शनिवार, 28 मई 2016

Shocking Fact: हिंदुस्तान में वो समय जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी छुट्टी पर थे!

हिंदुस्तान में वो समय जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी छुट्टी पर थे!

12 मार्च1993 मुंबई धमाके हुए जिसने 350 लोगों की जान ली से। 11 जुलाई 2006 को मुंबई में ही 7 ट्रैन धमाके हुए जिनमें 209 मासूमों की जान गई। इन दो आंतकी हमलो के बीच भी 18 और बड़े आतंकी हमले हुए जिनमें मुंबई ने 4 और आतंकी हमले झेले। मार्च 93 से जुलाई 2006 के बीच हुए आतंकी हमलों में यदि 12 मार्च 1993 और 11 जुलाई 2006 के धमाकों में मारे गए लोगों की तादाद देखें तो कुल करीब 524 मासूमों की जान गई। ये दोनों धमाके 2006 तक हमलों में सबसे ज्यादा जान लेने वाले धमाके थे ऐसे में इन दोनों धमाकों में मरने वालों की तादाद भी जोड़ लेते हैं तो आंकड़ा 1083 तक पहुंच जाता है। मैं गणित का विद्यार्थी रहा हूं लेकिन यहां आंकड़ों में मेरी दिलचस्पी इस वजह से नहीं है दरअसल देश में हुए आतंकी हमलों के पैटर्न को समझने के लिए इन आंकड़ों को विस्तार से समझना जरूरी है।

अब सीधे आपको लिए चलते हैं 24 नवंबर 2007 को हुए लखनऊ, फैजाबाद, वाराणसी धमाकों पर जिनमें 16 लोगों की जान गई थी। इसके बाद अभी तक का कश्मीर के अलावा आतंकी अटैक पठानकोट का रहा है यानि 2 जनवरी 2016 का आतंकी अटैक जिसमें 7 जवान शहीद हुए थे। इन दो आतंकी हमलों के बीच 34 और आतंकी हमले अभी तक हो चुके हैं। इन दोनों हमलों को भी मिला ले तो इन 36 हमलों में करीब 618 लोगों की जान गई है। इनमें 26/11 का अटैक भी शामिल है जिसमें इस दौर में सबसे ज्यादा 171 लोगों की जान गई थी। देश में हुई आतंकी घटनाओं को इन दो हिस्सों में बांटने की एक खास वजह है। पहले हिस्से के आखिरी हमले यानि 11 जुलाई 2006 के बाद और दूसरे हिस्से के पहले हमले यानि 24 नवंबर 2007 के बीच के इस दौर का नया नामकरण किया गया। इसे भगवा आतंकवाद या हिंदू आतंकवाद के तौर पर सियासतदानों ने जमकर प्रचारित किया। अब जरा इस दौर पर भी गौर करिए।

8 सितंबर 2006 को मालेगांव मे सीरिज ब्लास्ट हुए जिनमें 37 लोगों की जान गई। इसके बाद 18 फरवरी 2007 को समझौता एक्सप्रेस धमाके हुए जिनमें 68 लोगों की जान गई। 18 मई 2007 मक्का मस्जिद मक्का मस्जिद के धमाकों में 13 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद 25 अगस्त 2007 हैदराबाद के लुंबिनी पार्क और गोकुल चाट भंडार पर धमाके हुए जिनमें 42 लोगों की जान गई। फिर 11 अक्टूबर 2007 को अजमेर शरीफ की दरगाह पर धमाका हुआ जिसमें 3 लोगों की मौत हुई। 14 अक्टुबर 2007 को लुधियाना में भी ईद के दिन धमाका हुआ जिसमें 6 लोगों की मौत हुई। सितंबर 2006 से अक्टूबर 2007 के बीच के इस दौर में कुल 6 आतंकी हमले हुए करीब 169 मासूमों की जानें गईं। इन मामलों को अलग लिखने की वजह तत्कालीन यूपीए सरकार और एनआईए की जांच ने दी। इनमें मालेगांव, समझौता, मक्का मस्जिद और अजमेर शरीफ धमाकों में हिंदू संगठनों का हाथ होने की बात एनआईए की जांच ने बाद में कही। लुधियाना का धमाका पाकिस्तान की मदद से बब्बर खालसा द्वारा किए जाने की बात सामने आई। 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में फिर धमाके हुए और इसमें 10 लोग मारे गए। ये भी पाकिस्तान के नापाक आतंकियों के हमलों की फेहरिस्त में एक टाट के पैबंद जैसा दिखाई पड़ता है। इसकी कहानी भी पहले कुछ और थी और बाद में इसमें भी भगवा आतंकवाद की थ्योरी सामने आ गई।

कथित भगवा आतंकवाद के इस दौर में हैदराबाद के धमाकों में शाहिद और बिलाल नाम के दो आतंकी पकड़े गए। जांच में ये बात सामने आई कि हूजी ने इस आतंकी हमले को अंजाम दिया है। पुलिस और एटीएस की जांच ने ये भी साफ कर दिया कि इस मामले के मास्टर माइंड और मक्का मस्जिद के मास्टर माइंड एक ही थे। मालेगांव की जांच में भी सिमी के ही आतंकियों का हाथ होने की बात साफ हो गई थी। इसी तरह समझौता में अमेरिकी इंटेलीजेंस एजेंसियों ने भी ये साफ कर दिया था कि ये लश्कर का काम है। इस सबके बावजूद मालेगांव, मक्का मस्जिद, अजमेर शरीफ और समझौता धमाकों के इस दौर में एनआईए ने जांच को भगवा संगठनों पर केंद्रित कर दिया। इससे पहले हुए धमाकों और बाद के धमाकों की मॉडस ऑपरेंडी में भी कोई खास फर्क देखने को नहीं मिलेगा। हां एक बात थी कि इन हमलों में मुसलमान ज्यादा मारे गए। इस बात को आधार बनाकर ये घटिया थ्योरी भी सामने रखने की कोशिश की गई कि पाकिस्तान परस्त आतंकी मुस्लिमों के हिमायती हैं और उन्हें नहीं मारेंगे। आतंक का कोई मजहब नहीं होता और इन हमलों में भी मजहब ढूंढना बेमानी है। 26/11 से लेकर देश के हर आतंकी हमले में हर मजहब का हिंदुस्तानी मारा गया।

इस दौर को अलग रखकर समझना इसीलिए जरूरी है क्यूंकि इस दौर में पाकिस्तान परस्त आतंकी शायद छुट्टी पर चले गए थे। जब कथित भगवा आतंकवाद के हमलों की बात तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिंदबरम रख रहे थे तब इस्लामिक आतंकी शांत बैठे थे। ये बहुत ही अजीब लगता है क्यूं इस दौर के पहले और बाद में किस तरह हमले होते रहे और मासूम मरते रहे के आंकड़े मैं शुरू मॆं ही रख चुका हूं। हमले पहले भी हुए और बाद में भी लेकिन इस दौर में इंडियन मुजाहिदीन और सिमी शांत हो कर बैठ गए। ऐसा लगता है जैसे वो कथित भगवा आतंकियों को सितंबर 2006 से अक्टूबर 2007 का समय दान में देकर खुद छुट्टी पर चले गए। ज्यादा जांच पड़ताल तो दूर की कौड़ी है लेकिन थोड़ा तारीखों पर नजर दौड़ा ली जाए तो बहुत सी बातों पर से परदा उठ जाए।

अगस्त 2010 में दिल्ली में देश भर के पुलिस प्रमुखों की बैठक में चिदंबरम ने अपने भाषण को पूरी तरह देश में पनपने वाले आतंकवाद पर केंद्रित रखा था। ये वो दौर था जब एनआईए की जांच इस दिशा में जा रही थी। फिर एक एक कर वो मामले सामने आए जहां मुस्लिम मारे गए और कथित भगवा आतंकी सामने आए। दुखद बात ये है कि जिस वक्त वो ये चिंता जता रहे थे उसके बाद से अब तक देश में 21 आतंकी हमले हो चुके हैं और सब पाकिस्तान प्रायोजित ही हैं लेकिन पाकिस्तान उनके उसी बयान को पकड़े हुए कह रहा आतंकी तो आप के देश में ही पनपनते हैं। इस चिंता को जताने के बाद से लेकर आज तक कोई ऐसा मामला सामने नहीं आया जो एनआईए जांच की इस कहानी को दोहराता पाया जाता। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों की छुट्टी वाला ये दौर भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी शर्मसार करने वाला रहा।

शुक्रवार, 27 मई 2016

EXCLUSIVE- मालेगांव ब्लास्ट की जांच में दो एटीएस अधिकारियों पर अपराधिक मामला दर्ज

EXCLUSIVE- मालेगांव ब्लास्ट की जांच में दो एटीएस अधिकारियों पर अपराधिक मामला दर्ज


8 साल से मालेगांव धमाके मामले में पूछताछ के लिए एटीएस के द्वारा उठाया गया इंदौर का दिलीप पाटीदार आज तक नहीं मिला। सीबीआई को इस मामले की जांच के लिए लगाया गया था। सीबीआई ने हाल ही में इस मामले में अपनी क्लोजर रिपोर्ट जमा की। इस रिपोर्ट में सीबीआई ने लिखा कि दिलीप पाटीदार को ढूंढ पाना संभव नहीं है। इंदौर की विशेष सीबीआई कोर्ट ने इस मामले में एटीएस के दो अधिकारियों हनुमंत राव गोरे और राजेंद्र धुले के खिलाफ अपराधिक मामला चलाने का आदेश दिया है। मालेगांव धमाकों के सिलसिले में 10-11 नवंबर 2008 को रात 12 बजे एटीएस महाराष्ट्र के अधिकारियों ने दिलीप पाटीदार को पुछताछ के लिए उठाया था। इसके बाद से दिलीप पाटीदार लापता है। उनके परिवार को शक है कि पुलिस ने जबरदस्ती बयान लेने के चलते जो ज्यादती की उसमें उनकी मौत हो गई। इस बारे मे दिलीप का परिवार पहले भी गुहार लगाता रहा है। मामले सामने आने के बाद सीबीआई जांच करती रही और इस जांच में 8 साल लगा दिए। इस बीच पाटीदार का परिवार उनके वापिस आने की हर उम्मीद को खो चुका है। वो इंसाफ चाह रहा है और सीबीआई कोर्ट के इस आदेश ने उन्हें उम्मीद की एक किरण दिखाई। साध्वी प्रज्ञा के वकील जे. पी. शर्मा ने IBN7 से EXCLUSIVE बातचीत में ये जानकारी दी।
दिलीप पाटीदार- महज 29 साल का नौजवान जो अपनी
पत्नि और बच्चे के साथ रहता इंदौर में रहता था और
इलेक्ट्रिशियन के तौर पर काम करता था। एटीएस ने 2008
में मालेगांव पूछताछ के लिए उठाया और आज तक
अपने घर वापिस नहीं लौटा।

दिलीप इंदौर के कनाड़िया रोड पर शांति विहार कॉलोनी में अपनी पत्नि पदमा और बेटे के साथ किराए के मकान में रहते थए। वो पेशे से एक इलेक्ट्रिशियन थे और मूलतः शाजापुर के दुपाड़ा गांव के रहने वाले थे। मालेगांव धमाकों में एक के बाद एक गिरफ्तारियां हो रही थी और 16 अक्टूबर 2008 को शांति विहार कॉलोनी से ही शिवनारायण कलसांगरा, श्याम साहू, दिलीप नाहर और देवास के धर्मेंद्र बैरागी को हिरासत में लिया गया था। करीब एक हफ्ते बाद साध्वी प्रज्ञा को ब्लास्ट का आरोपी बताकर गिरफ्तार किया गया। वहीं साध्वी प्रज्ञा जिन्हें हाल ही में इस मामले में क्लीन चिट दे दी गई और जिनके द्वारा 8 सालों तक झेली गई यातनाओं का फिलहाल कोई हिसाब करने वाला नहीं। साध्वी के साथ ही शिवनारायण और श्याम को भी ब्लास्ट का आरोपी बताया गया था। 31 अक्टूबर 2008 की देर रात एटीएस के अधिकारी शिवनारायण को उसके घर ले गए और उसकी लाइसेंसी रिवॉल्वर को अपने कब्जे में ले लिया। ये सारी कार्रवाई शिवनारायण के किराएदार दिलीप पाटीदार ने देखा था। इसके अलावा रामचंद्र कलसांगरा के बारे में 29 साल के इस युवक से एनआईए ने पूछताछ का दावा किया था। दिलीप को उठाए जाने के बाद शिवनारायण के पिता गोपालसिंह ने खजराना थाने में एटीएस अफसरों के खिलाफ गहने चोरी की रिपोर्ट के लिए आवेदन दिया था। दिलीप और शिवनारायण के परिवार वालों ने आरोप लगाया था कि इस मामले में एटीएस के अधिकारी फंस सकते थे इसीलिए उन्होंने जबरदस्ती दिलीप को उठाया।


एटीएस ने दावा किया कि दिलीप को वापस इंदौर भेज दिया गया था लेकिन उसके परिवार ने बताया कि वो कभी घर आया ही नहीं। उन्हें शक ही नहीं अब यकीन हो चला है कि वो शायद इस दुनिया में है ही नहीं। ये मामला सिर्फ दिलीप के गायब होने तक ही सीमित नहीं है। ये एटीएस की उस समय पर चल रही पूरी कार्रवाई पर सवाल खड़े करता है। सीबीआई जैसी तेज तर्रार संस्था क्लोजर रिपोर्ट में दिलीप को ढूंढने में खुद को नाकाम बताती है। हांलाकि इस रिपोर्ट ने एटीएस के कुछ अधिकारियों को संदेह के घेरे में खड़ा किया था। दिलीप को एटीएस द्वारा उठाया जाना और फिर उसका गायब हो जाना ये भी बता रहा है कि उस वक्त के जांच अधिकारी किस तरह बेलगाम थे। इसी मामले में लेकेश शर्मा और धनसिंह को भी गिरफ्तार किया गया था लेकिन पर्याप्त सबूत नहीं होने की वजह से न चालान पेश किया गया और न ही इनकी जांच एनआईए को सौंपी गई। एटीएस ने जो जांच की वो सवालों के घेरे में है ही और कई गवाहों द्वारा एनआईए द्वारा की गई ज्यादतियों के आरोपों ने भी इस मामले को और गंभीर बना दिया है। अब तस्वीर साफ होती जा रही है कि इस मामले की जांच किसी खास मकसद से हो रही थी लेकिन इसकी हकीकत तभी सामने आएगी जब वो चेहरे बेनकाबू होंगे जिनके इशारे पर ये सब हुआ। 

शनिवार, 14 मई 2016

Journalist's cruel murder in siwan.. Hum To Puchhenge.. prime time debate on IBN7

मुझे सरकार से न तो पैसे मिले और न ही मैं किसी पार्टी का कार्यकर्ता हूं!

कथित भगवा आतंकवाद के मुद्दे पर लिखने के साथ ही मुझे मोदी सरकार की रखैल जैसी गालियां तक सुनने को मिल रही हैं। ये गालियां निजी तौर पर नहीं बल्कि देश दुनिया की प्रतिष्ठित वेबसाइट्स ibnkhabar.com जैसी वेबसाइट के सार्वजिनक मंच पर सुनने को मिल रही हैं। कुछ लोगों ने मेरे लेखों पर ये आरोप भी लगाया कि मुझे सरकार की तरफ से ये काम करने के लिए पैसे मिले हैं? पहले तो ये सब पढ़कर थोड़ा सकपकाया लेकिन फिर बाद में ये सब पढ़कर खुद ब खुद एक मुस्कुराहट चेहरे पर आ गई। कौन हैं ये लोग जो गालियां बकते हैंजब इस तरह कि कोई बात आती है तो राजनैतिक कार्यकर्ता और खास तौर पर वो जो वैचारिक कार्यकर्ता होते हैं ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं। मेरा मन किया ऐसी टिप्पणियों पर कड़ी प्रतिक्रिया दूं। ठीक वैसा ही मनोभाव था जैसा अपमान के बाद होना चाहिए लेकिन फिर नजर नीचे ऐसी टिप्पणियों का जवाब देने वालों पर भी गई। उन्हें पढ़कर राहत मिली लेकिन मन में एक सवाल भी खड़ा हो गया। किसी एक राजनैतिक दल के कार्यकर्ताओं की सहानुभूति और अन्य दल के आक्रामक शब्द धीरे धीरे मुझे सचमुच इस पूरे मामले में एक पार्टी विशेष का ही व्यक्ति बना देंगे।

मैं एक शोधार्थी हूं। अपने किसी भी प्रोजेक्ट के लिए कड़ी मेहनत करता हूं। लेखन की विश्वसनियता बनाए रखने के लिए खुद इंटरव्यूज करता हूं और उन्हीं बातों को लिखता हूं जो मेरे विवेक से मुझे सत्य मालू पड़ती हैं। भगवा आतंकवाद के मुद्दे को मेरी निजी मान्यताओं और धर्म से भी जोड़े जाने का खतरा बना ही रहता है लेकिन ऐसे किसी डर की वजह से भी सच को सच न लिखना एक अपराधबोध ही देता है। कथित भगवा आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर लिखने की वजह है मेरा इस विषय पर किया गया अब तक का शोध। ये इस विषय में मेरी दिलचस्पी ही थी जो मैंने बीएम मोहन जैसे शख्स का संपर्क सूत्र बड़ी मुश्किल से ढूंढा। ये नाम इस मामले की सबसे महत्वपूर्ण कड़ियों में से एक लेकिन अब तक कई लोग इनसे अन्जान हैं। नार्को, लाइ डिटेक्टर और ब्रेन मैपिंग तीनों ही टेस्ट करने के बाद इन्होंने सिमी आतंकियों के समझौता ब्लास्ट कबूलनामे की बात कही थी।
उनकी इन जानकारियों के आधार पर यदि जांच की जाती तो शायद इस पूरे मामले की एक अलग थ्योरी हमारे सामने हो सकती थी। खैर बात सिर्फ बीएम मोहन के दावों की नहीं है यदि किसी ने एनआईए की चार्जशीट को पढ़ने की जेहमत उठायी होती तो यहां सुनी सुनाई बातों या दिमाग में बैठी राजनैतिक और धार्मिक मान्यताओँ के आधार पर टिप्पणियां नहीं कर रहे होते। वे इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि इस पूरे मामले में षड़यंत्रकारियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं ही नहीं। साथ ही इसका पूरा आधार सिर्फ और सिर्फ बयान ही हैं। कहानी भी एक ऐसे शख्स के इर्द गिर्द बुनी गई जो अब इस दुनिया में है ही नहीं। सुनील जोशी को ही हर किसी के बीच की कड़ी बनाया गया और इस शख्स की ये जांच एनआईए को जाने से पहले ही हत्या कर दी गई थी। मैं इस विषय पर इसीलिए लिख रहा हूं क्यूंकि इस विषय के शोधार्धी के तौर पर ये बात मेरे सामने बहुत स्पष्ट रूप से सामने आ रही है कि इस मामले की जांच कहीं न कहीं राजनीति से प्रेरित हो सकती है। इसका ताजा सबूत अब एनआईए का सबूतों के अभाव में साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित को क्लीन चिट देना भी है। 

शुक्रवार, 13 मई 2016

क्या ये हैं धमाकों के असली गुनहगार? सिमी के आतंकियों का नारको करने वाले बीएम मोहन से एक्सक्लूसिव बातचीत


पिछले कई दिनों से एक शख्स से बात करने का मन था। मेरा ऐसा मानना है जिम्मेदार पद पर बैठे किसी शख्स के पास भगवा आतंकवाद के झूठ के खिलाफ विश्वसनीय जानकारी है तो वो हैं बी एम मोहन। बी एम मोहन FSL कर्नाटक के डायरेक्टर रह चुके हैं। कई अहम नारको टेस्ट उनके कार्यकाल में हुए है। बी एम मोहन तक पहुंचना बहुत मुश्किल था बेंगलूरू के कुछ पत्रकारों से सहयोग की उम्मीद की लेकिन सफल नहीं हो पाया। आखिर किसी तरह उनका नंबर मिला और फिर शुरू हुआ उनसे इंटरव्यू का समय लेने का सिलसिला। उन्होंने पहली बार में ही मना कर दिया और कहा कि मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता। मैंने उनसे कहा मैं इस विषय पर कुछ लिख रहा हूं फिर एक लंबी अनौपचारिक बात हुई उन्होंने अगले दिन का समय दिया। इसके बाद की कहानी लंबी है क्यूंकि अगले चार-पांच दिनों तक उन्होंने समय नहीं दिया। आज बेंगलूरू के अपने सहयोगी कैमरामैंन दिनेश को उनके पास भेजा और उन्होंने मुझसे फोन पर कहा.. Praveen you finally caught me. ये बात मेरे लिए राहत की खबर थी इसके बाद उनसे इंटरव्यू की शुरूआत हुआ।
 Mr. B. M. Mohan, Former Director, FSL, Karnataka 
सिमी के कुछ आतंकियों का नार्को करते हुए समझौता और मालेगांव धमाकों पर उन्हें महत्वपूर्ण जानकारियां मिली थी। बी एम मोहन का दावा है कि इन जानकारियों के आधार पर यदि जांच एजेंसियां सबूत जुटाती तो आतंकी धमाकों की कहानी कुछ और होती। उनका कहना है कि नार्को, ब्रेन मैपिंग, लाइ डिटेक्टर तीनों ही टेस्ट में इन आतंकियों ने समझौता और मालेगांव मे हाथ होने की बात स्वीकार की थी। इन लोगों ने सफदर नागौरी के द्वारा इस पूरी साजिश का खाका तैयार किए जाने की बात भी कही थी। इस पूछताछ में जो सबसे महत्वपूर्ण बात सामने निकल कर आई थी वो ये कि इस मामले की फंडिंग किसने की थी। दरअसल एनआईए की पूरी थ्योरी की सबसे कमजोर कड़ी उसकी फंडिंग के मोर्चे पर कोई खुलासा नहीं कर पाना है। एनआईए की थ्योरी में कहीं इस बात का जिक्र नहीं है कि पैसा कहां से आया था। जबकि ऐसा लगता है कि इसका खुलासा बीएम मोहन के नेतृत्व में हुए इस नार्को में बहुत पहले ही हो गया था।
जिन तीन लोगो का नार्को किया गया था उन सभी के नाम तो अब बीएम मोहन साहब को याद नहीं लेकिन उनका कहना है एक का नाम कमरूद्दीन था। ये सभी सिमी से जुड़े हुए थे और इन्होंने सभी धमाकों में सिमी की साजिश के बारे में विस्तार से बताया था। राहिल नाम के पाकिस्तानी मूल के लंदन में रहने वाले शख्स ने इन धमाकों की फंडिंग की थी। बीएम मोहन ने कहा कि मैंने इस नार्को को सुपरवाईज किया था। तीन चार अहम बातें सामने आई थी। पहली ये कि समझौता और मालेगांव मे सिमी का हाथ है और बम प्लांट करने की बात इन लोगों ने स्वीकार की। इन लोगों ने सफदर नागौरी का नाम भी लिया था जो उस वक्त शायद नागपुर में था। इंदौर के कटारिया बाजार की एक दुकान से सूटकेस खरीदने की बात को भी स्वीकार किया था। इन्हीं सूटकेसों में विस्फोटक रखा गया था जो समझौता ब्लास्ट में इस्तेमाल हुआ था। गौर करने वाली बात ये है कि सूटकेस की थ्योरी एनआईए ने भी रखी लेकिन उसे खरीदने और बम प्लांट करने के मामले में एनआईए की थ्योरी पर पुख्ता सबूत नहीं होने की बात बचाव पक्ष के वकीलों द्वारा कही गई। सिमी के आतंकियों ने इस नार्को के दौरान समझौता के अलावा मालेगांव और हैदराबाद धमाकों की बात भी स्वीकार की थी।
मुझे इस बात की खुशी थी कि अब कई ऐसी आवाजें सामने आ रही है जो पहले किसी अप्रत्याशित डर से खामोश थीं। हांलाकि बी एम मोहन अब इस मामले पर ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहते हैं। उनका कहना है एनआईए की नई थ्योरी उनके इसके नार्को के बहुत बाद में सामने आई इसीलिए वो इस पर टिप्पणी नहीं करेंगे। लेकिन उन्होंने ये जरूर कहा कि यदि उनके द्वारा नार्को टेस्ट के दौरान निकाली गई जानकारियों को जांच के बाद सबूतों में बदला जाता तो इस मामले की तस्वीर कुछ और ही होती है। अब देखना ये होगा कि एनआईए कि तरफ से साध्वी प्रज्ञा को भी क्लीन चिट मिलने के बाद आखिर इन धमाकों के असली गुनहगार कब सामने आएंगे।

गौरतलब है कि ये नारको टेस्ट दूसरे मालेगांव धमाकों से पहले हुआ था जिसमें प्रज्ञा ठाकुर को आरोपी बनाया गया था लेकिन ये पहले मालेगांव धमाके और समझौता ब्लास्ट के बाद हुआ था। समझौता ब्लास्ट मे सूट केस की जो थ्योरी एनआईए ने दी उससे कहीं पहले इस नारको में विस्फोटक और सूटकेस खरीदने का सच सामने आ चुका था।

CLEAN CHIT TO SHADVI PRAGYA BY NIA LIVE

साध्वी प्रज्ञा को क्लीन चिट, भगवा आतंक की थ्योरी के झूठ का एक और सबूत!


साध्वी प्रज्ञा को भी क्लीनचिट दिए जाने की खबर आ गई है अब ये बहुत हद तक साफ होता जा रहा है कि एनआईए की जांच में कई खामियां रही हैं। अपनी ही थ्योरी पर अब ये कहना की पुख्ता सबूत नहीं है ये जताता है कि इस थ्योरी में कई और कमियां सामने आएंगी। सबसे पहले मैंने अपने एनआईए सूत्रों से इस खबर को कन्फर्म किया। कई ऐसे साथी जो खुद भी जांच पड़ताल की कमियों पर पहले भी बोलते रहे हैं, का कहना था कि साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत पहले ही नहीं थे। एक बाइक के आधार पर उनके खिलाफ सभी आरोप लगाए गए थे। साध्वी प्रज्ञा ने गुस्से में अलग अलग मौकों पर क्या कहा इसी आधार पर उनके खिलाफ धमाकों की साजिश रचने की बात कही गई है। पहले दर्ज की गई चार्ज शीट में एक जगह ये भी कहा गया कि साध्वी प्रज्ञा की बहन से पूछताछ हुई थी। इस पूछताछ में उन्होंने धमाकों के बाद टीवी पर चल रही खबरों पर साध्वी प्रज्ञा की प्रतिक्रिया के बारे में बताया। लोगों की लाश देखकर साध्वी की बहन की आंखों में आंसू आ गए लेकिन साध्वी ने कहा की जो जैसा बोएगा वैसा काटेगा। इसी तरह अलग अलग मौकों पर किसी के सामने साध्वी ने कुछ कहा के आधार पर ये पूरी चार्ज शीट लिखी गई। इस चार्ज शीट में साध्वी प्रज्ञा के उग्र भाषणों का जिक्र किया गया। ये बातें तो लोग जानते हैं जो नहीं जानते वो ये कि इस पूरी जांच पड़ताल के दौरान साध्वी प्रज्ञा पर क्या बीती?
साध्वी प्रज्ञा के इकबालिया बयान को आधार बनाया गया। वहीं मानवाधिकार आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक साध्वी प्रज्ञा ने ये कहा कि उनके साथ जांच के दौरान निर्ममता की सारी हदें पार कर दी गईं। इस खबर के सामने आने के बाद मैंने साध्वी प्रज्ञा के वकील जे. पी. शर्मा से बात की। उन्होंने कहा हम पहले से ही जानते थे कि इस मामले में साध्वी प्रज्ञा को क्लीन चिट मिलेगी। साथ ही उन्होंने वो आप बीती भी बताई जो खुद साध्वी प्रज्ञा ने उन्हें सुनाई थी। साध्वी ने उनसे कहा था कि उनके साथ पूछताछ में अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। उन्हें एक खंभे से बांधकर पीटा गया। उनके शिष्यों के हाथों उन्हें चमड़े के बेल्ट से पिटवाया गया। उनके भगवा वस्त्रों को उतारकर उन्हें जबरदस्ती दूसरे कपड़े पहनाए गए। उन्होंने तो यहां तक कहा कि वो भगवा वस्त्रों में बेहोश हुई और दूसरे कपड़ों में होश में आई। साध्वी प्रज्ञा की आपबीती वहीं जानती हैं लेकिन अब कई गवाहों के अपने बयानों से पलटने के बाद ये बात साफ हो गई है कि बयान दर्ज करवाने के लिए ज्यादतियां तो की गई हैं।

अब एनआईए खुद कह रही है कि उनके खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं ऐसे में एक बार फिर ये सवाल गहरा रहा है कि क्या भगवा आतंकवाद का हौव्वा बनाने के लिए इस पूरे मामले को तूल दिया गया? सबसे अहम सवाल ये भी है कि बिना सबूतों के साध्वी प्रज्ञा पर अब तक हुए अत्याचारों का जिम्मेदार कौन है? इस बीच मेरी बातचीत कर्नाटक एफएसएल के पूर्व प्रमुख बी एम मोहन साहब से भी हुई उन्होने फिर दोहराया कि नागौरी भाईयों ने अपने नार्को टेस्ट में समझौता और मालेगांव धमाकों की बात स्वीकार की थी। नार्को की बातचीत कितनी बड़ी सबूत हो सकती है के जवाब में उन्होंने कहा कि ये बहुत अहम होती है यदि इसके आधार पर सबूत जुटाए जाएं तो। यानि जो बातें नार्को में कही गई उसके आधार पर यदि सबूत जुटाए जाते तो शायद कुछ और जानकारियां आ सकती थी। खैर अभी ये कहना मुश्किल है कि कौन से थ्योरी सच है और कौन सी झूठ लेकिन एक एक कर एनआईए की थ्योरी के किरदारों को क्लीन चिट मिलना इस ओर तो इशारा कर ही रहा है कि जांच में सबकुछ ठीक नहीं था।