मुरथल में महिलाओं के कपड़ों की तस्वीरों और
चश्मदीदों के मुंह से सुनी कहानी हर किसी के रौंगटे खड़े कर दे रही है। सड़कों पर
गाड़ियों को रोक कर वहशियों ने महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया। गाड़ियों से बच्चों
को निकाल निकाल कर फेंका गया। इस तस्वीर के दो पहलु हैं। एक मौका ए वारदात से मिली
तस्वीरें और चीजों के साथ ही वहां मौजूद बहुत से लोगों द्वारा बयां की गई उस
खतरनाक मंजर की कहानी। तो दूसरी तस्वीर वो है जो पहले दिन से हरियाणा पुलिस दिखा
रही है। यहां किसी ने शिकायत नहीं की? हमें कोई भी चश्मदीद ऐसा नहीं मिला। अभी कुछ देर
पहले हरियाणा पुलिस की क्राइम ब्रांच की डीआईजी डॉ. रश्मि सिंह लाइव थीं। उनसे जब
ये सवाल किया कि जिन चश्मदीदों तक मीडिया पहुंच रहा है आप क्यूं नहीं पहुंच पा
रहीं तो उनका जवाब था ये लोग पुलिस के सामने नहीं आ रहे। उन्होंने आगे कहा कि
ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट उत्सव बैंस ने हमें चंडीगढ़ बुलवाया और इंतजार करवाया
लेकिन किसी भी चश्मदीद से नहीं मिलवाया। डीआईजी साहिबा को तब तक जानकारी नहीं थी
कि उत्सव भी मेरे साथ लाइव मौजूद थे। उत्सव ने उन्हें काटते हुए कहा कि ये सरासर
झूठ बोल रहीं हैं और इनकी बात सुनकर तो मेरा हरियाणा पुलिस की कार्रवाई से विश्वास
ही उठ गया। डीआईजी डॉ. रश्मि सिंह को भी जब एहसास हुआ कि उन्होंने उत्सव के बारे
में बातें उन्हीं के सामने कह दीं तो उन्हें अपना स्टैंड बनान पड़ा और वो अपनी बात
पर अड़ी रहीं जबकि उत्सव का कहना था कि हम मैडम का इंतजार चंडीगढ़ में कर रहे थे
और चश्मदीद दिल्ली पहुंच चुके हैं जहां मैं उनकी मिलवाना चाह रहा हूं लेकिन ऐसा लग
रहा कि हरियाणा पुलिस चश्मदीदों से मिलना ही नहीं चाह रही और ऐसे में इस मामले को
सीबीआई के हवाले कर देना चाहिए।
पहला बड़ा सवाल तो ये उठता है कि पुलिस को कबसे
अपनी तफ्तीश के लिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मोहताज होना पड़ गया है। जिन
चश्मदीदों तक मीडिया बड़ी आसानी से पहुंच पा रहा है वहां तक हरियाणा पुलिस क्यूं
नहीं पहुंच पा रही है? ट्रिब्यून अखबार की खबर के मुताबिक तो पहले दिन ही पुलिस ने वहां कई
लोगों को मामला रफा दफा करने की सलाह देकर वापस भेज दिया था। स्थानीय लोगों ने
महिलाओं को बचाया था। खेतों में महिलाओं को खींच कर ले जाते की लोगों ने देखा है।
इस सबके बावजूद मेरे साथ मौजूद हरियाणा बीजेपी के उपाध्यक्ष राजीव जैन और क्राइम
ब्रांच डीआईजी ने इस बात तक को स्वीकार नहीं किया कि वहां कुछ होने की कम से कम
आशंका हो सकती है। उन्हें सबकुछ नॉर्मल दिखाई पड़ रहा है। क्या ये पुलिस की नाकामी
को छिपाने की कोशिश है? क्या ये हरियाणा सरकार की किरकिरी होने के डर से उठाया गया कदम है?
और सबसे बड़ी वजह कि
एक बार शुरूआत में जो बयान हरियाणा पुलिस की तरफ से आया उसे ही बचाने के चक्कर में
उस घटना को सामने लाने वाली संभावनाओं से बच रही है वही पुलिस?
हरियाणा पुलिस का ये बयान कि उनके पास कोई
चश्मदीद नहीं आ रहा दो तरफ इशारा करते हैं या तो सचमुच यहां कुछ नहीं हुआ या फिर
हरियाणा पुलिस इस मामले को दबाने में लगी हुई है। ऐसा कुछ हुआ है के कई प्रमाण
मिलते हैं, जैसे वहां मौजूद चश्मदीद और कपड़े, लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं हुआ पर
पुलिस का एक भी तर्क जंचने वाला नहीं है। इस पूरे मामले में हरियाणा पुलिस की
भूमिका पर पहले ही दिन से सवाल उठ रहे हैं। अब हरियाणा सरकार भी सवालों के घेरे
में है। जाट आंदोलन को हवा देने की कोशिश पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा के नजदीकियों
की तरफ से हुई थी इस तरह के सबूत भी सरकार की तरफ से रखे गए लेकिन अब मुरथल की
सनसनीखेज कहानी ने हरियाणा सरकार और पुलिस को पूरी तरह से कटघरे में खड़ा कर दिया
है।
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