यूं तो शिव की महिमा को
शब्दों में पिरोना असंभव है, क्यूंकि वो अनादि हैं, महाकाल हैं, विश्वेश्वर हैं। शिव
सर्वस्व हैं और जो शिव को जो नहीं जान पाता वो तो शव ही है। शंभू यानि स्वयंभू की
यात्रा स्वयं से ही आरंभ होती है। शिव और आपके एकाकार हो जाने को ही आप शिवोहं
कहते हैं। शिव को स्वरूप में बांधना संभव नहीं क्यूंकि वो महाकाल है और अनादि हैं।
उनके जो गुण हम जानते हैं, उन्हें अपने स्वरूप में पहचानने की कोशिश करें।
भूतनाथ
बाबा को इर्दगिर्द भूत
प्रेत निशाचर सभी को पाया जाता हैं। उन्हें भूतों का नाथ कहा जाता है। भूत अशुभ और
भय का भी संकेत करते हैं लेकिन ये भगवान शिव का ही सामर्थ्य है कि वो पतित से पतित
को भी अपनी शरण में लेते हैं। शिव ही सिखाते हैं वेदांत के अद्वैत को। अच्छे बुरे
का भेद त्याग कर सबको शरण में लेने वाला ही अद्वैत को जान सकता है। शिव का स्वरूप
ही वेदांत का मूल है। क्या शिव के इस गुण को हम स्वयं में धारण नहीं कर सकते? क्या हम भेद से ऊपर नहीं
उठ सकते? शिव की शरण में आने से उनके स्वरूप को जानने से ये आपका भी स्वभाविक गुण बन
सकते है।
नीलकंठ
सेवा और परपीड़ा को स्वयं
धारण कर लेने का सबसे बड़ा प्रतीक भगवान शिव का यही गुण हैं। उन्हें औरों के हित
में विष को अपने कंठ में धारण कर लेने के लिए ही नीलकंठ कहा जाता है। कथाओं की
बातों को छोड़ कर महादेव के इस स्वरूप पर विचार करें। किसी भी काल में त्याग का ये
स्वरूप देखने को नहीं मिलता। यही वजह है कि शिव देवों के भी देव हैं। यही वजह है
कि वो सबसे शक्तिशाली भी हैं। शिव का ये गुण हमें सिखाता है कि परपीड़ा को धारण
करने वाला ही शक्तिशाली होता है, स्वार्थ सिद्धि वालों का कल्याण संभव ही नहीं।
शिव के इस गुण को हर मनुष्य धारण कर सकता है।
महाकाल
काल यानि समय ही हमें जीवन
के अनुभव देता है। हम अपनी यादों को इसी समय के साथ संजोते जाते हैं। हम भूतकाल के
अनुभवों और भविष्य की इच्छाओं के साथ जीते हैं। काल को वही जीत सकता है जो वर्तमान
में जीवित है। जो इस सुषुप्त जगत में वर्तमान मे जागृत है वही काल से ऊपर है।
भगवान शंकर को महाकाल इसीलिए कहा जाता है क्यूंकि वे पूर्ण योगी हैं और पूर्णतः
जागृत हैं। महाकाल काल से परे होते है। काल के बंधन में वही जकड़ा है जो काल के
अस्तित्व में उलझा है। महाकाल का ये रूप हमें काल से परे होने यानि भूत भविष्य के
चिंतन से ऊपर उठकर वर्तमान में जागृत होने की शक्ति देता है। ये गुण हम सब धारण कर
सकते हैं।
भोलेनाथ
जो भेद नहीं करता, जो काल
का चिंतन नहीं करता, जो हमेशा परपीड़ा से करुणित रहता है वो तो भोला ही होगा। ये
जगत ऐसे स्वरूप को भोल स्वरूप कहता है। दरअसल हम इतनी मतलबी दुनिया का हिस्सा हैं
कि इन दैवीय गुणों को धारण करने वाला हमें इस चालबाज दुनिया में भोला भंडारी दिखाई
पड़ता है। हांलाकि यही हर मानवमात्र का निश्छल स्वरूप है। आप भोले के इस रूप को
धारण करके देखिए और फिर सत्य की शक्ति का अनुभव कीजिए। स्वयं भगवान शंकर का तो यही
रूप है और जो मनुष्य उनके इस रूप को धारण करता है उसके नाथ वो स्वयं बनकर उसकी
रक्षा करते हैं।
रुद्र
रौद्र से बना है रुद्र। एक
तरफ भोला भंडारी दूसरी तरफ रौद्र रूप। सृष्टि व्यवहार कि शिक्षा सिवाय भगवान शिव
के विभिन्न रूपों के और कोई रूप नहीं दे सकता। वीर हनुमान जी को शिव का रुद्रवतार
भी कहा जाता है, भगवान शिव का अपना नाम भी रुद्र ही है। रुद्र का अर्थ सिर्फ क्रोध
से लगाना उसका सामान्य अर्थ होगा। दरअसल अन्याय और प्रकृति विरुद्ध कृत्यों के
खिलाफ जिस उग्रता को हम सब महसूस करते हैं लेकिन उसे दबाते रहते हैं का फर्क ही
हमें और रुद्र के अवतार को भिन्न करता है। हनुमान जी को उनकी शक्तियों का भास होते
ही वो विराट रूप धर परम शक्ति के निधान बन जाते हैं। रुद्र भी समस्त सृष्टि का नाश
करने की शक्ति रखते हैं। अन्याय को बर्दाश्त न कर पुरजोर तरीके से अपनी आवाज को
बुलंद करने की शक्ति ये रूप सिखाता है। आवाज बुलंद करते हुए यदि शिव और हनुमान जी
के इस स्वरूप का चिंतन भी रहे तो देखिए कैसे आप अपने भीतर रूद्र की शक्ति को महसूस
करते हैं। भगवान शिव आपका कल्याण करें।
Uttam jankari. JAI BABA BHOLENATH.
जवाब देंहटाएंUttam jankari. JAI BABA BHOLENATH.
जवाब देंहटाएंgreat information sir.. :)
जवाब देंहटाएंSahi kaha vaise bhi shiv ko antiriksh ka devata kehte hai.jinki jataaye pore bhrahmand main feli hai.jo grho ko bhoot prait aatmao ko apne adhin rakhte hai.jiska na aadi hai na aant. Wohi hai mahakaal shiv bholenath. Kaal bhi uska kuch na kare jo bhakt ho mahakaal ka.jai mahakaal
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