शनिवार, 25 जून 2016

मैं क्यूं लिखता हूं भगवा आतंकवाद पर? सारंग उपाध्याय से जानिए।

क्‍या धर्म, सभ्‍यता और संस्‍कृति को मोहरा बनाकर सियासत इसे खत्‍म कर देना चाहती है?
(लेखकः सारंग उपाध्याय)
क्‍या इस देश में हिंदू आतंकवाद नाम की कोई चीज है? क्‍या सच में 2008 में महाराष्‍ट्र के मालेगांव में हुए बम धमाकों में हिंदू कट्टरपंथियों का हाथ था? क्‍या इन बम धमाकों के साथ श्‍ाुरू हुआ 'भगवा आतंकवाद' नाम का प्रचार एक हकीकत थी? यह सब सवाल बीते कुछ दिनों में साध्‍वी प्रज्ञा को एनआईए द्वारा क्‍लीन चिट दिए जाने के बाद खुलकर सामने आए हैं, लेकिन उससे भी ज्‍यादा अहम चीज साथी पत्रकारhttps://www.facebook.com/drpraveentiwari द्वारा लगातार इस मामले को लेकर किए जा रहे कुछ अहम खुलासे हैं, जो पिछली कांग्रेस सरकार को कटघरे में खडा करते हैं। साथी प्रवीण ने लगातार कई ऐसी रिपोर्ट्स साझा की है, जो आपको यह अहसास दिलाती है कि कैसे सत्‍ता प्रशासन, पुलिस और खुफिया तंत्र का अपने पक्ष में इस्‍तेमाल कर बेगुनाहों को मोहरा बनाती है।

प्रवीण तिवारी ने लगातार इस पूरे मामले में दिल्‍ली से लेकर मुंबई और मुंबई से लेकर बंगलुरु और बंगलुरु से लेकर इंदौर और वहां से देवास तक के सूत्रों को जोडकर कुछ ऐसी चीजें सामने रखी हैं, जिन पर एनआई के अधिकारियों से लेकर इस मामले के प्रमुख जांच अधिकारी भी सहमति जाहिर करते हैं।
हिंदू और भगवा आतंकवाद का प्रचार जितनी आसानी से किया गया, उसके पीछे की हकीकत संभव हो इतनी आसानी से एक प्रचार का हिस्‍सा नहीं बनेगी क्‍योंकि वाकई नकारात्‍मकता फैलती तेजी से है। संभव हो इस मामले की अभी और भी कई परतें हो, जो अभी तक खुली न हों, लेकिन जो भी फिलहाल सामने है, वह न केवल शर्मनाक है, बल्‍कि धर्म, संस्‍कृति की सियासत करने वाले राजनेताओं और राजनीति के प्रति हमें और भी घृणा से भर देती है।
प्रवीण तिवारी ने आज ही इस पूरे मामले में अपनी पांचवी स्‍टोरी ब्‍लॉग के रूप में
में साझा की है, जिसमें उन्‍होंने बाकायदा एनआईए की चार्जशीट के दस्‍तावेज साझा करते हुए ये साबित किया है कि इस मामले में कैसे गवाहों पर दबाव बनाया गया, उन्‍हें प्रताडित किया गया। आप इसे यहां देख सकते हैं- (http://khabar.ibnlive.com/…/dr…/malegaon-blast-4-493586.html)
प्रवीण के लगातार प्रयासों के चलते उन्‍हें कई बार सरकार का चमचा से लेकर पार्टी का कार्यकर्ता भी कहा गया, लेकिन इसके लिए भी उन्‍हें बाकायदा सफाई दी- (http://khabar.ibnlive.com/…/dr-…/sadhvi-pargya-2-479388.html) लेकिन बतौर पत्रकार प्रवीण की कोशिश यही रही कि वह इस मामले की तह तक जाए और तथ्‍यों के साथ सच को जिस रूप में है उसे सामने रखे।
बहरहाल, विडंबना यह है कि इस काम की कहीं कोई चर्चा नहीं है, लेकिन इसके ठीक विपरित 'हिंदू और भगवा आतंकवाद' के मुद्दे को जमकर भुनाने का प्रयास किया गया, और यह शब्‍द एक तरह से सियासत के इस्‍तेमाल के लायक बन गया।
सच क्‍या है, यह इतिहास तय करेगा, लेकिन इसी इतिहास के समानांतर चल रहा वक्‍त एक कटघरा है, जो दुनिया के तमाम इतिहासों से सवाल-जवाब करता है।
मालेगांव मामले पर मैं यहां साथी प्रवीण की सभी स्‍टोरी की लिंक दे रहा हूं। इसे पढा जाना चाहिए और कुछ सवालों के साथ हमें निष्‍पक्षता के साथ ये सवाल सियासत से पूछना चाहिए कि आखिर धर्म और संप्रदाय को राजनीति का केंद्र कब तक बनाया जाएगा? चाहे वह हिंदू हो या बेगुनाह मुस्‍लिम युवा, यदि वह ऐसी सियासत की भेंट चढ रहा है और उसके नाम पर सभ्‍यता और संस्‍कृति के प्रति आम जनमानस में नफरत भरी जा रही है, तो यह खतरनाक है।
मेरा नीजि रूप से यह मानना है कि धार्मिक कट्टरता, सांप्रदायिकता और सामाजिक विद्वेष को धर्म को गरिया कर या फिर उसके प्रति अपनी नास्‍तिकवादी और कथित प्रगतिशील नीजि राय समाज और जनता पर थोपकर खत्‍म नहीं हो सकती। इसका इलाज उन्‍हीं धर्मों के भीतर शांति के संदेशों में छिपा है, जिसे गांधी साथ लेकर चलना चाहते थे। भारत के संदर्भ में यही व्‍यवहारिक भी है।
खैर, ये लिंक है, आप देख सकते हैं, और हां हाथ जोडकर विनती है कि मेरा बीजेपी संघ और किसी पार्टी से कोई कनेक्‍शन नहीं है, और न ही कैसे भी करके उसे जोडना। 

शुक्रवार, 3 जून 2016

रामवृक्ष यादव को इतना बड़ा ‘वृक्ष’ किसने बनाया, क्या ‘यादव’ होना अब तक कार्रवाई से बचने की वजह?

हथियारों का जखीरा, तीन हजार से ज्यादा उपद्रवी क्या बिना राजनैतिक प्रश्रय के पैदा हो गए? पुलिस लगातार कार्रवाई कर रही थी, बातचीत की कोशिश पहले से चल रही थी, जैसे जवाब देने वाली समाजवादी सरकार के पास इस बात का जवाब नहीं कि इतने सालों से चले आ रहे इस जमीन विवाद में इन उपद्रवियों के अवैध कब्जे वाली जमीन पर बिजली पानी किसके कहने पर दिया जा रहा था? उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने भी कई अहम सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि कई तरीके होते हैं जब इस तरह के उपद्रवियों को काबू करने की रणनीति बनाई जाती है। इनका बिजली पानी काट दिया जाता तो खुद ही कुछ दिनों में तिलमिला कर बाहर आ जाते। इतनी बड़ी तादाद में ये असलाह जमा कर रहे थे और किसी को कानों कान खबर नहीं थी? ये बात किसी को हजम नहीं होगी। उत्तर प्रदेश सरकार की सफाई तो और ज्यादा हास्यास्पद है। सीएम अखिलेश यादव ने पुलिस को ही कटघरे में खड़ा कर दिया और कहा कि पुलिस की तैयारियों में खामियां थी।


बीजेपी खुलकर कह रही है कि शिवपाल यादव की शह पर ये वृक्ष पनपा है। अगर इन आरोपों में दम है तो क्या ऐसे लोगों के पनपने के पीछे भी यादव तुष्टिकरण की नीति तो नहीं? प्रकाश सिंह ने साफ कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस सुरक्षा व्यवस्था से ज्यादा इस दबाव में रहती है कि कौन किसका खास है। माननीय हाईकोर्ट का आदेश न होता तो अब भी पुलिस कोई कार्रवाई करने नहीं जा पाती। हाईकोर्ट के आदेश के बाद ही पुलिस के आला अधिकारी यहां इन लोगों से बातचीत करने के लिए गए थे। उपद्रवियों ने अपनी सेना तैयार कर रखी थी और ठाट से ये सरकारी जमीन पर काबिज थे। अभी तक सिर्फ पुलिस और अधिकारियों में यादवों को तरजीह देने वाली सपा सरकार पर इस अपराधी रामवृक्ष यादव को भी पालने का आरोप लग रहा है। इस मुद्दे पर पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने भी कहा कि पुलिस की स्तिथि बता रही है कि वो इस मामले की जांच निष्पक्ष नहीं कर पाएगी। जाहिर तौर पर इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए।

इस मामले की सीबीआई जांच का मुद्दा उठने के पीछे दरअसल वजह ही किसी ताकतवर आदमी का इन लोगों के पीछे होना है। बीजेपी जहां शिवपाल यादव को कटघरे में खड़ा कर रही थी तो खुद यादव ने सामने आकर सीबीआई जांच की बात को खारिज कर उन पर और सवाल खड़े कर दिए। समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता जूही सिंह से बात हुई तो उन्होंने कहां कमिश्नर से न्यायिक जांच करवाई जा रही है और यदि इस जांच से संतुष्टि नहीं हुई तो कोई भी जांच करवाई जा सकती है। कोई भी जांच? यानि समाजवादी पार्टी के कुछ नेता दबी जुबान से सीबीआई जांच से इंकार नहीं कर रहे हैं। एक बात तो साफ है कि मथुरा में कलेक्टर कार्यालय के बाजू में इतनी बड़ी जमीन पर सरकारी बिजली पानी का इस्तेमाल कर ठाठ से रह रहे उपद्रवियों के लिए समाजवादी पार्टी सरकार का रुख नरम ही था। पुलिस को कोर्ट की फटकार के बाद जाना पड़ा नहीं तो इस मामले में उन पर दबाव साफ देखने को मिलता है।

पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने ये भी माना कि पुलिस राजनेताओं के हाथों की कठपुतली भर रह जाती है। वो खुद कार्रवाई कर ही नहीं सकती है। लोकल इंटेंलीजेंस के कमजोर होने की बात कही जा रही है लेकिन उससे अहम सवाल ये है कि क्या कभी इन लोगों के बारे में पड़ताल करने की जरूरत भी पड़ी? बहुत साफ है कि पुलिस इन पर कभी हाथ डाल ही नहीं पाई थी तो इनके पास कितना असलाह है कितने लोग हैं जैसी बातों पर क्या ही विचार किया गया होगा। एसपी जैसे सीनियर अधिकारी का मौके पर जाना भी ये बात बहुत साफ कर देता है कि मामले को बातचीत से सुलझाने का विचार था। क्या बातचीत हुई? क्यूं पुलिस के दो आला अधिकारी मारे गए जबकि कोई अन्य पुलिस वाला नहीं मारा गया? ये भी बहुत अहम सवाल हैं। दरअसल इससे एक आशंका ये भी पैदा होती है कि हमला बातचीत के दौरान शुरू हुआ या पुलिस बल पहुंचने के साथ ही? जांच में ये बात साफ होगी लेकिन एक बात तो बहुत साफ है कि ये अपराधि बहुत बेखौफ थे और पुलिस को कुछ नहीं समझ रहे थे। हमारे दो पुलिसवाले शहीद हो गए और यदि उनकी शहादत न होती तो शायद ये लोग बेनकाब भी न होते। जैसा प्रकाश सिंह कह रहे हैं यदि सीबीआई जांच नहीं हुई तो शायद इस मामले की जांच के साथ भी न्याय न हो पाए। शिवपाल बीजेपी पर हमला करते हुए कह रहे हैं या तो सबूत पेश करो या फिर माफी मांगो। ये बीजेपी की भी जिम्मेदारी है कि वो अपने आरोपों पर पुख्ता सबूत पेश करे।