शनिवार, 22 अक्टूबर 2016

यूपी में ब्राह्मण के शंखनाद और राम नाम की गूंज


पहले कांग्रेस ने अपनी छबि के विपरीत जाते हुए यूपी में ब्राह्मण कार्ड खेला। शीला दीक्षित और राज बब्बर को यूपी में चेहरा बनाकर उतार दिया। अब समाजवादी पार्टी ने भी अपनी छबि से विपरीत काम करते हुए राम की शरण ले ली। मुल्ला मुलायम के नाम से मशहूर नेता जी को भी अब राम नाम जपने की जरूरत महसूस हो रही है। कांग्रेस के लिए रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपने आंकलन से बताया कि इस दफा चुनाव में ब्राह्मण मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। समाजवादी पार्टी के राजनैतिक पंडितों को बीजेपी की हवा के बीच हिंदू मतदाताओं को रिझाने की चिंता सता रही है। वहीं बीजेपी ने भी जय श्रीराम के नारे को बुलंद कर ये अहसास करा दिया कि राम का नाम उसके लिए भी उत्तर प्रदेश चुनाव की नैया पार लगाने वाला है। राहुल गांधी की नहा धोकर हनुमान जी की पूजा पाठ वाली तस्वीरें भी आप नहीं भूले होंगे। एक बात तो साफ है कि सभी राजनैतिक दलों की नजर इस बार हिंदू वोटों पर लगी हुई है। खास तौर पर ब्राह्मण वोटों को अपनी तरफ करने का प्रयास सभी दलों की तरफ से किया जा रहा है। इसकी अहम वजह है 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे। इस चुनाव में ये वोट बैंक बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत बना। यदि मोदी और बीजेपी का वही असर यूपी पर देखने को मिला तो विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी को एक बड़ी जीत हासिल होगी। राम नाम की नैया पर सवार बीजेपी के पीछे पीछे समाजवादी पार्टी जैसे राजनैतिक दल भी अब इस जप के महत्व को समझ रहे हैं।

विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़े उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दशहरे पर ‘जय श्री राम’ का नारा बुलन्द करने के साथ ही ‘राम संग्रहालय’ का निर्माण करवाने का निर्णय लेकर अयोध्या को एक बार फिर सुर्खियों में ला खडा किया। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी ने भी रामायण सर्किट की सौगात देकर राम भक्तों को रिझाने की कोशिश की है। विपक्ष इसे नरेंद्र मोदी की सोची समझी रणनीति का हिस्सा मान रहा है तो बीजेपी का कहना है कि पार्टी ने मंदिर मुद्दे को कभी भी राजनीति से जोड़कर नहीं देखा। राम मंदिर को अपने मेनिफेस्टो का अहम हिस्सा बताने वाली बीजेपी की राम मंदिर पर ज्यादा जिम्मेदारी है लेकिन अभी तक इस मुद्दे पर बीजेपी निशाने पर ही रही है। मंदिर से शुरू हुए और म्यूजियम तक पहुंचे के आरोप भी बीजेपी पर लगने लगे हैं। विनय कटियार जैसे नेताओं ने भी इस मुद्दे पर अपने तेवर तल्ख कर लिए। 

बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती कहती हैं कि चुनाव के मौके पर बीजेपी और सपा दोनों मिलकर अयोध्या मुद्दे को गरम करना चाहते हैं। उनका कहना है कि मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए सपा अध्यक्ष मुलायम यादव को हर चुनाव में ‘बाबरी विध्वंस’ की याद आती है तो दूसरी ओर उनके मुख्यमंत्री पुत्र हिन्दुओं में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए अयोध्या में थीमपार्क बनवाने जा रहे हैं। दूसरी तरफ ब्राह्मणों को अपना चेहरा बनाने वाली कांग्रेस का आरोप है कि चुनाव के समय ही रामायण संग्रहालय बनवाने की याद क्यों आई। इसके आगे पीछे भी इस योजना पर काम किया जा सकता था। 

बीजेपी ने कहा कि अयोध्या और श्री राम को हमने हमेशा से आस्था का विषय माना है। पार्टी ने इसे राजनीति या चुनाव से जोड़कर कभी नहीं देखा है। बीजेपी का ये भी कहना है कि विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है इसलिए वो अनावाश्यक रूप से आरोप लगाते रहते हैं।

बयान बाजी की राजनीति तो होती रहेगी लेकिन जाति और धर्म की राजनीति यूपी की राजनीति का एक अहम सच है। इस सच को कोई भी राजनीतिक दल अनदेखा नहीं कर सकता पर अचानक यूपी की पूरी सियासत में ब्राह्मण बेहद महत्वपूर्ण हो गए हैं। 2017 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्दे नजर क्या सपा क्या कांग्रेस सभी ब्राह्मणों को रिझाने की जुगत में लगे हुए हैं। उत्तर प्रदेश में 10 प्रतिशत ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी की सियासी नांव किनारे लगाने के लिहाज से एक हैसियत रखते हैं। जिस तरफ ब्राह्मण मुड़ जाते हैं उस पार्टी की नैय्या पार लग जाती है। हांलाकि ये भी एक तथ्य है कि लंबे समय से उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण हाशिए पर आ गए थे। 

इस बार पूरा चुनावी गणित उल्टा हो गया है। ब्राह्मण वोट को बीजेपी बाय डिफॉल्ट अपने साथ मानती है और इसीलिए उसका जोर दलितों को लुभाने पर है। करीब 22 फीसदी दलितों का साथ बीजेपी के पास आ जाए तो सूबे में उसकी सरकार होगी। 2007 में दलितों की मसीहा मायावती ने 86 ब्राह्मणों को टिकट दिया था और इस वोट बैंक की ताकत भी सियासी दलों को दिखाई थी। बेशक वो सपा और बीजेपी पर सवाल खड़े करें लेकिन वो भी राम नाम की सियासत के खिलाफ खुलकर कुछ नहीं बोल पाएंगी। मायावती का ध्यान भी ब्राह्मण वोटों पर लगा है। वहीं अभी तक मुस्लिम, यादव और दूसरे ओबीसी की राजनीति करने वाली समाजवादी पार्टी भी ब्राह्मणों को रिझाने में जुटी है। 

पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा ने लगभग 40 ब्राह्मण सम्मेलन किए थे। बसपा पार्टी ने नारा दिया था, ब्राह्मण शंख बजायेगा, हाथी दिल्ली जायेगा, लेकिन मोदी की आंधी में ब्राह्मण के बीजेपी में जाने से बसपा का खाता भी नहीं खुल सका था। 1990 पहले ब्राह्मण को कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता था। 1990 के आंदोलन के दौरान ब्राह्मणों ने बीजेपी का दामन थामा जिससे पार्टी सीधे 221 सीट जीतकर सूबे की सत्ता पर काबिज़ हो गई लेकिन उसके बाद बीजेपी में ब्राह्मणों की अनदेखी होने लगी। एक समय ऐसा भी आया जब ब्राह्मणों की हालत पार्टी में पतली हौ गई। ब्राह्मणों का भी बीजेपी से मोह भंग हुआ और इसका नतीजा रिजल्ट 2007 और 2009 में देखने को मिला। बीजेपी महज 10 लोकसभा सीट और 40 विधानसभा सीटों पर सिमट कर रह गई। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी जीत के जिस शिखर पर दिखाई पड़ती है उसके पीछे उसे मिला ब्राह्मणों का साथ ही है। 

2014 के नतीजों ने सभी राजनैतिक दलों को ब्राह्मण मतदाताओं को रिझाऩे की जरूरत महसूस करवाई है। इसके साथ ही अभी तक मुस्लिम मतदाताओं के पीछे भागने वाले राजनैतिक दलों को हिंदू मतदाताओं की याद आ रही है। हिंदू मतदाता जातियों में बंटा हुआ है और यही वजह है कि उस सवर्ण दलित, पिछड़े, अति पिछड़े जैसे अलग-अलग भाग देखने को मिलते हैं। जब राम नाम की बात आती है तो आस्था जाति से ऊपर उठकर होती है। सवर्णों के साथ के अलावा राम का नाम इन हिंदू मतदाताओं को भी अपनी तरफ आकर्षित करने का एक जरिया है। मुस्लिम मतदाता बीजेपी की तरफ न के बराबर जाएगा ऐसे में तमाम दूसरे राजनैतिक दल बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। एमआईएम जैसे दलों की घुसपैठ हो या फिर सपा और कांग्रेस के बीच चुनाव का कन्फ्यूजन, करीब 18 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं का बंटना तय है। लोकसभा चुनाव में उनका पूरा का पूरा वोट बीजेपी के खिलाफ रहा लेकिन इसके बावजूद बीजेपी को बड़ी कामयाबी मिली। बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने की ये कोशिश कितनी कामयाब होगी ये कहना तो मुश्किल है लेकिन ये तय है कि चाहे कांग्रेस हो या समाजवादी पार्टी वो चुनाव से पहले ही अपनी रणनीति के जरिए बीजेपी को चुनाव जीता हुआ दिखा रही है।



सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

मुहर्रम के बाद भी मातम क्यों ?


मुहर्रम तो मातम का दिन है ही लेकिन इसके बीत जाने के बाद भी कई घरों में मातम पसरा हुआ है। ये घर उन परिवारों के जिनके अपनों को दुर्गा विसर्जन के दौरान बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। अब हिंदू संगठनों का आरोप है कि ममता के राज में 'सोनार बांग्ला बर्बाद बांग्ला 'बन गया है| वैसे मुहर्रम पर इस तरह की हिंसा और उसमें हिंदुओं का मारा जाना कोई नई बात नहीं है वामपंथियों के राज में भी हिन्दुओं की दुर्दशा ही होती थी, लेकिन अब हिंसा के शिकार लोग और उनके परिजन ये तक कहने से नहीं चूक रहे हैं कि ममता ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए वो सब अत्याचार किये है जो कभी मुस्लिम अक्रान्ताओ के राज में भी नहीं किये गए थे|
इस साल दुर्गा पूजा पर ऐसे प्रतिबन्ध लगाये गए जो पहले कभी नहीं लगाए गए थे| मा. उच्च न्यायलय के हस्तक्षेप के बाद हिन्दू समाज ने चैन की साँस ली, लेकिन मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के द्वारा भड़काए गए लोगों ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रो में हिंसा का अभूतपूर्व तांडव किया| विश्व हिन्दू परिषद ने तो यहां तक दावा किया है कि कई जगहों पर मां दुर्गा  के पूजा पंडालो में गौमांस फेका गया और प्रतिमाओं को खंडित किया गया। हांलाकि इससे जुड़ी खबरें मीडिया में वैसे भी नहीं आती हैं। ये एक संवेदन शील मुद्दा माना जाता है लेकिन इस संवेदनशीलता की आड़ में हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
लोग कई तस्वीरें और वीडियो तो साझा कर रहे हैं लेकिन सही तस्वीर तक सामने नहीं आने दी जा रही है। अगर सचमुच यही स्थिति बनी हुई है तो ये भी तय है कि कोर्ट की फटकार सुनने वाली सरकार और उसका प्रशासन ऐसी खबरों को बाहर आने ही नहीं दे रहा होगा। हिन्दू मंदिरों को तोडे जाने की घटनाओं का दावा भी विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ पदाधिकारी कर रहे हैं। ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जहां मकानों और दुकानों पर हमले कर उन्हें लुटा गया बाद में उन्हें जला दिया गया और हिन्दुओ पर जानलेवा हमले किये गए| बांग्ला देश में हिंदुओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। वहां की सरकार ने अपने यहाँ हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने का भरोसा दिलाया लेकिन ये सिर्फ दिखावा ही साबित हुआ है। हद तो ये है कि हमारे अपने देश के एक राज्य पं. बंगाल में भी बांग्लादेश जैसे हालात दिख रहे हैं और राज्य सरकार पर हिंसा करने वालों को संरक्षण देने के गंभीर आरोप लग रहे हैं। आरोप ये लग रहे हैं कि पुलिस हिंसा करने वालों को रोकने की जगह पीड़ित हिन्दुओं पर ही मामले दर्ज कर रही है|
बंगाल में पहले भी कई जगह हिन्दू समाज दुर्गा पूजा नहीं कर पता था| परन्तु इस बार सब सीमाएं पार हो गयी| बंगाल के कई स्थानों पर हिन्दूओं पर वो अत्याचार हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था| वहां से ठीक ठीक आंकड़े तो नहीं मिल पाए लेकिन विश्व हिंदू परिषद ने औपचारिक रूप से जो आंकड़े सामने रखे उनके मुताबिक मालदा जिले के कालिग्राम, खराबा, रिशिपारा, चांचल; मुर्शिदाबाद के तालतली, घोसपारा, जालंगी, हुगली के उर्दिपारा, चंदननगर, तेलानिपारा, उर्दिबाजार; नार्थ २४ परगना के हाजीनगर, नैहाटी; प. मिदनापुर गोलाबाजार, खरकपुर, पूर्व मिदनापुर के कालाबेरिया, भगवानपुर, बर्दवान के हथखोला, बल्लव्पुर्घाट, कतोआ; हावड़ा के सकरैल, अन्दुलन, आरगोरी, मानिकपुर, वीरभूम के कान्करताला तथा नादिया के हाजीनगर जैसे इलाकों में कई जगहों पर हिन्दुओ पर अमानवीय अत्याचार किये गए| कई इलाके ऐसे भी हैं जहां ११ अक्टूबर से शुरू हुई हिंसा आज भी नहीं रुक पाई है|

तुष्टिकरण की राजनीति ने देश में 'सेक्युलर माफिया' को जन्म दिया है। ममता बनर्जी ने जिस तरह का बर्ताव दुर्गा पूजा के दौरान किया है उससे साफ है कि वो मुस्लिम मतदाताओं की भगवान बनने के लिए हिंदुओं पर होने वाली हिंसा को नजरअंदाज करने से भी गुरेज नहीं कर रही। हमारे देश में ऐसे मुददे पर बात करना या लिखना तक संवेदनशील मानान जाता है लेकिन इस आतंक की आग पीछे असली वजह होती है तुष्टिकरण की आग को भड़काया जाना| ये आग इतनी भयानक है कि इसे भड़काने वाले भी इससे नहीं बच पाएंगे।  ममता बनर्जी नहीं भूली होंगी कि किस तरह कोलकाता के एक मौलवी ने मांगे पूरी न होने पर उन्हें कैसे धमकाया था| अभी कालिग्राम और चांचल में हिंसा को रोकने वाले पुलिस वालोँ और जिलाधीश को किस प्रकार पीटा गया  और पुलिस स्टेशन को लूट लिया गया,  ये भी हिंसा करने वालों को मिली खुली छूट की तरफ इशारा करता है।

ऐसा नहीं है कि तुष्टिकरण की राजनीति से उपजी इस हिंसा का शिकार सिर्फ बंगाल के हिंदू हो रहे हैं। इसी तरह का दृश्य बिहार में भी दिखाई दे रहा है| चंपारण के  पुरकालिया, रक्सौल, सुगौली, किशनगंज, मधेपूरा, गोपालगंज, पिरो [आरा ], मिल्की, भागलपुर गाँव, औरंगाबाद के वरुण, खोगीय व पटना के बस्तियारपुर जैसे बीसियों गावों में इसी प्रकार के अत्याचार हो रहे है। मोतिहारी-चम्पारण के इलाके में दुर्गा विसर्जन के दौरान निकले उत्सव के दौरान गोलीबारी की जानकारी मुझे खुद एक स्थानीय पत्रकार ने दी। ये खबरें मीडिया में इसीलिए नहीं दिखाई जा रही क्यूंकि इन्हें संवेदनशील कहकर दबा दिया जाता है। एडवाइजरी जारी कर दी जाती है। उस वक्त प्रशासन मुस्तैद क्यूं नहीं होता जब दुर्गा माता की पूजा बाधित की जाती है?| नितीश का 'सुशासन ' आज माता के भक्तों के लिए दुशासन बन गया है| आज भी बिहार में कई स्थानों पर मजहब के नाम पर लगाई गई ये आग ठंडी नहीं हुई है| हिंसा करने वालों पर कार्यवाही करने में अक्षम नितीश सरकार पर पीड़ित हिन्दुओ पर ही झूठे मामले दर्ज कर खानापूर्ति करने के आरोप भी लग रहे हैं

बात यहां तक बिगड़ चुकी है कि अब हिंदू वादी संगठन ये कह रहे हैं कि यदि कथित सेक्युलर सरकारें अपने संवैधानिक कर्तव्यो को पूरा नहीं करेगी तो हिन्दू को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए स्वयम खड़ा होना पड़ेगा कर्नाटक में एक हिन्दू कार्यकर्ता की दिन दहाड़े हत्या ने भी देश को स्तब्ध कर साबित करने की कोशिश की है कि मजहबी सियासत को किस तरह से एक बार फिर हवा दी जा रही है।

बुधवार, 5 अक्टूबर 2016

दादरी पार्ट 2- अखलाक की हत्या के आरोपी रवि की रहस्यमयी मौत!

अखलाक की हत्या के आरोप में जेल में बंद रवि की संदिग्ध स्तिथियों में मौत हो गई। उसकी पत्नि और मां ने जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि ये मौत जेलर के टॉर्चर की वजह से हुई है। रवि की मां और पत्नि से हुई बातचीत में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। इन लोगों से अखलाक की हत्या के आरोप में बंद युवकों को टॉर्चर नहीं करने के नाम पर लगातार पैसे मांगे जा रहे थे। रवि की पत्नि ने ये भी बताया कि जब अस्पलताल ले जाया जा रहा था तब अपने पति से बात करने के लिए उन्हें 5 हजार रुपए देने पड़े। रवि ने मरने से पहले एक चिठ्ठी भी अपनी पत्नि को दी है जिसमें उसने अपनी आप बीती भी लिखी है।
मृतक रवि की पत्नि

उनका दावा है कि रवि की मौत टॉर्चर की वजह से हुई है। कुछ दिनों पहले जेल में रवि पर कुछ लोगों ने हमला भी किया था। जेल के जेलर पर भी गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। जेलर के बारे में इन लोगों का आरोप है कि वो हमलावरों का पक्ष ले रहा था  और इस हमले के बाद रवि को ही बुरी तरह से टॉर्चर किया गया। जेलर ........ (नाम लिखना हमारे देश में संवेदनशील माना जाता है) के बारे में रवि के कुछ रिश्तेदारों ने भी जिक्र किया। उनका कहना था कि कुछ दिनों पहले गांव में एक पोस्टर भी उनके घर के बाहर लगाया गया था कि अपने बच्चों को भूल जाओ अब वो वापस नहीं आएंगे। दादरी दो गुटों में बंटा हुआ है और सियासत करने वाले इन्हें बांटे रखना चाहते हैं लेकिन इस बीच रवि की पत्नि की हालत एक और दर्द को बंया कर रही है। वो कुछ कुछ देर में बोलते बोलते बेहोश हो जा रही हैं। उनका कहना है कि यहां से लोगों को बिना किसी सबूत पर ही उठा लिया गया था।

जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए रवि की पत्नि और मां ने कहा है कि उनसे लगातार कहा जा रहा था कि वो अपने परिजनों को यदि टॉर्चर से बचाना चाहते हैं तो पैसे दें। रवि की मां का दावा है कि उन्होंने करीब 12 हजार रुपए अभी तक दिए हैं। पूरे गांव में एक बार फिर तनाव का माहौल है। दादरी का बिसाहड़ा गांव एक बार फिर छावनी में तब्दील हो गया है। अखलाक की मौत और रवि की मौत के बाद एक फर्क जरूर देखने को मिल रहा है कि यहां नेताओं की रेलमपेल वैसी देखने को नहीं मिल रही है। मुआवजा तो छोड़िए अभी तो इस मामले की निष्पक्ष जांच को लेकर भी संदेह बना हुआ है। रवि आरोपी था और उस पर आरोप सिद्ध नहीं हुआ था लेकिन इसके बावजूद जो अमानवीयता उसके साथ जेल में की जा रही थी उसकी जांच बहुत जरूरी है। ये जांच इसीलिए जरूरी है क्यूंकि जेल प्रशासन का ये दावा कि रवि की मौत किडनी फेल होने की वजह से हुई है किसी के गले नहीं उतर रहा। उसकी पत्नि तो यहां तक कहती है कि रवि को कोई गंभीर बीमारी तो छोडिए कभी कोई छोटी मोटी बीमारी भी नहीं हुई। जेल प्रशासन ने महज दो दिन पहले पहली बार रवि को अस्पताल भेजा इससे भी ये साफ है कि उसे कोई ऐसी गंभीर बीमारी तो नहीं कि अचानक किडनी और लिवर फेल हो जाए।दादरी पार्ट 2- अखलाक की हत्या के आरोपी रवि की रहस्यमयी मौत!
अखलाक की हत्या के आरोप में जेल में बंद रवि की संदिग्ध स्तिथियों में मौत हो गई। उसकी पत्नि और मां ने जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि ये मौत जेलर के टॉर्चर की वजह से हुई है। रवि की मां और पत्नि से हुई बातचीत में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। इन लोगों से अखलाक की हत्या के आरोप में बंद युवकों को टॉर्चर नहीं करने के नाम पर लगातार पैसे मांगे जा रहे थे। रवि की पत्नि ने ये भी बताया कि जब अस्पलताल ले जाया जा रहा था तब अपने पति से बात करने के लिए उन्हें 5 हजार रुपए देने पड़े। रवि ने मरने से पहले एक चिठ्ठी भी अपनी पत्नि को दी है जिसमें उसने अपनी आप बीती भी लिखी है।
उनका दावा है कि रवि की मौत टॉर्चर की वजह से हुई है। कुछ दिनों पहले जेल में रवि पर कुछ लोगों ने हमला भी किया था। जेल के जेलर पर भी गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। जेलर के बारे में इन लोगों का आरोप है कि वो हमलावरों का पक्ष ले रहा था  और इस हमले के बाद रवि को ही बुरी तरह से टॉर्चर किया गया। जेलर ........ (नाम लिखना हमारे देश में संवेदनशील माना जाता है) के बारे में रवि के कुछ रिश्तेदारों ने भी जिक्र किया। उनका कहना था कि कुछ दिनों पहले गांव में एक पोस्टर भी उनके घर के बाहर लगाया गया था कि अपने बच्चों को भूल जाओ अब वो वापस नहीं आएंगे। दादरी दो गुटों में बंटा हुआ है और सियासत करने वाले इन्हें बांटे रखना चाहते हैं लेकिन इस बीच रवि की पत्नि की हालत एक और दर्द को बंया कर रही है। वो कुछ कुछ देर में बोलते बोलते बेहोश हो जा रही हैं। उनका कहना है कि यहां से लोगों को बिना किसी सबूत पर ही उठा लिया गया था।
जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए रवि की पत्नि और मां ने कहा है कि उनसे लगातार कहा जा रहा था कि वो अपने परिजनों को यदि टॉर्चर से बचाना चाहते हैं तो पैसे दें। रवि की मां का दावा है कि उन्होंने करीब 12 हजार रुपए अभी तक दिए हैं। पूरे गांव में एक बार फिर तनाव का माहौल है। दादरी का बिसाहड़ा गांव एक बार फिर छावनी में तब्दील हो गया है। अखलाक की मौत और रवि की मौत के बाद एक फर्क जरूर देखने को मिल रहा है कि यहां नेताओं की रेलमपेल वैसी देखने को नहीं मिल रही है। मुआवजा तो छोड़िए अभी तो इस मामले की निष्पक्ष जांच को लेकर भी संदेह बना हुआ है। रवि आरोपी था और उस पर आरोप सिद्ध नहीं हुआ था लेकिन इसके बावजूद जो अमानवीयता उसके साथ जेल में की जा रही थी उसकी जांच बहुत जरूरी है। ये जांच इसीलिए जरूरी है क्यूंकि जेल प्रशासन का ये दावा कि रवि की मौत किडनी फेल होने की वजह से हुई है किसी के गले नहीं उतर रहा। उसकी पत्नि तो यहां तक कहती है कि रवि को कोई गंभीर बीमारी तो छोडिए कभी कोई छोटी मोटी बीमारी भी नहीं हुई। जेल प्रशासन ने महज दो दिन पहले पहली बार रवि को अस्पताल भेजा इससे भी ये साफ है कि उसे कोई ऐसी गंभीर बीमारी तो नहीं कि अचानक किडनी और लिवर फेल हो जाए।

एक पाकिस्तानी महिला पत्रकार ने सिखाई केजरीवाल को देशभक्ति

एक तरफ जहां देश में ही पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले राष्ट्रद्रोही नेता हैं तो पाकिस्तान में भी कुछ ऐसे लोग हैं जो हमारे नेताओं को मुंह बंद रखने की सलाह दे रहे हैं। कल पाकिस्तान की पत्रकार मेहर तारर एक कार्यक्रम में मेरे साथ लाइव थीं। उन्हें कार्यक्रम में लेने की वजह थी उनका एक ट्वीट। इस ट्वीट में उन्होंने केजरीवाल के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए कहा था कि घर के चिराग से ही घर को नुकसान हो रहा है। केजरीवाल तो घर के चिराग कहे जाने के लायक भी नहीं हैं लेकिन हैं तो वो हिंदुस्तानी ही। उससे भी अहम बात ये है कि हिंदुस्तान की राजधानी ने उन्हें अपने मुख्यमंत्री के तौर पर भी चुना है। केजरीवाल कल पाकिस्तान के हीरो बने रहे। हर अखबार और टीवी चैनल पर वही चमक रहे थे। विश्वास जानिए आज केजरीवाल पाकिस्तान में कहीं से चुनाव लड़ ले तो उनकी जीत निश्चित है।

कांग्रेस की हालत भी केजरीवाल ने खराब कर रखी है। उन्हीं के पदचिन्हों पर चलते हुए कांग्रेस के कुछ कथित नेताओं ने जो बक दिया वो उनके गले की हड्ड़ी बन गई है। आज हालत ये है कि कांग्रेस भी केजरीवाल का विरोध नहीं कर सकती। ये कहना गलत नहीं होगा कि अब कांग्रेस को केजरीवाल पूरी तरह निगलने में कामयाब हो गए हैं। पाकिस्तानी पत्रकार मेहर के सामने भी कांग्रेस के नेता बेशर्मी की बात करते दिखे। वो बार बार सबूत दिखाने की बात कहते रहे जबकि पाकस्तानी पत्रकार कहती रहीं कि ऐसे मुद्दों पर सियासतदानों को दखल देना ही नहीं चाहिए।

जब उनसे उनके स्टैंड के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने जो कहा वो सचमुच केजरीवाल जैसे लोगों को शर्मसार करने वाला था। उनका कहना था हम अपनी सेना पर भरोसा रखते हैं उन्होंने कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हुआ तो हम मानेंगे कि नहीं हुआ। एक हमारे नेता है जो सेना की औपचारिक प्रेस कॉफ्रेंस करने के बाद दी गई जानकारी पर ही सवालिया निशान खड़े करने पर तुले हैं। इससे घटिया दर्जे की राजनीति शायद हिंदुस्तान ने पहले कभी नहीं देखी थी जब अपने राजनैतिक स्वार्थों के लिए चंद जयचंदों ने देश की गरिमा पर ही सवाल खड़े कर दिए। 

मंगलवार, 4 अक्टूबर 2016

ये होते कौन हैं सबूत मांगने वाले?


अमेरिका भाग्यशाली है कि केजरीवाल जैसे नेता वहां नहीं जो ओसामा के खात्मे का वीडियो उससे मांगे। केजरीवाल भी भाग्यशाली हैं क्यूंकि वो अमेरिका में होते तो सबूत के बजाय जूते खाते। केजरीवाल के सूत्र कहां हैं जो उन्हें बता रहे हैं कि ये सर्जिकल स्ट्राइक फर्जी है? क्या केजरीवाल कांग्रेस की उसी नीति पर चल रहे हैं जो पाकिस्तान परस्त बातें बोलने को मुस्लिम तुष्टिकरण मान लेती थी? यदि ऐसा है तो ये एक गंभीर स्थिति है क्यूंकि अहम बात ये नहीं कि केजरीवाल जैसे गंदी राजनीति करने वाले क्या बोलते हैं अहम बात ये है कि वो आखिर किसे प्रभावित करने के लिए ये बोल रहे हैं? केजरीवाल ने जिस कांग्रेस को हराया वो उनसे भी घटिया दर्जे की है। किसी नेता को आगे कर उससे अपनी बात कहलवा देना और फिर पल्ला झाड़ लेना उसकी पुरानी नीति रही है। आपको याद होगी दिग्विजय सिंह के गैरजिम्मेदाराना और घटिया बयानों की लंबी लिस्ट जिसे वो बकते रहे और पार्टी पल्ला झाड़ती रही। संजय निरूपम के बयान के कोई मायने नहीं लेकिन वो बिना पार्टी की शह के ऐसा नहीं कह सकते। कांग्रेस के प्रवक्ता अपने बाप केजरीवाल की भाषा बोलते दिखाई दे रहे हैं। आप कांग्रेस की बाप इसीलिए है क्यूंकि भ्रष्टाचार के नाम पर कांग्रेस से निपटते निपटते वो उसके दांव पेंच तो जान ही गई और उसके अपने घटिया तौर तरीके तो हम देखते ही रहते हैं।

बहुत सभ्य भाषा का इस्तेमाल करने का मन तो इन लोगों के खिलाफ कर नहीं रहा फिर भी सवाल इनसे पूछे जाने चाहिए। क्या ये बात बीजेपी ने कही थी कि सर्जिकल अटैक हुआ है? ये बात सेना के डीजी ने कही थी। ऐसे में ये तो साफ है कि ये लोग सेना पर सवाल उठा रहे हैं। कूटनीति और पाकिस्तान के खिलाफ रणनीति पर सोचने की केजरीवाल की औकात नहीं और कांग्रेस ने तो अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के चक्कर में इसकी कोशिश तक नहीं की। आज एक ऐसा मौका है जब पूरे देश को एक जुट खड़े होकर आतंकवाद के खिलाफ पुरजोर तरीके से अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए। पार्टियों के टुकड़ों पर पले पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को छोड़ कर हर सच्चा हिंदुस्तानी आज देश की सेना और सरकार के साथ खड़ा है लेकिन जिन्हें पंजाब, गोवा और उत्तर प्रदेश के चुनाव दिख रहे हैं वो राष्ट्रद्रोह और देश भक्ति के फर्क को ही भूल गए।

पाकिस्तान का तिलमिलाना और लगातार आतंकी हमलों की नाकाम कोशिशों से बड़ा क्या सबूत हो सकता है? विश्वस्त सूत्र ये भी बताते हैं कि सिर्फ भारत के पास ही नहीं अमेरिका के पास भी इस स्ट्राइक के पुख्ता सबूत हैं। अमेरिका के सैटेलाइट पूरी दुनिया की चौबीस घंटे निगरानी करते हैं। पाकिस्तान का तो चप्पा चप्पा उनकी जद में है। वहां हुए इस स्ट्राइक की तस्वीरें उनके सैटेलाइट कैमरों में भी कैद हैं। अमेरिका की तरफ से ये प्रस्ताव भी भारत को आया कि वो चाहे तो ये वीडियो मुहैया कराया जा सकता है। अहम सवाल ये है कि आखिर क्यूं कोई भी सबूत किसी के भी सामने रखा जाए? कांग्रेस और केजरीवाल हैं कौन जो देश की सेना या सरकार से सबूत मांगे? घटिया एक्टिंग करते हुए पाकिस्तान को बेनकाब करने के नाम पर सबूत मांगना ठीक वैसे ही है जैसे कोई दुश्मन देश का जासूस किसी दूसरे देश में अपने एजेंडे को आगे बढ़ाए।