रविवार, 31 जुलाई 2016
शुक्रवार, 29 जुलाई 2016
गांधी को बदनाम करते उनके ‘अपने’!
महात्मा गांधी को किसने मारा? दक्षिणपंथ और उनकी
हत्या का क्या कनेक्शन है? गांधी को लेकर भी क्या कोई बहस हो सकती है? गांधी ये, गांधी
वो, गांधी राजनीति, गांधी पार्टी और जाने क्या क्या रोज सोशल साइट्स पर घूमता रहता
है। गांधी देश की राजनीति के लिए बहुत जरूरी हैं और गांधी आजादी के
पहले भी दुनिया की राजनीति के लिए अहम थे। जो अहमियत रखता है कार्टून्स उसी पर
बनते हैं। आजादी के पहले गांधी पर बहुत कार्टून बनते रहे। अपने कार्टून पर किए शोध
के दौरान मैंने आजादी के पहले के ऐसे कई कार्टून्स को शामिल किया था। गांधी पर
कार्टून सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के हर देश में बने। वो सिर्फ भारत
में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की राजनीति में एक रुतबा रखते थे। गांधी के आज देखे
एक कार्टून ने मुझे आज कुछ लिखने पर मजबूर कर दिया।
मुझे अपनी पीएचडी के फाइनल प्रेजेंटेशन की एक
घटना याद आ गई। इस मौके पर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के हॉल में शहर के कई
गणमान्य लोग और पत्रकार मौजूद थे। मेरे गाइड और उस वक्त पत्रकारिता विभाग के
प्रमुख डॉ. मानसिंह परमार भी इस प्रेजेंटेशन को लेकर काफी उत्साहित थे। कुलपति औऱ
शहर भर के वरिष्ठ पत्रकारों की मौजूदगी में इस तरह से औपचारिक प्रेजेंटेशन कम होते
है और यही वजह थी कि हमारा पूरा विभाग इस मौके पर खासा उत्साहित था।
मुझ पर जिम्मेदारी ज्यादा थी क्यूंकि आखिरकार
मैंने क्या शोध किया है और वो पत्रकारिता विभाग के लिए किस काम का है, जैसे कई
मुद्दों को भी मुझे यहां साबित करना था। काफी लोगों ने इसकी सराहना की लेकिन एक
मौका ऐसा भी आया पूरा हॉल सन्न रह गया। यहां शहर ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर
ख्यातनाम एक पत्रकार ने खड़े होकर अपनी गरजती आवाज में कहा डॉक्टर बनना तो दूर
तुम्हें जेल हो जाएगी प्रवीण। मैं उनकी इस बात से सकपका गया।
दरअसल इस शोध में मैंने देश और दुनिया के उन
कार्टून्स को भी शामिल किया था जिन पर विवाद हुए थे। ऐसे ही एक कार्टून को शोध के
साथ मैंने शामिल किया था। इस पर काफी चर्चा हुई। मैंने तर्क रखा की सार्वजनिक तौर
पर मैं इस कार्टून को नहीं रखने जा रहा ऐसे में इसे यहां रखने और इसके सार्वजनिक
प्रकाशन में फर्क हैं। वहां से तर्क आया ये थिसिस युनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में
रहेगी कई और शोधार्थियों के लिए रेफरेंस का काम करेगी ऐसे में ये नहीं कहा जा सकता
कि इसके थिसिस में प्रकाशन और किताब और अखबारों के प्रकाशन में कोई फर्क है।
अंततः वहीं भरे सभागार में शोध से उन दो पन्नों
को मैंने फाड़ कर इस विवाद को शांत किया। सवाल तब भी मन में आया था कि इंटरनेट पर
ये सारी चीजें मौजूद हैं फिर क्या फर्क पड़ता है इन्हें छापने से? खैर शोध के दौरान
ये भी समझ गया था कि इनके प्रकाशकों की क्या हालत होती है। ये घटना मुझे एक ऐसे
कार्टून को फेसबुक पर तैरते हुए देखकर याद आई जिसमें गांधी जी के दस सिर दिखाए गए
हैं। कथित तौर पर इसे नाथूराम गोडसे की मैग्जीन के लिए प्रकाशित किया गया था। मुझे
नहीं लगता कि ये कार्टून बैन हुआ था। इसके बावजूद इस कार्टून के जरिए नाथूराम
गोडसे या किसी अन्य किसी की बदनामी से ज्यादा गांधी का अपमान होता दिखता है। इस
कार्टून का इस्तेमाल वो लोग ज्यादा करेंगे जो गांधी के बारे में कई बातें लिखते
रहते हैं।
हैरानी की बात ये है कि ये कार्टून गांधी जी के
प्रपोत्र तुषार गांधी ने पोस्ट किया था। यदि वो नाथुराम गोडसे को गलत व्यक्ति
मानते हैं तो उनके ऐसे कार्टून्स को संभाल कर रखने का मतलब समझ से परे है। मेरे
जैसे कार्टून के शोधार्थी ने भी जो विवादास्पद कार्टून नहीं देखा था उसे पूरी
दुनिया को दिखाने का काम गांधी के अपने वंशज कर रहे हैं। वो दरअसल नफरत के चक्कर
में गांधी के अपमान के मकसद से बनाई इन बातों को लोगों के बीच ज्याद प्रचारित कर
रहे हैं। इसी बात से आश्चर्य चकित होकर मैं गांधी जी के इन वंशज की टाइम लाइन पर
गया और वहां जाकर तो मेरी हैरानी की सारी हदें टूट गईं।
![]() |
गांधी जी के प्रपोत्र तुषार गांधी के नाम पर बने प्रोफाईल में 27 मार्च को ये कवर फोटो अपडेट किया गया था। |
27 मार्च को तुषार अरुण गांधी ने फेसबुक पर अपना कवर फोटो चेंज किया था। उन्होंने पाकिस्तान के झंडे को अपना कवर फोटो बनाया था। ऐसा
उन्होंने क्यूं किया ये तो बापू ही जानते होंगे लेकिन उनकी इस हरकरत ने कुछ दिन
पहले लिखे मेरे एक और ब्लॉग की याद दिला दी। बिहार में एक महिला के द्वारा
पाकिस्तान का झंडा फहराने को लेकर बहुत बवाल हुआ था। अनपढ़ों और गंवारों की क्या
बात करें, हमारे बापू के घर के लोग ही जब इस तरह की हरकत करने में लगें हैं तो हम
किसे मुंह दिखाएं? उनकी नाथूराम गोडसे से नफरत को समझा जा सकता है लेकिन पाकिस्तान के
झंडे से मुहब्बत को क्या समझा जाए? क्या इसे भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहेंगे?
यदि ऐसा है भी तो
फिर गोडसे की मैग्जीन में छपे गांधी जी के कार्टून में उन्हें क्या बुराई लगती है? ये बातें साफ करती
हैं कि गांधी किसी के खून या नाम में नहीं बसते।
बुधवार, 27 जुलाई 2016
भगवा आतंक एक बड़ी राजनैतिक साजिश- डॉ. एस. डी. प्रधान, पूर्व प्रमुख ज्वाइंट इंटेलीजेंस कमेटी
भगवा आतंक एक
बड़ी राजनैतिक साजिश-
डॉ. एस. डी.
प्रधान,
पूर्व उप
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एवं पूर्व प्रमुख ज्वाइंट इंटेलीजेंस कमेटी
मुख्य बिंदू-
पहले से जानते थे कि समझौता एक्सप्रेस में धमाके होने
वाले हैं-
चिदंबरम के गृहमंत्री बनने के बाद बदल गई जांच की दिशा-
खुफिया विभाग के अधिकारी भी थे आश्चर्यचकित-
एनआईए को अपने इस्तेमाल के लिए बनाया और खास लोगों को
जगह दी-
दिग्विजय सिंह और चिदंबरम के बीच राहुल से नजदीकियों की
होड़ थी-
ओसाम बिन लादेन के पाकिस्तान में होने की जानकारी हमारे
पास थी-
अमेरिका और भारत की एजेंसियों ने पाकिस्तान के बारे में
इनपुट साझा किए-
बड़बोलेपन की वजह से प्रज्ञा, असीमानंद जैसे लोगों को
शिकार बनाया गया-
असली मकसद संघ के आला नेताओं और मोदी तक पहुंचना था-
ज्वाइंट
इंटेलीजेंस कमेटी के पूर्व प्रमुख और पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डॉ. एस.
डी. प्रधान से एक्सक्लूसिव बातचीत- (भारतीय खुफिया एजेंसियों के लिए लगातार शोध करने वाले और कई
महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रह चुके डॉ. एस. डी. प्रधान ने भगवा आतंक के झूठ का
पर्दाफाश करते हुए डॉ. प्रवीण तिवारी से एक्सक्लूसिव बातचीत में कई अहम खुलासे किए
हैं...)
जांच बाद की
बात है, खुफिया विभाग धमाकों के पहले ही जानता था कि कौन धमाके करने वाला है..
समझौता और दूसरे धमाकों के पहले ही हमें ये खबर थी की ये धमाके होने
वाले है। हमारी इंटेलीजेंस एजेंसी के लिए ये नाकामी नहीं बल्कि कामयाबी थी क्यूंकि
हमने पहले ही बताया था कि धमाके हो सकते हैं। समझौता एक्सप्रेस को लेकर भी
जानकारियां पहले ही दे दी गई थीं। इसके औपचारिक पेपर आईबी और जेआईसी के पास आज भी
मौजूद है। इसके बाद अमेरिका ने भी अपनी खुफिया एजेंसियों के हवाले से ये जानकारी
दी थी।
आरिफ कसमानी का नाम पहले ही शेयर किया गया था और उसके बारे में भारतीय
एजेंसियों के पास भी जानकारी थी। ताज्जूब की बात ये है कि इन पूरी जानकारियों को
नजर अंदाज कर जांच की दिशा ही बदल दी गई। एनआईए के हाथ में केस आया और सबकुछ बदल
दिया गया।
समझौता और इशरत जहां दोनों ही मामलों को साफ साफ बदला गया..
समझौता ब्लास्ट की जांच में तो बिलकुल साफ है कि जांच को साफ साफ बदला
गया और इसी तरह इशरत जहां के मामले में भी सबकुछ बदल दिया गया। अगस्त 2009 में जो
फाइलें आई थी वो सितंबर-अक्टूबर में पूरी तरह बदल दी गईं। पहले ही जांच की फाइलें
आ गई थीं लेकिन बाद में उन्हें किसी खास मकसद से बदल दिया गया। 2004 में जब ये सब
हो रहा था तब में ज्वाइंट इंटेलीजेंस कमेटी के साथ एडीशनल सेक्रेटरी के तौर पर
जुड़ा था और मैंने सारी रिपोर्ट्स देखी थीं। यही नहीं हम लोग अहमदाबाद भी गए थे क्यूंकि इन लोगों के बारे में पहले से
ही जानकारियां थी। ये सब अचानक नहीं हुआ था बहुत दिनों से इंटेलीजेंस एजेंसीज नजर
बनाए हुए थीं। इशरत जहां का नाम लश्कर की वेब साइट पर भी था।
2009 के चुनाव के बाद से ही 2014 की तैयारियां शुरू हो गई
थीं..
2009 के इलेक्शन में यूपीए की जीत हुई लेकिन उन्हें ये पता था कि आने
वाले चुनाव में मोदी और संघ बड़ी चुनौती बनकर उभरेंगे। यही वजह है कि इस जीत के
कुछ समय बाद ही भगवा आतंक शब्द का इस्तेमाल किया गया। ये शब्द भी किसी और ने नहीं
गृह मंत्री चिदंबरम ने संसद में कहे, इसकी उस वक्त कड़ी आलोचना भी हुई थी। इसके
बाद से लगातार जांच बदलती चली गई और इशरत जहां और समझौता ब्लास्ट दोनों की जांच को
एक नया मोड़ दे दिया गया। इस मामले पर अपने दूसरे साथियों से भी मेरी बातचीत होती
रही। वो भी आश्चर्य चकित थे कि आखिर ये हो क्या रहा है? इसकी जांच चलती रही लेकिन इसमें कुछ नहीं
मिल रहा था। खुफिया विभाग के साथियों ने भी तब बताया था कि इस मामले में इंडियन्स
के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं।
समझौता में 100 फीसदी पाकिस्तानी हाथ और मालेगांव में 99
फीसदी
मालेगांव में धमाके के दौरान कुछ इंडियन्स भी शामिल हो सकते हैं। ये
स्लीपर माड्यूल्स होते हैं और इन्हें अलग अलग कामों के लिए एक्टिवेट किया जाता है
। इनका काम विस्फोटकों को इधर से उधर ले जाने भर तक सीमित है। इन्हें खुद भी पता
नहीं होता है कि पूरा प्लान क्या है इसीलिए मैं मालेगांव में 99 फीसदी पाकिस्तान
समर्थित आतंकियों का हाथ होने की बात कह रहा हूं। हो सकता है कुछ इंडियन मॉड्यूल्स
का इस्तेमाल आतंकियों ने इन धमाकों में किया हो लेकिन समझौता ब्लास्ट में सौ फीसदी
पाकिस्तान का हाथ था इसके पुख्ता सबूत हमारे पास हैं। हमारी अपनी रिपोर्ट्स थी और
साथ ही साथ अमेरिकी खुफिया एजेंसियां भी इस बात को पुख्ता कर रही थीं।
बयानों को पिरोकर मामला बनाने की राजनैतिक साजिश
अभिनव भारत जैसी संस्था उग्र विचारधारा की रही है। धमकी देना और
बड़बोलापन दिखाकर बम का बदला बम से लेने की बात करना उनका तरीका रहा है। ऐसी बहुत
सी संस्थाएं और लोग हिंदुस्तान में हैं लेकिन धमकियां देना और आतंकी हमला करने में
बड़ा फर्क है। ये लोग बोलते जरूर है लेकिन इनके पास ऐसा करने की कोई सलाहियत ही
नहीं है। इनकी बातों के बारे में तो जानकारियां मिली लेकिन इनकी किसी प्लानिंग के
बारे में जांच एजेंसियों को कभी कोई सबूत नहीं मिले। इनके सीधे सीधे धमाकों से
जुड़े होने का भी कोई सबूत नहीं मिला। इकबालिया बयानों के आधार एक दूसरे के खिलाफ
बुलवाकर इस पूरी कहानी को खड़ा कर दिया गया। जहां तक समझौता का सवाल है वहां तो
किसी का भी किसी तरह का कोई इन्वॉल्वमेंट हो ही नहीं सकता। इस जांच की दिशा को
राजनीति से प्रेरित होकर बदल दिया गया।
संघ से तार जोड़ने की कोशिश की जा रही थी-
सिमी के आतंकियों का एक बार फिर से नार्को टेस्ट हाल ही में हुआ और
उसमें भी ये साफ हो गया है कि समझौता ब्लास्ट को कैसे अंजाम दिया गया था। उनका ये
कबूलनामा धमाकों के बाद ही सामने आ गया था लेकिन राजनीतिक फायदे के लिए जांच को एक
अलग दिशा देने का काम किया गया। बड़े परिप्रेक्ष्य में देखें तो 2009 में इन्होंने
सिर्फ संघ को फंसाने के लिए समझौता और इशरत जहां मामले सामने रखे थे। इन्हें डर था
मोदी से और यही वजह है कि पहली बार खुद गृह मंत्री ने भगवा आतंक शब्द का इस्तेमाल
किया था जिसे कड़ी निंदा के बाद उन्हें वापस लेना पड़ा था।
मैं चिदंबरम को जानता हूं वो बहुत शार्प हैं-
मैंने कई मीटिंग्स के दौरान चिंदबरम को देखा है और उनके काम को नजदीक
से समझने का मौका भी मिला है। मैंन उन्हें 2004 से जानता हूं और एक बात उनके बारे
में साफ तौर पर कह सकता हूं कि वो बहुत शार्प और इंटेलीजेंट हैं। लेकिन उन्होंने
अपनी इंटेलीजेंस गलत जगह लगाई थी। वो वकील भी हैं इसीलिए सभी मामलों को खुद ही
कानूनी तौर पर बनाने में जुटे हुए थे। उन्हें शिवराज पाटिल को हटाकर लाया गया था।
पाटिल सीधे आदमी थे वो चाहे जो हो जाता इस तरह की साजिश में शामिल नहीं होते। वो
बैलेंस में विश्वास करने वाले इंसान थे। लेकिन वकील चिंदबरम तो कानूनी तरीके से इस
मामले को भगवा रंग देने में जुटे थे। एनआईए में भी इन्हीं के द्वारा चयनित लोगों
को रखा गया था।
एनआईए बनाने के पीछे भी चिदंबरम का खास मकसद-
एनआईए के एक एक अधिकारी का चयन चिदंबरम के इशारे पर हुआ था। उनके
इशारों पर काम करने वाले खास लोगों को इसमें जगह दी गई थी। चिदंबरम की इस बात को
लेकर भी आलोचना हुई थी कि वो सीनियर्स के बजाय कई जूनियर्स को तवज्जो दे रहे हैं।
यहां भी उनकी मंशा सवालों के घेरे में थीं क्यूंकि वो शायद ऐसे लोग चाहते थे जो
उनके इशारे और एजेंडे पर काम करें। ऐसे भी कई लोग रहे जो पहले एनआईए में सीनियर पद
पर आए और फिर बाद में उन्हें कई दूसरे महत्वपूर्ण पद दे दिए गए। ये उन्हें फायदा
पहुंचाने का इशारा भी करता है।
अमेरिका भारत को देता था जानकारियां-
अमेरिका पाकिस्तान की चालाकी से वाकिफ था लेकिन अफगानिस्तान में अपनी
लड़ाई के लिए पाकिस्तान उसकी मजबूरी था। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की नजर आईएसआई
की हर गतिविधि पर थी। अमेरिका का खुफिया नेटवर्क पाकिस्तान में बहुत मजबूत है।
पाकिस्तान में आईएसआई की साजिशों के बारे में वो समय समय पर भारत को जानकारियां
देता रहा है। समझौता ब्लास्ट की जानकारी भी ऐसी ही एक जानकारी थी साथ ही हमारी
खुफिया एजेंसियों के पास भी इसके इनपुट्स पहले से ही थे। 2009 में 7 अमेरीकी एजेंट
मारे गए थे और जनवरी 2010 के एक सीक्रेट केबल से ये साफ है कि इसके लिए आईएसआई ने
आर्थिक मदद की थी। अमेरिका ये सब जानता था लेकिन उसकी मजबूरी थी कि पाकिस्तान को
साथ लेकर चलना है लेकिन वो भारत को सारी जानकारियां देता रहता था।
कसमानी के बारे सारी जानकारियां मौजूद थीं। खासतौर पर उसकी फंडिंग के
बारें में अहम जानकारियां थी। क्यूंकि अमेरिका का पाकिस्तान में डीप पेनेट्रेशन है
और वो साथ मिलकर अफगानिस्तान में काम करते हैं इसीलिए भी अमेरिका के पास ज्यादा
भीतर तक की जानकारियां होती हैं। वो हमें हर मीटिंग और आतंकियों के मंसूबों के
बारे में बताते रहते थे।
ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में होने की जानकारी भारत ने
अमेरिका को दी-
जानकारियां हम भी अमेरिका को मुहैया कराते रहे हैं। मुझे याद है 2006-2007
के आस पास दो अहम मीटिंग्स पाकिस्तान में हुई थी। इनमें जवाहिरी और ओसामा का
सिपहसालार मुल्ला उमर शामिल थे। ये लोग मीटिंग खत्म होने के बाद रावलपिंडी जाते थे
और वहां से गायब हो जाते थे। हमें तभी शक हो गया था कि ओसामा बिन लादेन रावलपिंडी
के आस पास ही है। ये जानकारी हमने अमेरिका के साथ साझा की थी और बहुत मुमकिन है
इसी को आगे डेवलप कर अमेरिका ने ओसामा का सफाया कर दिया।
इसी तरह उन्होंने कसमानी के रोल के बारे में हमें कई बार बताया था।
दरअसल अमेरिकी खुफिया एजेंसी के एजेंट पाकिस्तानी भी हैं जो उन्हें खबर देते रहते हैं।
हम लोगों को उनके मुकाबले जरा कम जानकारियां होती थी। समझौता एक्सप्रेस के बारे
में हमें भी जानकारियां थी लेकिन अमेरिकी एजेंसी ने और पुख्ता तौर पर जानकारियां
दी थी कि इसमें भी आरिफ कसमानी का अहम रोल है।
दिग्विजय सिंह और चिदंबरम के बीच की खींचतान
दिग्विजय सिंह हेमंत करकरे के लगातार संपर्क में थे। यहां तक की उनकी
मौत के बाद उन्होंने इसे हिंदू आतंकियों का काम तक कह दिया था। इसके बाद करकरे की
पत्नि ने उनसे मिलने से भी इंकार कर दिया था। चिदंबरम की भी लाइन यही थी लेकिन
सरकार में भी खींचतान थी। दरअसल दिग्विजय राहुल के नजदीक थे और चिदंबरम जानना
चाहते थे कि वो राहुल को क्या जानकारियां देते हैं। इसी लिए ये खबरें भी आई कि
दिग्विजय सिंह का फोन भी टैप करवाया जा रहा था। चिदंबरम को अपनी कुर्सी का खतरा भी
सता रहा था।
रविवार, 24 जुलाई 2016
स्वाति सिंह ने निकाली ‘मायागीरी’ की हवा
बीजेपी
नेता दयाशंकर सिंह के मसले पर आज बीएसपी सुप्रीमो ने करीब पौने घंटे की प्रेस
कांफ्रेंस की । इस दौरान मायावती ने एक तरफ तो बीजेपी के नेता दयाशंकर सिंह को
जमकर कोसा तो इसी बहाने से बीजेपी और समाजवादी पार्टी पर अंदरखाने समझौते का भी
आरोप लगाया । लेकिन उन्होंने एक बार फिर ‘मायागीरी’ दिखाते हुए अपने
सम्मान को देवी का सम्मान माना लेकिन स्वाति सिंह के सम्मान को तवज्जो नहीं दी।
भद्दी टिप्पणी करने वाले अपनी पार्टी के नेता का बचाव करती दिखाई दी मायावती और कहा कि नसीमुद्दीन का बयान दयाशंकर की बेटी और
पत्नी के लिए नहीं था। ये अब सब जानते हैं कि नसीमुद्दीन ने कहा था दयाशंकर की
पत्नि और बेटी को पेश करो। इस पर स्वाति सिंह ने सवाल पूछा था कि मायावती बताए
कहां पेश करना है। मायावती ने स्वाति सिंह पर राजनीति का आरोप लगाया तो स्वाति
सिंह ने कुछ देर पहले मेरे साथ बातचीत में इन आरोपों को दयाशंकर सिंह की पत्नी ने
सिरे से खारिज कर दिया।
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SWATI SINGH LIVE ON IBN7 AFTER MAYAWATI'S PC |
मायावती
जब प्रेस कांफ्रेंस करने आई तो उम्मीद थी कि वो नसीमुद्दीन सिद्दकि के मसले पर खेद
प्रकट करेंगी या उस तरह की बयानबाजी से अपने को दूर कर लेंगी। लेकिन मयावाती ने
साफ तौर पर नसीमुद्दीन सिद्दिकि का बचाव किया और कहा कि बीएसपी के नारों का गलत
मतलब निकाला गया। मायावती ने आरोप लगाया
कि दय़ाशंकर की मां, पत्नी
और बेटी के कंधे पर बंदूक रखकर बीजेपी निशाना साध रही है। उन्होनें इल्जाम लगाया
कि बीजेपी की शह पर ही मां और बेटी को आगे किया गया है ताकि दयाशंकर का केस कमजोर
हो सके।
मायावती
का शब्दशः बयान इस तरह है,
उन्होंने
अपनी बेटी को लेकर जो शिकायत करवाई दयाशंकर के खिलाफ भी एक शिकायत दर्ज करवाती क्यूंकि
उसने मायावती के खिलाफ बोला। ऐसा करने पर इन दोनो महिलाओं को देश की महिलाऐं अपने
सिर पर बैठाती। इनकी दोगली मानसिकता साफ झलकती है।
पहले
खुद को देवी कहना उसके बाद महिला अस्मिता का आदर्श बना लेना ये सारी बातें मायावती
की शख्सियत का हिस्सा रही हैं। मायावती अपने पार्टी कार्यकर्ताओं की देवी हो सकती हैं
लेकिन वो स्वाति सिंह के लिए देवी नहीं है जो उनके लिए झंडा उठाते हुए अपने पति के
खिलाफ शिकायत दर्ज करवाती। मैंने स्वाति से ये बात पूछी कि क्या बीजेपी और आपकी
लड़ाई का अलग-अलग होना एक गलत इम्प्रेशन नहीं दे रहा है? उनका जवाब था कि बीजेपी की अपनी
राजनैतिक लड़ाई है और मेरा उससे कोई लेना देना नहीं। ये मेरी निजी लड़ाई है जो मैं
अपनी बेटी और सास के लिए लड़ रही हूं। इसमें मायावती जी का ये कहना कि मैं राजनीति
से प्रेरित हूं उनकी महिला सम्मान को लेकर कही जानी वाली बातों की पोल खोल देता
है।
स्वाति
ने ये भी कहा कि यदि सभी पार्टियां इस मुद्दे पर एक मत होकर महिला सम्मान के लिए
साथ आएं तो उन्हें कोई परहेज नहीं लेकिन मुद्दे का राजनीतिकरण करने के लिए कोई भी
पार्टी आएगी तो वो उन्हें साथ नहीं आने देंगी चाहे वो बीजेपी हो या कोई और पार्टी।
स्वाति
सिंह की इन बातों से साफ है कि वो राजनीति से प्रेरित नहीं है लेकिन ये जरूर है कि
उनके मुखर व्यक्तित्व और मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाने ने दयाशंकर से पल्ला
झाड़ रही बीजेपी को एक नई राह दिखा दी। स्वाति सिंह ने मायावती को बैकफुट पर धकेल
दिया और अपने अपमान से मिले मुद्दे से खुश हो रही मायावती अब परेशान दिख रही हैं
जो उनकी प्रेस कॉफ्रेंस में साफ छलका। बीएसपी के हाथी की हवा स्वाति सिंह के
तेवरों के आगे निकलती दिखाई दे रही हैं। इस बीच अहम सवाल उस बच्ची का भी था जो इन
नारों के बाद व्यथित है।
स्वाति
सिंह ने कहा कि वो और उनकी सहेलियां उनकी बेटी की काउंसलिंग के प्रयास कर रही है।
वो इस घटना से बहुत परेशान है और स्कूल भी नहीं जा रही। उनके बच्चे डरे हुए हैं।
गौरतलब है कि रीता बहुगुणा जोशी के एक बयान के बाद बीएसपी के इन्ही देवीभक्तों ने
कांग्रेस नेता के घर में आग लगा दी थी। खबर ये भी है कि इस पूरे मामले के बाद
स्थानीय लोगों ने भी पुलिस के अलावा दयाशंकर सिंह के घर के आसपास एक सुरक्षा घेरा
बना रखा है।
मायागीरी
का एक और नमूना मायवती ने पेश करते हुए कहा कि उनकी सरकार के आने के बाद इस मामले
में न्याय होगा। ये सिर्फ एक राजनैतिक मुद्दा नहीं है बल्कि मायावती के अहम पर लगी
एक चोट भी है। मायावती अपने अहंकार पर लगी चोट के बदले के लिए भी जानी जाती हैं। वो
सरकार आने के बाद भी मुद्दे को नहीं छोड़ना चाहती। वो और उनके पदचिन्हों पर चलने
वाले मिश्रा जी पहले ही सदन में खुलेआम कह चुके हैं कि आगे कुछ हुआ तो पार्टी
जिम्मेदार नहीं होगी। धमकी देने की ये अदा और अनर्गल बातों की ये मायागीरी साफ कर
रही है कि अपने अपमान से उत्साहित मायावती के हाथी का गुरूर स्वाति सिंह ने तोड़
दिया है। स्वाति सिंह के साथ समर्थन इसीलिए नहीं दिख रहा क्यूंकि वो बीजेपी के
निष्कासित नेता की पत्नि है बल्कि इसीलिए दिख रहा है क्यूंकि वो सही हैं। मायावती
जैसे कथित दलित नेताओं ने दलितों का इस्तेमाल सिर्फ अपनी छबि को मजबूत करने और
अपने राजनैतिक स्वार्थों के लिए किया है। नसीमुद्दीन के बयान का बचाव कर उन्होंने
खुद के लिए इस मुद्दे पर बन रहे, रहे-सहे समर्थन को भी खो दिया है।
गुरुवार, 21 जुलाई 2016
क्या है भारत में पाकिस्तान का झंडा फहराने की जेहनियत?
बिहार
के नालंदा में एक महिला शबाना अनवर ने पाकिस्तान का झंडा फहराया। इस घटना
के सामने आने के बाद पूरे इलाके में तनाव पैदा हो गया। महिला के परिवार ने सफाई
देते हुए कहा कि बेटा पैदा होने के लिए उन्होंने मन्नत मांगी थी और वो पिछले कई
सालों से इस तरह का झंडा फहरा रहे हैं। इस महिला का पति विदेश में मजदूरी करता है।
बेटा पैदा होने की बात पुलिस को हजम नहीं हुई क्यूंकि बेटे की उम्र 5 साल है और इलाके के लोगों का दावा है
कि कई सालों से झंडा फहराने की बात झूठी है क्यूंकि उन्होंने इस तरह का झंडा पहले
नहीं देखा। पुलिस ने महिला को गिरफ्तार कर लिया।
इस
मामले में कई प्रतिक्रियाएं आई बिहार सरकार ने इस सिरफिरों का काम तक कहा लेकिन
सबसे दिलचस्प प्रतिक्रिया एनसीपी नेता तारिक अनवर की आई। उन्होंने कहा मुस्लिम
त्योहारों के मौके पर अक्सर इस तरह के झंडे फहराए जाते हैं। ये हरे रंग के होते
हैं और इनमें चांद तारा बना होता है। शायद इसे देखकर गलत फहमी हो गई होगी। उनकी इस
बात को सुनकर मुझे भी दिल्ली से कही जाते हुए रामपुर और उत्तर प्रदेश के कुछ और
इलाकों का एक दृश्य याद आ गया। कुछ समय पहले की बात है जब मैं अपनी कार से
उत्तराखंड जा रहा था। इन इलाकों में मैंने इस तरह के कई झंडे देखे थे और बहुत
आश्चर्य हुआ था कि कैसे पाकिस्तान का झंडा फहराया जा सकता है। वहां भी पूछताछ में
यही पता लगा कि ये तो हर त्योहार पर लगाए जाते।
इस
देश में हर बात में सांप्रदायिकता को तलाशने वाले लोगों को इस मुद्दे पर भी ध्यान
देना चाहिए। ये मामला सिर्फ किसी देश का झंडा फहराने का नहीं है ये बात जेहनियत की
है। अनपढ़ और गंवार लोगों को आसानी से बरगलाया जा सकता है। ये बात किसी धर्म और
मजहब की नहीं है ये बात इस देश के प्रति समर्पम और इसके प्रतीकों के सम्मान की है।
बात बात पर भारतीय संविधान का हवाला दिया जाता है और अभिव्यक्ति की आजादी की बात
कही जाती है। इसी देश में खोजने निकलेंगे तो देश द्रोह की कई हरकतें और बातें
देखने और सुनने को मिल जाएंगी लेकिन इन बातों को आखिर पालता पोसता कौन है।
मैं
निजी तौर पर नीतीश कुमार के काम का प्रशंसक हूं उन्होंने शराब बंदी के साथ पूरे
देश के सामने एक बेहतरीन मिसाल रखी है। वो लालू यादव जैसे नेता के साथ निभा रहे
हैं ये भी कम साहस का विषय नहीं है लेकिन इस घटना के बाद केंद्रीय मंत्री गिरिराज
सिंह की प्रतिक्रिया ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या सचमुच तुष्टिकरण की
राजनीति करते करते हम इतने आगे निकल आए हैं कि देश प्रेम और देश द्रोह का फर्क भूल
गए हैं। ये हमारे देश की स्थिति है कि यहां देश के खिलाफ कोई काम करने वालों के
बारे में दस बार सोचना पड़ता है कहीं मुझे किसी धर्म विशेष का विरोधी तो करार नहीं
दे दिया जाएगा? कहीं मुझे किसी धर्म विशेष का कट्टर
समर्थक तो नहीं कह दिया जाएगा।
गिरिराज
सिंह ने कहा कि आतंकी को अपनी बेटी कहने वाले नेताओं के राज में आप क्या उम्मीद कर
सकते हैं। इशरत जहां, बाटला हाउस एनकांउटर आदि जैसे मुद्दों पर भी राष्ट्रहित से
ऊपर वोटहित को रखा गया। पूरा भगवा आतंकवाद सिर्फ तुष्टिकरण के लिए खड़ा कर दिया
गया। आज इस घटना के बाद ये लग रहा है कि यदि देश में सबके लिए समान कानून बनाकर
राजनीति से ऊपर उठकर देशहित के भाव को जागृत नहीं किया गया तो हर छत पर ऐसे ही
झंडे दिखाई पड़ेंगे। आखिर में ये बताना जरूरी है कि सिर्फ पाकिस्तान का ही नहीं
सेक्शन 7, फ्लैग कोड के तहत किसी अन्य देश का झंडा फहराना कानूनन अपराध है। जब बात
पाकिस्तान की होती है तो सवाल और अहम होता है क्यूंकि ये कभी हमारा ही हिस्सा था।
इसके अलग होने की जड़ में मजहब था। मजहब की वो दीवार अब भी देखने को मिलती है
लेकिन हिंदुस्तान में रहने वाले हर हिंदुस्तानी को समझना होगा कि ये पाकिस्तान
नहीं और पाकिस्तान में हिंदुओं की तो जो हालत है वो है ही मुसलमानों की भी हालत
अच्छी नहीं। एक झंडा इस अखंड भारत को पाकिस्तान नहीं बना सकता लेकिन देशद्रोह की
एक घटिया सोच ऐसा कर सकती है। इससे बचिए।
रविवार, 17 जुलाई 2016
सोमवार, 11 जुलाई 2016
जानिए जाकिर खल’नाइक’ क्यूं है?
दिग्विजय सिंह की अपनी राजनीति है उन्हें घूम फिर
कर हिंदू आतंकवाद पर किसी भी मुद्दे को लाना हैं दूसरे कई बयानों की तरह उनकी अपनी
पार्टी इस मुद्दे पर भी उनके साथ नहीं खड़ी होगी। सवाल ये उठते है कि फिर कांग्रेस
के कुछ अघोषित कार्यकर्ता किस आधार पर जाकिर नाईक का समर्थन करते दिखाई पढ़ रहे
हैं। तमाम तर्कों और कुतर्कों के बीच ये तो जान लीजिए कि ये शांतिदूत आखिर अपने
कथित प्रवचनों में कहता क्या है? जो भी जाकिर नाईक के समर्थन में बोल रहा है समझ
लीजिए वो उसके इन जहरीले बयानों का भी समर्थन कर रहा है।
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सभी मुसलमान पैदा होते हैं उनके मां बाप उन्हें बिगाड़ कर दूसरे धर्म का बना देते हैं .....जाकिर नाईक |
जिन्हें सिर्फ इन बयानों
की वजह से जाकिर नाईक में कोई बुराई नहीं लगती उन्हें विस्तार से ये भी समझना
चाहिए कि कट्टरपंथी भाषणों की वजह से ब्रिटेन, कनाडा और मलेशिया समेत कई देशों ने अपने
देश में घुसने से भी क्यूं रोका है? इस बीच सवाल ये भी उठता है कि बांग्लादेश ने
आतंकी हमले के बाद पीस टीवी को बैन किया। भारत सरकार यू ट्यूब पर भी इस शख्स के
जहर को बैन करवाने की कोशिश कर रही है लेकिन ये सब पहले क्यूं नही हुआ? बड़ी बात ये भी कि
ये अकेला ऐसा नहीं जो ये सब कर रहा हो ऐसे कई और लोग भी जहर फैलाने का काम कर रहे
हैं उन पर बैन के लिए भी किसी अन्य हमले का इंतजार किया जा रहा है क्या?
ये कथित विद्वान स्पष्ट तौर पर कहता है कि
"सभी मुस्लिमों को आतंकवादी होना चाहिए"। नाइक के इन बयानों पर भी गौर
करिए...
1. नाइक का कहना है कि इस्लाम अन्य धर्मों के
लिए बेहतर है। गैर-मुसलमानों को किसी इस्लामी देश में धार्मिक पूजा स्थल बनाने की
अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
2. मुसलमानों को महिला गुलामों के साथ शारीरिक
संबंध बनाने की खुली इजाजत है।
3. सानिया मिर्जा को शालीन कपड़ों में टेनिस
खेलना चाहिए। कोई भी भारतीय राजनेता भले ही वह एक अंतरराष्ट्रीय खेल हो जाता है
बीच वॉलीबॉल खेलने के लिए अपनी बेटी को भेजने के लिए चाहते हैं।
4. लड़कियों के स्कूलों जाने पर रोक लगानी चाहिए जहां स्कूल से पास आउट
होते होते वो अपना कौमार्य खो देती हैं। स्कूलों को बंद किया जाना चाहिए। महिलाओं के सोने के गहने पहनने पर भी पाबंदी
लगाई जानी चाहिए।
5. पश्चिम के लोग महिलाओं की मुक्ति के नाम
पर अपनी बेटियों और माताओं को बेच रहे हैं।
6. पत्नी को पीटना मुस्लिम दुनिया में बुरी
बात नहीं है। नाइक का कहना है कि सेक्स के दौरान कंडोम का इस्तेमाल एक इंसान की
हत्या करने जैसा है।
7. शादी के बाद महिला के किसी और से यौन
संबंध रखने के पर उसे पत्थरों से मार मार कर मौत के घाट उतार देना शरीयत कानून के
अनुसार स्वीकार्य है।
8. नाइक का कहना है कि कुरान और सुन्नत की
शिक्षाओं के मुताबिक समलैंगिकों को मार डाला जाना चाहिए।
9. मौलवियों द्वारा कहे जाने पर फिदायीन बन
जाना बुरी बात नहीं है। उन्होंने ओसामा बिन लादेन की निंदा करने से ये कहते हुए
मना कर दिया कि 9/11 अमेरिका के द्वारा ही रची हुई साजिश है।
10 इस कथित इस्लामी विद्वान का कहना है कि
मुस्लिमो को अल्लाह के अलावा किसी की मदद नहीं लेना चाहिए यहां तक की पैगंबर से भी
मदद नहीं लेनी चाहिए। इस्लामिक स्टेट ने इसी कथन का इस्तेमाल कर सूफियों, शियाओं और अहमदियों
के खिलाफ हिंसा को जायज ठहराया था।
ये मसला सिर्फ इस्लाम के एक कथित प्रचारक तक
सीमित नहीं है दरअसल ये इस्लाम के दुष्प्रचार का मामला है। यही वजह है कि इस्लाम
के कई जानकार भी इस शख्स के विरोध में उतर आए हैं। मेरा सवाल अब भी बरकरार है जब
इसकी बातों से इस्लाम के जानकार भी इत्तेफाक नहीं रखते तो युवा उनसे ज्यादा इसकी
क्यूं सुनते हैं?
रविवार, 10 जुलाई 2016
भूतों के वैज्ञानिक प्रमाण देने वाले एक दोस्त की रहस्यमयी मौत!
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गौरव, वो दोस्त जिसका दावा था कि वो भूतों को जानता है। |
भूत प्रेतों को टीवी पर जमकर टीआरपी मिलती है। इस पर बहस भी बहुत होती
है कि भूतों के कार्यक्रमों के जरिए अंधविश्वास फैलाया जाता है। मुझे भी ये
अंधविश्वास लगता था जब तक मेरी मुलाकात गौरव तिवारी से नहीं हुई थी। गौरव ने
पैरानॉर्मल सोसाईटी बनाकर एक नई शुरूआत की। वो भूतों को न मानते हुए नकारात्मक
ऊर्जाओं को मानते थे। टीवी इतिहास में ये एक नई शुरूआत थी क्यूंकि अब भूतों के
बारे में बोलने वालों में सिर्फ ज्योतिषी, तांत्रिक या कर्मकांडी पूजारी या मौलान
ही नहीं थे बल्कि अपने अलग अलग उपकरणों के साथ ‘HAUNTED’ यानि भूतहा कही जाने वाली जगहों की पड़ताल
करने वाले युवाओं की एक पूरी टीम थी।
उनके वैज्ञानिक प्रमाणों ने तर्कशास्त्रियों और रेशनलिस्टों के सामने
एक नई चुनौती पेश कर दी थी। जहां भूतों को मानने वाले अलग अलग धार्मिक ग्रंथों की
अपने हिसाब से व्याख्या करते थे वहीं गौरव इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में कैद होने वाली
अस्वभाविक या परा प्रभाव वाली गतिविधियों को कैद कर प्रमाण के तौर पर रखते थे।
उनके इस शौक को पहचान तब मिली जब देश भर में खतरनाक कही जाने वाली जगहों पर रातों
में रुक रुककर उन्होंने कई प्रमाण जुटाए। इसे एक नए किस्म का व्यवसाय भी कहा गया
क्यूंकि गौरव को कई लोगों ने अपने घर बुलाकर ऐसे मामलों के बारे में बताना शुरू
किया। गौरव का ये दावा था कि नकारात्मक ऊर्जा से कोई भी इंकार नहीं कर सकता। ये
जरूर है कि इसके जैसे रूप को फिल्मों में दिखाया जाता है वो संभव नहीं है।
वैज्ञानिक रूप से इन्हें पता करने के लिए कुछ और एडवांस उपकरणों की आवश्यकता है।

मुझे वो और उनकी पूरी टीम बहुत दिलचस्प लगी। ये सभी पढ़े लिखे नौजवान
थे। अभी तक भूतों की बात करने वालों को अनपढ़ ही माना जाता था। विदेशों में ऐसी कई
सोसाइटीज काम कर रही थीं जो इस तरह के वैज्ञानिक प्रमाण रहस्यमयी जगहों के बारे
में रखती थी। गौरव ने ऐसी ही सोसाईटीज से प्रेरणा लेते हुए पैरानॉर्मल सोसायटी
बनाई। वो लगातार रहस्यमयी बातों, घटनाओं और जगहों को खंगाल रहे थे लेकिन उनकी मौत
ही अब एक बड़ा रहस्य बन गई है। आज सुबह अखबार में उनकी मौत की खबर पढ़कर मैं सन्न
रह गया। विश्वास ही नहीं हो रहा था कि गौरव की मौत हो गई वो भी रहस्यमयी
परिस्थितियों में।
खबर के मुताबिक उनकी पत्नि और पिता ने बाथरूम से बहुत तेज आवाज सुनी।
वे उस और दौड़े तो देखा गौरव जमीन पर पड़े थे। पुलिस तफ्तीश के बाद जानकारी दी गई
कि उनके गले पर काला निशान दिखाई दे रहा है। गौरव के पिता के मुताबिक वो भूत
प्रेतों को नहीं मानते लेकिन गौरव काफी दिनों से अपनी पत्नि से कह रहे थे कि कोई
नकारात्मक शक्ति उन्हें अपनी तरफ खींच रही है। वो पिछले कुछ दिनों से परेशान थे।
उनकी पत्नि ने इसे महज काम का तनाव माना था लेकिन उनकी रहस्यमयी मौत ने पूरे
परिवार को सकते में डाल दिया। मेरे लिए इसपर कुछ भी कहना मुश्किल है क्यूंकि मैं
इस विषय का जानकार नहीं लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि गौरव को जानता था और वो
बेहद सुलझा और समझदार लड़का था। उसके पिता ने भी हाल के दिनों में उसे पूरी तरह
स्वस्थ बताया ऐसे में उसके आत्महत्या करने की थ्योरी पर उनके लिए विश्वास करना
संभव नहीं हो पा रहा है। उनका ये भी कहना है कि दूर दूर तक ऐसी कोई वजह भी नहीं कि
वो ऐसा कदम उठाए। गौरव को मेरी श्रद्धांजलि।
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