हैं तो पैसे दें। रवि की मां का दावा है कि उन्होंने करीब 12 हजार रुपए अभी तक दिए हैं। पूरे गांव में एक बार फिर तनाव का माहौल है। दादरी का बिसाहड़ा गांव एक बार फिर छावनी में तब्दील हो गया है। अखलाक की मौत और रवि की मौत के बाद एक फर्क जरूर देखने को मिल रहा है कि यहां नेताओं की रेलमपेल वैसी देखने को नहीं मिल रही है। मुआवजा तो छोड़िए अभी तो इस मामले की निष्पक्ष जांच को लेकर भी संदेह बना हुआ है। रवि आरोपी था और उस पर आरोप सिद्ध नहीं हुआ था लेकिन इसके बावजूद जो अमानवीयता उसके साथ जेल में की जा रही थी उसकी जांच बहुत जरूरी है। ये जांच इसीलिए जरूरी है क्यूंकि जेल प्रशासन का ये दावा कि रवि की मौत किडनी फेल होने की वजह से हुई है किसी के गले नहीं उतर रहा। उसकी पत्नि तो यहां तक कहती है कि रवि को कोई गंभीर बीमारी तो छोडिए कभी कोई छोटी मोटी बीमारी भी नहीं हुई। जेल प्रशासन ने महज दो दिन पहले पहली बार रवि को अस्पताल भेजा इससे भी ये साफ है कि उसे कोई ऐसी गंभीर बीमारी तो नहीं कि अचानक किडनी और लिवर फेल हो जाए।दादरी पार्ट 2- अखलाक की हत्या के आरोपी रवि की रहस्यमयी मौत!
अखलाक की हत्या के आरोप में जेल में बंद रवि की संदिग्ध स्तिथियों में मौत हो गई। उसकी पत्नि और मां ने जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि ये मौत जेलर के टॉर्चर की वजह से हुई है। रवि की मां और पत्नि से हुई बातचीत में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। इन लोगों से अखलाक की हत्या के आरोप में बंद युवकों को टॉर्चर नहीं करने के नाम पर लगातार पैसे मांगे जा रहे थे। रवि की पत्नि ने ये भी बताया कि जब अस्पलताल ले जाया जा रहा था तब अपने पति से बात करने के लिए उन्हें 5 हजार रुपए देने पड़े। रवि ने मरने से पहले एक चिठ्ठी भी अपनी पत्नि को दी है जिसमें उसने अपनी आप बीती भी लिखी है।
उनका दावा है कि रवि की मौत टॉर्चर की वजह से हुई है। कुछ दिनों पहले जेल में रवि पर कुछ लोगों ने हमला भी किया था। जेल के जेलर पर भी गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। जेलर के बारे में इन लोगों का आरोप है कि वो हमलावरों का पक्ष ले रहा था  और इस हमले के बाद रवि को ही बुरी तरह से टॉर्चर किया गया। जेलर ........ (नाम लिखना हमारे देश में संवेदनशील माना जाता है) के बारे में रवि के कुछ रिश्तेदारों ने भी जिक्र किया। उनका कहना था कि कुछ दिनों पहले गांव में एक पोस्टर भी उनके घर के बाहर लगाया गया था कि अपने बच्चों को भूल जाओ अब वो वापस नहीं आएंगे। दादरी दो गुटों में बंटा हुआ है और सियासत करने वाले इन्हें बांटे रखना चाहते हैं लेकिन इस बीच रवि की पत्नि की हालत एक और दर्द को बंया कर रही है। वो कुछ कुछ देर में बोलते बोलते बेहोश हो जा रही हैं। उनका कहना है कि यहां से लोगों को बिना किसी सबूत पर ही उठा लिया गया था।
जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए रवि की पत्नि और मां ने कहा है कि उनसे लगातार कहा जा रहा था कि वो अपने परिजनों को यदि टॉर्चर से बचाना चाहते हैं तो पैसे दें। रवि की मां का दावा है कि उन्होंने करीब 12 हजार रुपए अभी तक दिए हैं। पूरे गांव में एक बार फिर तनाव का माहौल है। दादरी का बिसाहड़ा गांव एक बार फिर छावनी में तब्दील हो गया है। अखलाक की मौत और रवि की मौत के बाद एक फर्क जरूर देखने को मिल रहा है कि यहां नेताओं की रेलमपेल वैसी देखने को नहीं मिल रही है। मुआवजा तो छोड़िए अभी तो इस मामले की निष्पक्ष जांच को लेकर भी संदेह बना हुआ है। रवि आरोपी था और उस पर आरोप सिद्ध नहीं हुआ था लेकिन इसके बावजूद जो अमानवीयता उसके साथ जेल में की जा रही थी उसकी जांच बहुत जरूरी है। ये जांच इसीलिए जरूरी है क्यूंकि जेल प्रशासन का ये दावा कि रवि की मौत किडनी फेल होने की वजह से हुई है किसी के गले नहीं उतर रहा। उसकी पत्नि तो यहां तक कहती है कि रवि को कोई गंभीर बीमारी तो छोडिए कभी कोई छोटी मोटी बीमारी भी नहीं हुई। जेल प्रशासन ने महज दो दिन पहले पहली बार रवि को अस्पताल भेजा इससे भी ये साफ है कि उसे कोई ऐसी गंभीर बीमारी तो नहीं कि अचानक किडनी और लिवर फेल हो जाए।

एक पाकिस्तानी महिला पत्रकार ने सिखाई केजरीवाल को देशभक्ति

एक तरफ जहां देश में ही पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले राष्ट्रद्रोही नेता हैं तो पाकिस्तान में भी कुछ ऐसे लोग हैं जो हमारे नेताओं को मुंह बंद रखने की सलाह दे रहे हैं। कल पाकिस्तान की पत्रकार मेहर तारर एक कार्यक्रम में मेरे साथ लाइव थीं। उन्हें कार्यक्रम में लेने की वजह थी उनका एक ट्वीट। इस ट्वीट में उन्होंने केजरीवाल के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए कहा था कि घर के चिराग से ही घर को नुकसान हो रहा है। केजरीवाल तो घर के चिराग कहे जाने के लायक भी नहीं हैं लेकिन हैं तो वो हिंदुस्तानी ही। उससे भी अहम बात ये है कि हिंदुस्तान की राजधानी ने उन्हें अपने मुख्यमंत्री के तौर पर भी चुना है। केजरीवाल कल पाकिस्तान के हीरो बने रहे। हर अखबार और टीवी चैनल पर वही चमक रहे थे। विश्वास जानिए आज केजरीवाल पाकिस्तान में कहीं से चुनाव लड़ ले तो उनकी जीत निश्चित है।

कांग्रेस की हालत भी केजरीवाल ने खराब कर रखी है। उन्हीं के पदचिन्हों पर चलते हुए कांग्रेस के कुछ कथित नेताओं ने जो बक दिया वो उनके गले की हड्ड़ी बन गई है। आज हालत ये है कि कांग्रेस भी केजरीवाल का विरोध नहीं कर सकती। ये कहना गलत नहीं होगा कि अब कांग्रेस को केजरीवाल पूरी तरह निगलने में कामयाब हो गए हैं। पाकिस्तानी पत्रकार मेहर के सामने भी कांग्रेस के नेता बेशर्मी की बात करते दिखे। वो बार बार सबूत दिखाने की बात कहते रहे जबकि पाकस्तानी पत्रकार कहती रहीं कि ऐसे मुद्दों पर सियासतदानों को दखल देना ही नहीं चाहिए।

जब उनसे उनके स्टैंड के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने जो कहा वो सचमुच केजरीवाल जैसे लोगों को शर्मसार करने वाला था। उनका कहना था हम अपनी सेना पर भरोसा रखते हैं उन्होंने कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हुआ तो हम मानेंगे कि नहीं हुआ। एक हमारे नेता है जो सेना की औपचारिक प्रेस कॉफ्रेंस करने के बाद दी गई जानकारी पर ही सवालिया निशान खड़े करने पर तुले हैं। इससे घटिया दर्जे की राजनीति शायद हिंदुस्तान ने पहले कभी नहीं देखी थी जब अपने राजनैतिक स्वार्थों के लिए चंद जयचंदों ने देश की गरिमा पर ही सवाल खड़े कर दिए। 

मंगलवार, 4 अक्टूबर 2016

ये होते कौन हैं सबूत मांगने वाले?


अमेरिका भाग्यशाली है कि केजरीवाल जैसे नेता वहां नहीं जो ओसामा के खात्मे का वीडियो उससे मांगे। केजरीवाल भी भाग्यशाली हैं क्यूंकि वो अमेरिका में होते तो सबूत के बजाय जूते खाते। केजरीवाल के सूत्र कहां हैं जो उन्हें बता रहे हैं कि ये सर्जिकल स्ट्राइक फर्जी है? क्या केजरीवाल कांग्रेस की उसी नीति पर चल रहे हैं जो पाकिस्तान परस्त बातें बोलने को मुस्लिम तुष्टिकरण मान लेती थी? यदि ऐसा है तो ये एक गंभीर स्थिति है क्यूंकि अहम बात ये नहीं कि केजरीवाल जैसे गंदी राजनीति करने वाले क्या बोलते हैं अहम बात ये है कि वो आखिर किसे प्रभावित करने के लिए ये बोल रहे हैं? केजरीवाल ने जिस कांग्रेस को हराया वो उनसे भी घटिया दर्जे की है। किसी नेता को आगे कर उससे अपनी बात कहलवा देना और फिर पल्ला झाड़ लेना उसकी पुरानी नीति रही है। आपको याद होगी दिग्विजय सिंह के गैरजिम्मेदाराना और घटिया बयानों की लंबी लिस्ट जिसे वो बकते रहे और पार्टी पल्ला झाड़ती रही। संजय निरूपम के बयान के कोई मायने नहीं लेकिन वो बिना पार्टी की शह के ऐसा नहीं कह सकते। कांग्रेस के प्रवक्ता अपने बाप केजरीवाल की भाषा बोलते दिखाई दे रहे हैं। आप कांग्रेस की बाप इसीलिए है क्यूंकि भ्रष्टाचार के नाम पर कांग्रेस से निपटते निपटते वो उसके दांव पेंच तो जान ही गई और उसके अपने घटिया तौर तरीके तो हम देखते ही रहते हैं।

बहुत सभ्य भाषा का इस्तेमाल करने का मन तो इन लोगों के खिलाफ कर नहीं रहा फिर भी सवाल इनसे पूछे जाने चाहिए। क्या ये बात बीजेपी ने कही थी कि सर्जिकल अटैक हुआ है? ये बात सेना के डीजी ने कही थी। ऐसे में ये तो साफ है कि ये लोग सेना पर सवाल उठा रहे हैं। कूटनीति और पाकिस्तान के खिलाफ रणनीति पर सोचने की केजरीवाल की औकात नहीं और कांग्रेस ने तो अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के चक्कर में इसकी कोशिश तक नहीं की। आज एक ऐसा मौका है जब पूरे देश को एक जुट खड़े होकर आतंकवाद के खिलाफ पुरजोर तरीके से अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए। पार्टियों के टुकड़ों पर पले पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को छोड़ कर हर सच्चा हिंदुस्तानी आज देश की सेना और सरकार के साथ खड़ा है लेकिन जिन्हें पंजाब, गोवा और उत्तर प्रदेश के चुनाव दिख रहे हैं वो राष्ट्रद्रोह और देश भक्ति के फर्क को ही भूल गए।

पाकिस्तान का तिलमिलाना और लगातार आतंकी हमलों की नाकाम कोशिशों से बड़ा क्या सबूत हो सकता है? विश्वस्त सूत्र ये भी बताते हैं कि सिर्फ भारत के पास ही नहीं अमेरिका के पास भी इस स्ट्राइक के पुख्ता सबूत हैं। अमेरिका के सैटेलाइट पूरी दुनिया की चौबीस घंटे निगरानी करते हैं। पाकिस्तान का तो चप्पा चप्पा उनकी जद में है। वहां हुए इस स्ट्राइक की तस्वीरें उनके सैटेलाइट कैमरों में भी कैद हैं। अमेरिका की तरफ से ये प्रस्ताव भी भारत को आया कि वो चाहे तो ये वीडियो मुहैया कराया जा सकता है। अहम सवाल ये है कि आखिर क्यूं कोई भी सबूत किसी के भी सामने रखा जाए? कांग्रेस और केजरीवाल हैं कौन जो देश की सेना या सरकार से सबूत मांगे? घटिया एक्टिंग करते हुए पाकिस्तान को बेनकाब करने के नाम पर सबूत मांगना ठीक वैसे ही है जैसे कोई दुश्मन देश का जासूस किसी दूसरे देश में अपने एजेंडे को आगे बढ़ाए।

बुधवार, 28 सितंबर 2016

The Power of Internet



इंटरनेट की ताकत बढ़ाएगी युवा उद्योगपतियों की तादाद


एक दिलचस्प जानकारी ने उत्साह बढ़ा दिया। अपनी नौकरी के 16 सालों में किसी एक विभाग को कर्मचारियों के सबसे ज्यादा निशाने पर पाया तो वो है मानव संसाधन विभाग (Human Resource Department) यानि जिसे आप आम तौर पर अपना एच आर कहते हैं। ये विभाग आपको नौकरी देने से लेकर नौकरी से निकालने तक के लिए जिम्मेदार होता है। जीवन में उम्मीद की तरंगे तब फिर खिल जाती है जब तनख्वाह बढ़ने का समय आता है। कर्मचारियों की दफ्तर में चल रही परेशानियों के लिए भी यही विभाग जिम्मेदार होता है। इसके महत्व का बखान करने के लिए मैंने ये तमाम बातें नहीं लिखीं बल्कि बदलते दौर में इसकी कमियों और खूबियों पर आयोजित होने वाली एक परिचर्चा ने ध्यान खींच लिया। देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर के विशेषज्ञ इस परिचर्चा में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली पहुंच रहे हैं। 29 और 30 तारीख को SHRM यानि society for human resource management रिलायंस की महत्वकांक्षी योजना JIO के साथ मिलकर ये बड़ा कार्यक्रम दिल्ली के ताज होटल में आयोजित कर रहे हैं।



इस कार्यक्रम की जानकारी मुझे एक ऐसे समय पर मिली जब में देश के कई युवा उद्योगपतियों के बारे में कुछ विस्तार से लिख रहा था। इन कहानियों को लिखते हुए एहसास हुआ कि जो तकनीक और समय के साथ चला वो आगे निकल गया। हमारे देश में कामयाबी की ऐसी कई कहानियां हैं जिन्होंने ऑनलाइन बिजनेस के जरिए खुद को कुछ ही समय में करोड़पति उद्योगपतियों की लिस्ट में शुमार कर लिया। स्टार्टअप इंडिया भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है और इसके मूल में भी भारत में लगातार बढ़ रही संभावनाओं को ही जेहन में रखा गया है। इस परिचर्चा में एचआर के क्षेत्र में आई चुनौतियों के अलावा डिजिटल इंडिया की संभावनाओं पर भी बात होनी है। इस चर्चा से पहले ही इन दो विषयों के मेल ने ये ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित किया।

चर्चा में एक विषय ये भी है कि क्या सचमुच नौकरियां टैलेंट के आधार पर दी जाती हैं या फिर राजनैतिक दबाव काम आता है? जो इस विषय के बारे में नहीं भी जानते हैं वो भी इस पर अपनी स्पष्ट राय रखने में ज्यादा समय नहीं लगाएंगे। वहीं क्या एच आर दबाव के बाहर रहकर काम करने का सामर्थ्य रखता है? देश और दुनिया के कई नामी गिरामी विशेषज्ञ किसी भी व्यवसाय के फलने फूलने या डूबने में एच आर की अहम भूमिका पर खुलकर बोलने वाले हैं। इस कार्यक्रम की वेबसाइट http://www.shrmiac.org/ पर कई जानकारियां मौजूद हैं। इन्हीं जानकारियों ने उत्सुकता बढ़ाई कि एच आर जैसा महत्वपूर्ण विभाग आज के दौर में कितने मायने रखता है? ये चर्चा एक ऐसे समय पर हो रही है जब डिजिटल इंडिया के जरिए रोज नए उद्योगपति पनप रहे हैं तो उनके साथ कई लोगों को नौकरी मिलने की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं। मालिक और नौकर के रिश्ते के बीच एचआर ही सबसे अहम कड़ी है।

ऐसा मौका कभी नहीं आएगा जब सभी मालिक बन जाएं। हां बदले हालात में ये जरूर मुमकिन हो गया है कि व्यवसाय अब युवाओं की पहुंच का विषय बन गया है। इस कार्यक्रम के साथ JIO ने जुड़कर युवाओं को शायद यही संदेश देने की कोशिश की है। आप भी जब ये जानेंगे कि कार्यक्रम में शामिल होने वाले सभी लोगों को JIO के प्रोडक्ट्स मुफ्त दिए जा रहे हैं तो ये शायद आपकी दिलचस्पी बढ़ा दे। अहम बात ये है कि इस फ्री इंटरनेट या आजादी का युवा क्या इस्तेमाल कर रहे हैं। फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, ओला कैब्स और न जाने ऐसे कितने ही व्यवसाय है जो हमारे ही देश के युवाओं ने इस इंटरनेट का इस्तेमाल कर पैदा किए हैं। आज ये सालों साल मेहनत कर खड़े किए गए किसी अन्य व्यवसाय के मुकाबले ज्यादा ताकतवर दिखाई देते हैं। इंटरनेट की इस ताकत पर ऐसी परिचर्चाओं का स्वागत किया जाना चाहिए। उम्मीद है युवा बदलते दौर में खुद को मिले इस मौके को समझ पाएंगे साथ ही एच आर की कार्यप्रणाली शक्ति जैसे गंभीर विषय को हम आने वाले समय में महत्व का पाएंगे। आप भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बन सकते हैं आइए तो देखते हैं क्या चिंतन होता है इन विषय पर ताज पैलेस में 29 और 30 तारीख को। ...और हां जल्दी ही ऑनलाइन की दुनिया के कुछ कामयाब व्यवसायियों के कहानियों के साथ आपके बीच कुछ पेश करूंगा।




The Power of Internet



इंटरनेट की ताकत बढ़़ाएगी युवा उद्योगपतियों की तादाद


एक दिलचस्प जानकारी ने उत्साह बढ़ा दिया। अपनी नौकरी के 16 सालों में किसी एक विभाग को कर्मचारियों के सबसे ज्यादा निशाने पर पाया तो वो है मानव संसाधन विभाग (Human Resource Department) यानि जिसे आप आम तौर पर अपना एच आर कहते हैं। ये विभाग आपको नौकरी देने से लेकर नौकरी से निकालने तक के लिए जिम्मेदार होता है। जीवन में उम्मीद की तरंगे तब फिर खिल जाती है जब तनख्वाह बढ़ने का समय आता है। कर्मचारियों की दफ्तर में चल रही परेशानियों के लिए भी यही विभाग जिम्मेदार होता है। इसके महत्व का बखान करने के लिए मैंने ये तमाम बातें नहीं लिखीं बल्कि बदलते दौर में इसकी कमियों और खूबियों पर आयोजित होने वाली एक परिचर्चा ने ध्यान खींच लिया। देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर के विशेषज्ञ इस परिचर्चा में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली पहुंच रहे हैं। 29 और 30 तारीख को SHRM यानि society for human resource management रिलायंस की महत्वकांक्षी योजना JIO के साथ मिलकर ये बड़ा कार्यक्रम दिल्ली के ताज होटल में आयोजित कर रहे हैं।



इस कार्यक्रम की जानकारी मुझे एक ऐसे समय पर मिली जब में देश के कई युवा उद्योगपतियों के बारे में कुछ विस्तार से लिख रहा था। इन कहानियों को लिखते हुए एहसास हुआ कि जो तकनीक और समय के साथ चला वो आगे निकल गया। हमारे देश में कामयाबी की ऐसी कई कहानियां हैं जिन्होंने ऑनलाइन बिजनेस के जरिए खुद को कुछ ही समय में करोड़पति उद्योगपतियों की लिस्ट में शुमार कर लिया। स्टार्टअप इंडिया भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है और इसके मूल में भी भारत में लगातार बढ़ रही संभावनाओं को ही जेहन में रखा गया है। इस परिचर्चा में एचआर के क्षेत्र में आई चुनौतियों के अलावा डिजिटल इंडिया की संभावनाओं पर भी बात होनी है। इस चर्चा से पहले ही इन दो विषयों के मेल ने ये ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित किया।

चर्चा में एक विषय ये भी है कि क्या सचमुच नौकरियां टैलेंट के आधार पर दी जाती हैं या फिर राजनैतिक दबाव काम आता है? जो इस विषय के बारे में नहीं भी जानते हैं वो भी इस पर अपनी स्पष्ट राय रखने में ज्यादा समय नहीं लगाएंगे। वहीं क्या एच आर दबाव के बाहर रहकर काम करने का सामर्थ्य रखता है? देश और दुनिया के कई नामी गिरामी विशेषज्ञ किसी भी व्यवसाय के फलने फूलने या डूबने में एच आर की अहम भूमिका पर खुलकर बोलने वाले हैं। इस कार्यक्रम की वेबसाइट http://www.shrmiac.org/ पर कई जानकारियां मौजूद हैं। इन्हीं जानकारियों ने उत्सुकता बढ़ाई कि एच आर जैसा महत्वपूर्ण विभाग आज के दौर में कितने मायने रखता है? ये चर्चा एक ऐसे समय पर हो रही है जब डिजिटल इंडिया के जरिए रोज नए उद्योगपति पनप रहे हैं तो उनके साथ कई लोगों को नौकरी मिलने की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं। मालिक और नौकर के रिश्ते के बीच एचआर ही सबसे अहम कड़ी है।

ऐसा मौका कभी नहीं आएगा जब सभी मालिक बन जाएं। हां बदले हालात में ये जरूर मुमकिन हो गया है कि व्यवसाय अब युवाओं की पहुंच का विषय बन गया है। इस कार्यक्रम के साथ JIO ने जुड़कर युवाओं को शायद यही संदेश देने की कोशिश की है। आप भी जब ये जानेंगे कि कार्यक्रम में शामिल होने वाले सभी लोगों को JIO के प्रोडक्ट्स मुफ्त दिए जा रहे हैं तो ये शायद आपकी दिलचस्पी बढ़ा दे। अहम बात ये है कि इस फ्री इंटरनेट या आजादी का युवा क्या इस्तेमाल कर रहे हैं। फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, ओला कैब्स और न जाने ऐसे कितने ही व्यवसाय है जो हमारे ही देश के युवाओं ने इस इंटरनेट का इस्तेमाल कर पैदा किए हैं। आज ये सालों साल मेहनत कर खड़े किए गए किसी अन्य व्यवसाय के मुकाबले ज्यादा ताकतवर दिखाई देते हैं। इंटरनेट की इस ताकत पर ऐसी परिचर्चाओं का स्वागत किया जाना चाहिए। उम्मीद है युवा बदलते दौर में खुद को मिले इस मौके को समझ पाएंगे साथ ही एच आर की कार्यप्रणाली शक्ति जैसे गंभीर विषय को हम आने वाले समय में महत्व का पाएंगे। आप भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बन सकते हैं आइए तो देखते हैं क्या चिंतन होता है इन विषय पर ताज पैलेस में 29 और 30 तारीख को। ...और हां जल्दी ही ऑनलाइन की दुनिया के कुछ कामयाब व्यवसायियों के कहानियों के साथ आपके बीच कुछ पेश करूंगा।




गुरुवार, 25 अगस्त 2016

हाजी अली पर बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

हाजी अली पर बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, दरगाह ट्रस्ट का बेतुका बयान, फैसल इस्लामिक संविधान के खिलाफ
हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश की इजाजत का ऐतिहासिक फैसला हाईकोर्ट ने आखिरकार सुना ही दिया। इस फैसले को सुनाते हुए कोर्ट ने इसे संवेदनशील मसला भी बताया। इस मसले पर जमकर सियासत हुई। याचिकाकर्ताओं ने जहां इस फैसले पर खुशी जताई तो हाजी अली ट्रस्ट ने इसे दूसरे के घर में घुसने की हरकत करार दिया। हाजी अली दरगाह के ट्रस्टी मुफ्ती मंजूर जिआई ने तो ये तक कह दिया कि ये इस्लामिक संविधान के खिलाफ है। मैंने उनसे पूछा भाई ये इस्लामिक संविधान क्या होता है। देश में एक संविधान है और सबके लिए समान है। जाहिर तौर पर कोर्ट ने पूरे मामले को समझते हुए जिम्मेदारी के साथ फैसला लिया। आप किसी परंपरा को बचाए रखने के नाम पर क्या करते हैं वो सामाजिक मसला है लेकिन जब कानून के आधार पर बात होगी तो देश में इस तरह की कई परंपराओं को कचरे की टोकरी में डालना ही होगा।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की मध्य प्रदेश इकाई की संयोजक सफिया अख्तर से भी बात हुई। सफिया ने इसे सभी महिलाओं की जीत करार देते हुए कहा कि महिलाओं को बराबर का अधिकार मिलना ही चाहिए। हमें पहले से ही भरोसा था कि कोर्ट का फैसला हमारे पक्ष में आएगा। वहीं उनके वकील फिरोज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में भी इसी आधार पर बहस होगी और निश्चित ही वहां भी फैसला हमारे ही पक्ष में आएगा। हाजी अली दरगाह ट्रस्ट इस फैसले से बौखलाया हुआ है और वो कोर्ट के फैसले को गलत तक करार दे रहा है।

ट्रस्टी जिआई के मुताबिक ये हमारे घर में घुसने की कोशिश है। वो इस मुद्दे को सियासी रंग देने से भी नहीं चूक रहे हैं। वहीं इस्लाम के जिन जानकारों से बात हुई वो भी घुमा फिराकर बात करते दिखे। मौलान निजामी के मुताबिक इस्लाम महिला पुरुषों को बराबर का अधिकार देता है लेकिन हर धर्म स्थल के अपने तौर तरीके होते हैं और उनका सम्मान होना चाहिए। वो कोर्ट के फैसले से सहमत होने की बात तो कहते हैं लेकिन इस फैसले का स्वागत करने से इंकार करते हैं। ये मामला इस्लाम से जोड़ने की कोशिश भी की जा रही है लेकिन पहले भी इस्लाम के कई जानकार कह चुके हैं कि जब इस्लाम में दरगाह पर जाना ही हराम है तो फिर वहां स्त्री पुरुष के जाने पर क्या बहस की जाए।


हाल ही में तृप्ति देसाई ने शनि शिंगणापुर को लेकर एक संघर्ष किया था उन्हें इसमें जीत भी मिली और उन्होंने आखिरकार गर्भ गृह में पहुंचकर शनिदेव को स्नान भी करवाया। अब बारी हाजी अली दरगाह की है। कोर्ट का फैसला आ गया है लेकिन अब हाजी अली में क्या इस फैसले के बावजूद महिलाओं का प्रवेश संभव हो पाएगा? ये सवाल दरगाह ट्रस्ट के कड़े रुख के बाद उठ रहा है। ट्रस्ट कोर्ट के आदेश के खिलाफ ही खड़ा हा गया है और इस्लामिक संविधान की बात कर रहा है। सबसे पहले तो उनके इस बयान को गंभीरत से लेना चाहिए। ये समानता की लड़ाई को धार्मिक रंग देने की एक कोशिश भी है। देश कानून से चलता है और वो सबके लिए बराबर है। बॉम्बे हाइकोर्ट के इस फैसले ने ये भी साफ कर दिया है कि कानून सबके लिए बराबर वो दरगाह और मंदिर के लिए अलग अलग नहीं हो सकता।

साभार- janwadi.blogspot.com

योगेश्वर श्रीकृष्ण को भूलकर, माखनचोर के पीछे क्यों  पड़े रहते हैं?

लेखक- श्रीराम तिवारी

हिन्दू पौराणिक मिथ अनुसार  भगवान् विष्णु के दस अवतार माने गए हैं। कहीं-कहीं २४ अवतार भी माने गए हैं।  अधिकांश हिन्दू मानते हैं कि केवल श्रीकृष्ण अवतार ही  भगवान् विष्णु का पूर्ण अवतार हैं। हिन्दू मिथक अनुसार श्रीकृष्ण से पहले विष्णु का 'मर्यादा पुरषोत्तम' श्रीराम अवतार हुआ और वे केवल मर्यादा के लिए जाने गए। उनसे पहले परशुराम का अवतार हुआ, वे  क्रोध और क्षत्रिय-हिंसा के लिए जाने गए। उनसे भी पहले 'वामन' अवतार हुआ जो न केवल बौने थे अपितु दैत्यराज प्रह्लाद पुत्र राजा – बलि को छल से ठगने के लिए जाने गए। उनसे भी पहले 'नृसिंह' अवतार हुआ, जो आधे सिंह और आधे मानव रूप के थे अर्थात पूरे मनुष्य भी नहीं थे। उससे भी पहले 'वाराह' अवतार हुआ जो अब केवल एक निकृष्ट पशु  ही माना जाता है। उससे भी पहले कच्छप अवतार हुआ, जो समुद्र मंथन के काम आया। उससे भी पहले मत्स्य अवतार हुआ जो इस वर्तमान ' मन्वन्तर' का आधार  माना गया। डार्विन के वैज्ञानिक विकासवादी सिद्धांत की तरह यह 'अवतारवाद' सिद्धांत भी वैज्ञानिकतापूर्ण है। आमतौर पर विष्णु के ९ वें अवतार 'गौतमबुद्ध ' माने गए हैं, दसवाँ अवतार कल्कि के रूप में होने का इन्तजार है। लेकिन हिन्दू मिथ भाष्यकारों और पुराणकारों ने श्री विष्णुके श्रीकृष्ण अवतार का जो भव्य महिमामंडन किया है वह न केवल भारतीय मिथ-अध्यात्म परम्परा में बेजोड़ है ,बल्कि विश्व के तमाम महाकाव्यात्मक संसार में भी श्रीकृष्ण का चरित्र ही सर्वाधिक रसपूर्ण और कलात्मक है।
श्रीमद्भागवद पुराण में वर्णित श्रीकृष्ण के गोलोकधाम गमन का- अंतिम प्रयाण वाला दृश्य पूर्णतः मानवीय  है। इस घटना में कहीं कोई दैवीय चमत्कार नहीं अपितु कर्मफल ही झलकता है। अपढ़ -अज्ञानी  लोग कृष्ण पूजा के नाम पर वह सब ढोंग करते रहते हैं जो कृष्ण के चरित्र से मेल नहीं खाते। आसाराम जैसे कुछ महा धूर्त लोग अपने धतकर्मों को औचित्यपूर्ण बताने के लिए  कृष्ण की आड़ लेकर कृष्णलीला या रासलीला को बदनाम करते रहते हैं। श्रीकृष्ण ने तो इन्द्रिय सुखों पर काबू करने और समस्त संसार को निष्काम कर्म का सन्देश दिया  है। आपदाग्रस्त द्वारका में जब यादव कुल आपस में लड़-मर रहा था। तब दाहोद-झाबुआ के बीच के जंगलों में श्रीकृष्ण किसी मामूली भील के तीर से घायल होकर  निर्जन वन में एक पेड़ के नीचे कराहते हुए पड़े थे । इस अवसर पर न केवल काफिले की महिलाओं को भीलों ने लूटा बल्कि गांडीवधारी अर्जुन का धनुष भी भीलों ने  छीन लिया । इस घटना का वर्णन किसी लोक कवि ने कुछ इसतरह किया है:- जो अब कहावत  बन गया है।

      ''पुरुष  बली नहिं  होत है, समय होत बलवान।
       
भिल्लन लूटी गोपिका, वही अर्जुन वही बाण।।''

कोई भी व्यक्ति उतना महान या  बलवान नहीं है ,जितना कि 'समय' बलवान होता है। याने वक्त सदा किसी का एक सा नहीं रहता और मनुष्य वक्त के कारण  ही कमजोर या ताकतवर हुआ करता है। कुरुक्षेत्र के धर्मयुद्ध में, जिस गांडीव से अर्जुन ने हजारों शूरवीरों को मारा, जिस गांडीव पर पांडवों को बड़ा अभिमान था, वह गांडीव भी श्रीकृष्ण की रक्षा नहीं कर सका। दो-चार भीलोंके सामने अर्जुनका वह गांडीव भी बेकार साबित हुआ।  परिणामस्वरूप 'भगवान' श्रीकृष्ण घायल होकर 'गोलोकधाम' जाने का इंतजार करने लगे।

पराजित-हताश अर्जुन और द्वारका से प्राण बचाकर भाग रहे  यादवों के स्वजनों- गोपिकाओं को भूख प्यास से तड़पते  हुए  मर जाने का वर्णन मिथ-इतिहास जैसा चित्रण नहीं लगता। यह कथा वृतांत कहीं से भी चमत्कारिक  नहीं लगता। वैशम्पायन वेदव्यास ने  श्रीमद्भागवद में  जो मिथकीय वर्णन प्रस्तुत किया है, वह आँखों देखा हाल जैसा लगता है। इस घटना को 'मिथ' नहीं बल्कि इतिहास मान लेने का मन करता है। कालांतर में चमत्कारवाद से पीड़ित, अंधश्रद्धा में आकण्ठ डूबा हिन्दू समाज इस घटना की चर्चा ही नहीं करता। क्योंकि इसमें ईश्वरीय अथवा मानवेतर  चमत्कार  नहीं है। यदि विष्णुअवतार- योगेश्वर श्रीकृष्ण एक भील के हाथों घायल होकर मूर्छित पड़े हैं तो उस घटना को अलौकिक कैसे कहा जा सकता है? जो मानवेतर नहीं वह कैसा अवतार? किसका अवतार? किन्तु अधिकांश सनातन धर्म अनुयाई जन द्वारकाधीश योगेश्वर श्रीकृष्ण को छोड़कर, पार्थसारथी-योगेश्वर  श्रीकृष्ण को भूलकर   माखनचोर  के पीछे पड़े हैं। लोग श्रीकृष्ण के 'विश्वरूप' को भी पसन्द नहीं करते उन्हें तो   'राधा माधव' वाली छवि ही भाती  है।

रीतिकालीन कवि बिहारी ने कृष्ण विषयक इस हिन्दू आस्था का वर्णन इस तरह किया है :-

 “मोरी  भव  बाधा  हरो ,राधा  नागरी  सोय।

 
जा तनकी  झाईं परत ,स्याम हरित दुति होय।।

या

मोर मुकुट कटि काछनी ,कर मुरली उर माल।

 
अस बानिक मो मन बसी ,सदा  बिहारीलाल।।''

जिसके सिर पर मोर मुकुट है, जो कमर में कमरबंध बांधे हुए हैं, जिनके हाथों में मुरली है और वक्षस्थल पर वैजन्तीमाला है, कृष्ण की वही छवि  मेरे [बिहारी ]मन में सदा निवास करे!
कविवर रसखान ने भी इसी छवि को बार-बार याद किया है।

 '
या लकुटी और कामरिया पर राज तिहुँ पुर को तज डारों '

 या

 '
या छवि को रसखान बिलोकति बारत कामकला निधि कोटि'

संस्कृत के भागवतपुराण-महाभारत, हिंदी के प्रेमसागर-सुखसागर और गीत गोविंदं तथा कृष्ण भक्ति शाखा के अष्टछाप-कवियों द्वारा वर्णित कृष्ण-लीलाओं के विस्तार अनुसार  'श्रीकृष्ण' इस भारत भूमि पर-लौकिक संसार में श्री हरी विष्णु के सोलह कलाओं के सम्पूर्ण अवतार थे। वे न केवल साहित्य, संगीत, कला, नृत्य और योग विशारद थे। अपितु वे इस भारत भूमि पर आम लोगों के लिए लड़ने वाले योद्धा थे जिन्होंने इंद्र  इत्यादि जैसी दैवीय शक्तियों या ताकतवर लोगों के अलाव वैदिक देवताओं के  विरुद्ध शंखनाद किया था। खेद की बात है कि श्रीकृष्ण के इस रूप को भूलकर लोग उनकी बाल छवि वाली मोहनी मूरत पर ही फ़िदा होते रहे। श्रीकृष्ण ने  'गोवर्धन पर्वत क्यों उठाया? यमुना नदी तथा गायों की पूजा के प्रयोजन क्या थाइन सवालों का एक ही उत्तर है कि श्रीकृष्ण प्रकृति और मानव समेत तमाम प्रणियों के शुभ चिंतक थे। श्रीकृष्ण ने कर्म से, ज्ञान से और बचन से मनुष्यमात्र को नई  दिशा दी। उन्होंने विश्व को कर्म योग और भौतिकवाद से जोड़ा।  शायद इसीलिये उनका चरित्र विश्व के तमाम महानायकों में सर्वश्रेष्ठ है। यदि वे कोई देव अवतार नहीं भी थे तो भी वे इतने महान थे कि उनके मानवीय अवदान और चरित्र की महत्ता किसी ईश्वर से कमतर नहीं हो सकती।