क्या धर्म, सभ्यता और संस्कृति को मोहरा बनाकर सियासत इसे खत्म कर देना चाहती है?
(लेखकः सारंग उपाध्याय)
क्या इस देश में हिंदू आतंकवाद नाम की कोई चीज है? क्या सच में 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम धमाकों में हिंदू कट्टरपंथियों का हाथ था? क्या इन बम धमाकों के साथ श्ाुरू हुआ 'भगवा आतंकवाद' नाम का प्रचार एक हकीकत थी? यह सब सवाल बीते कुछ दिनों में साध्वी प्रज्ञा को एनआईए द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के बाद खुलकर सामने आए हैं, लेकिन उससे भी ज्यादा अहम चीज साथी पत्रकारhttps://www.facebook.com/drpraveentiwari द्वारा लगातार इस मामले को लेकर किए जा रहे कुछ अहम खुलासे हैं, जो पिछली कांग्रेस सरकार को कटघरे में खडा करते हैं। साथी प्रवीण ने लगातार कई ऐसी रिपोर्ट्स साझा की है, जो आपको यह अहसास दिलाती है कि कैसे सत्ता प्रशासन, पुलिस और खुफिया तंत्र का अपने पक्ष में इस्तेमाल कर बेगुनाहों को मोहरा बनाती है।
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प्रवीण तिवारी ने लगातार इस पूरे मामले में दिल्ली से लेकर मुंबई और मुंबई से लेकर बंगलुरु और बंगलुरु से लेकर इंदौर और वहां से देवास तक के सूत्रों को जोडकर कुछ ऐसी चीजें सामने रखी हैं, जिन पर एनआई के अधिकारियों से लेकर इस मामले के प्रमुख जांच अधिकारी भी सहमति जाहिर करते हैं।
हिंदू और भगवा आतंकवाद का प्रचार जितनी आसानी से किया गया, उसके पीछे की हकीकत संभव हो इतनी आसानी से एक प्रचार का हिस्सा नहीं बनेगी क्योंकि वाकई नकारात्मकता फैलती तेजी से है। संभव हो इस मामले की अभी और भी कई परतें हो, जो अभी तक खुली न हों, लेकिन जो भी फिलहाल सामने है, वह न केवल शर्मनाक है, बल्कि धर्म, संस्कृति की सियासत करने वाले राजनेताओं और राजनीति के प्रति हमें और भी घृणा से भर देती है।
प्रवीण तिवारी ने आज ही इस पूरे मामले में अपनी पांचवी स्टोरी ब्लॉग के रूप में
में साझा की है, जिसमें उन्होंने बाकायदा एनआईए की चार्जशीट के दस्तावेज साझा करते हुए ये साबित किया है कि इस मामले में कैसे गवाहों पर दबाव बनाया गया, उन्हें प्रताडित किया गया। आप इसे यहां देख सकते हैं- (http://khabar.ibnlive.com/…/dr…/malegaon-blast-4-493586.html)
में साझा की है, जिसमें उन्होंने बाकायदा एनआईए की चार्जशीट के दस्तावेज साझा करते हुए ये साबित किया है कि इस मामले में कैसे गवाहों पर दबाव बनाया गया, उन्हें प्रताडित किया गया। आप इसे यहां देख सकते हैं- (http://khabar.ibnlive.com/…/dr…/malegaon-blast-4-493586.html)
प्रवीण के लगातार प्रयासों के चलते उन्हें कई बार सरकार का चमचा से लेकर पार्टी का कार्यकर्ता भी कहा गया, लेकिन इसके लिए भी उन्हें बाकायदा सफाई दी- (http://khabar.ibnlive.com/…/dr-…/sadhvi-pargya-2-479388.html) लेकिन बतौर पत्रकार प्रवीण की कोशिश यही रही कि वह इस मामले की तह तक जाए और तथ्यों के साथ सच को जिस रूप में है उसे सामने रखे।
बहरहाल, विडंबना यह है कि इस काम की कहीं कोई चर्चा नहीं है, लेकिन इसके ठीक विपरित 'हिंदू और भगवा आतंकवाद' के मुद्दे को जमकर भुनाने का प्रयास किया गया, और यह शब्द एक तरह से सियासत के इस्तेमाल के लायक बन गया।
सच क्या है, यह इतिहास तय करेगा, लेकिन इसी इतिहास के समानांतर चल रहा वक्त एक कटघरा है, जो दुनिया के तमाम इतिहासों से सवाल-जवाब करता है।
मालेगांव मामले पर मैं यहां साथी प्रवीण की सभी स्टोरी की लिंक दे रहा हूं। इसे पढा जाना चाहिए और कुछ सवालों के साथ हमें निष्पक्षता के साथ ये सवाल सियासत से पूछना चाहिए कि आखिर धर्म और संप्रदाय को राजनीति का केंद्र कब तक बनाया जाएगा? चाहे वह हिंदू हो या बेगुनाह मुस्लिम युवा, यदि वह ऐसी सियासत की भेंट चढ रहा है और उसके नाम पर सभ्यता और संस्कृति के प्रति आम जनमानस में नफरत भरी जा रही है, तो यह खतरनाक है।
मेरा नीजि रूप से यह मानना है कि धार्मिक कट्टरता, सांप्रदायिकता और सामाजिक विद्वेष को धर्म को गरिया कर या फिर उसके प्रति अपनी नास्तिकवादी और कथित प्रगतिशील नीजि राय समाज और जनता पर थोपकर खत्म नहीं हो सकती। इसका इलाज उन्हीं धर्मों के भीतर शांति के संदेशों में छिपा है, जिसे गांधी साथ लेकर चलना चाहते थे। भारत के संदर्भ में यही व्यवहारिक भी है।
खैर, ये लिंक है, आप देख सकते हैं, और हां हाथ जोडकर विनती है कि मेरा बीजेपी संघ और किसी पार्टी से कोई कनेक्शन नहीं है, और न ही कैसे भी करके उसे जोडना।
सारंग, आपका संघ या बीजेपी से कनेक्शन भले ना हो, प्रगतिशीलता के खिलाफ लिखने के लिए उनके जैसी सोच होना भर काफी है भाई।
जवाब देंहटाएंधारा के साथ बहना उतना ही आसान है, जितना उसके विपरीत बहना कठिन होता है।
प्रवीण ने अगर श्रम करके मुद्दे की सही पड़ताल की है तो अच्छी बात है। पर सारंग उसके बारे जो बता रहे हैं, वो सब तो एक वर्ग पहले से ही कह रहा है। इसमें नया या शोधपूर्ण क्या है?
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