शनिवार, 6 अगस्त 2016

क्यूं बिंदी, सिंदूर और मंगलसूत्र नहीं पहन सकती मुस्लिम महिलाएं?

क्यूं बिंदी, सिंदूर और मंगलसूत्र नहीं पहन सकती मुस्लिम महिलाएं?

क्या मुस्लिम महिलाएं बिंदी और सिंदूर लगा सकती हैं? ऐसे सवालों के बारे में भी सोचना पड़ता है क्यूंकि इसका विरोध करने वाले भी इस देश में मौजूद हैं। इस विषय पर लिखूं या न लिखूं को लेकर असमंजस बना रहा लेकिन जब दर्जन भर जिम्मेदार लोगों से बातचीत हो गई तो लगा विषय महत्वपूर्ण है जरूर कुछ लिखा जाना चाहिए। डॉ. फहीम बेग, अंसार रजा जैसे इस्लामिक विद्वान साथ में थे तो रजा मुराद, नगमा जैसे फिल्मों में काम करने वाले इस्लाम के मानने वाले कलाकार भी मौजूद थे। इस मामले पर सना खुद जुड़ीं और फिर उनके पति एजाज से भी इस पर बातचीत हुई। इतने लोगों से बात करने के बाद एहसास हुआ कि बिंदी और सिंदूर का ये मुद्दा इतना छोटा नहीं है जितना दिखाई पड़ता है।
फिल्म अस्तित्व की एक सांकेतिक तस्वीर

सना ने कई कट्टरपंथियों के हमलों का जवाब देते हुए कहा मेरी मां और नानी तो मंगलसूत्र पहनती हैं और सिंदूर लगाने से मेरा इस्लाम कम नहीं हो जाता। दूसरा हमारे देश में हर किसी को अपने तरीके से पहनने, ओढ़ने और रहने की आजादी है। मुझे नहीं लगता कि सिंदूर लगाने से खुदा मुझे दोज़ख में पहुंचा देंगे। सना ने जो बातें मुझ से बातचीत में कहीं वो उन्होंने फेस बुक पर भी लिखीं थी। उनकी इन बातों में एक जकड़न का भी एहसास होता है कि क्या इस्लाम को मानने की वजह से उनकी मंगलसूत्र पहनने या सिंदूर लगाने की अर्हता खत्म हो जाती है?

मैं इस्लाम का जानकार नहीं हूं जाहिर तौर पर इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता हूं। इस पर टिप्पणी करने के लिए दो विद्वान जुड़े। डॉ. फहीम बेग और अंसार रजा। विद्वानों की विद्वता ही आम लोगों का असमंजस बढ़ा देती है। ये दोनों भी ऑन एअर ही लड़ पड़े। फहीम बेग तो ये तक कह गए कि टीवी सीरियल में काम करने वाला किसी मजहब का रह ही कहा जाता है। उन्होंने ये भी कहा कि ऐसे सीरियलों में अंग प्रदर्शन किया जाता है।

अंसार रजा ने कहा आप भी टीवी पर हैं बेग साहब तो आप भी इस्लाम से बेदखल हो गए। उन्होंने ये भी कहा कि बिहार के कई गांवों में इस्लाम मानने वाली महिलाएं बिंदी लगाती हैं या मंगलसूत्र पहनती हैं इससे उनका इस्लाम कम नहीं हो जाता। जन्नत या दोजख भेजने का काम बेग साहब जैसे लोगों का नहीं है जो इस्लाम को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं। जो फेस बुक और ट्वीटर पर इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं वो भी अधकचरे जानकार है और ऐसे लोग इस्लाम को बदनाम ज्यादा करते हैं।

सना ने भी कहा कि ऐसे लोग जो दिन भर ट्वीटर और फेसबुक पर नसीहतें दे रहे हैं क्या उनका इस्लाम खत्म नहीं होता? मनोरंजन के ये सारे साधन भी इस्लाम में हराम हैं ऐसे में क्या इन पर भी सवाल खड़े नहीं होने चाहिए? सिर्फ बिंदी, सिंदूर या महिलाओं से जुड़ी बातों को उठाकर कट्टरपंथी इस्लाम को गलत तरीके से पेश करते हैं।

इन सब मेहमानों में मुझे दो लोगों की बातों ने सोचने पर मजबूर किया। ये दो लोग थे जानी मानी अभिनेत्री और कांग्रेस प्रवक्त नगमा और सना के पति एजाज खान। नगमा एक महिला हैं और मुसलमान भी हैं। वो फिल्मों को भी नजदीक से जानती है। उन्होंने एक भी बार सीरियल के बाहर बिंदी लगाने या मंगलसूत्र पहनने का समर्थन नहीं किया। वो परदे पर मेकअप करने के दौरान या किरदार की मजबूरियों के चलते इनके इस्तेमाल को तो जायज ठहराती रही लेकिन मुस्लिम महिलाओं को आम जिंदगी में इनका इस्तेमाल करना चाहिए या नहीं पर वो कुछ भी कहने से बचती रहीं।

सना के पति एजाज खान ने एक बढ़िया बात कही। मेरी मां और नानी भी मंगलसूत्र पहनते हैं। मुझे नहीं पता इस्लाम के जानकार इस पर क्या कहते हैं। मैंने अपने धर्म को जितना जाना और समझा है अपनी मां से ही समझा है। अगर वो ऐसा करती हैं तो फिर मेरे इसके विरोध करने का सवाल नहीं उठता। जहां तक औरों की धार्मिक आस्था का सवाल है मैं चाहता हूं इस मामले को ज्यादा न खींचा जाए।

नगमा और एजाज से हुई बातों से एहसास हुआ कि खुले विचारों के होने के बावजूद वो कुछ बंदिशे महसूस करते हैं। वो खुलकर बोलने से परहेज करते हैं क्यूंकि उन्हें कट्टरपंथियों के विरोध का डर है। अब सवाल ये उठता है कि जब इस लोकतांत्रिक देश में सबको समान अधिकार प्राप्त है तो किसी के पहनने ओढ़ने पर प्रश्न चिन्ह लगाकर आखिर धर्म का कौनसा सम्मान ये लोग कर रहे हैं? क्या फिल्मों में काम करने वाले शाहरुख, सलमान जैसे कलाकार अब मुसलमान नहीं रहे? क्या परदे पर बजरंग बली के परम भक्त बने बजरंगी भाईजान के खिलाफ इन कट्टर पंथियों को आवाज नहीं उठानी चाहिए थी। दरअसल ये बात इस्लाम की नहीं ये बात महिला सम्मान की है। वहीं महिलाओं के लिए पाबंदियों से भरे इस समाज में इस सोच को जिंदा रखने कि है कि महिलाओं ने सामाजिक और धार्मिक दायरों में रहने का ठेका ले रखा है।


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