EXCLUSIVE- मालेगांव ब्लास्ट की जांच में दो एटीएस
अधिकारियों पर अपराधिक मामला दर्ज
8 साल से मालेगांव धमाके मामले में पूछताछ के लिए
एटीएस के द्वारा उठाया गया इंदौर का दिलीप पाटीदार आज तक नहीं मिला। सीबीआई को इस
मामले की जांच के लिए लगाया गया था। सीबीआई ने हाल ही में इस मामले में अपनी
क्लोजर रिपोर्ट जमा की। इस रिपोर्ट में सीबीआई ने लिखा कि दिलीप पाटीदार को ढूंढ
पाना संभव नहीं है। इंदौर की विशेष सीबीआई कोर्ट ने इस मामले में एटीएस के दो अधिकारियों हनुमंत राव गोरे और राजेंद्र धुले के खिलाफ अपराधिक मामला चलाने का आदेश दिया है। मालेगांव धमाकों के सिलसिले में 10-11 नवंबर 2008 को रात 12 बजे एटीएस महाराष्ट्र के अधिकारियों ने दिलीप पाटीदार को पुछताछ के लिए उठाया था। इसके बाद से दिलीप पाटीदार लापता है। उनके परिवार को शक है कि पुलिस ने जबरदस्ती बयान लेने के चलते जो ज्यादती की उसमें उनकी मौत हो गई। इस बारे मे दिलीप का परिवार पहले भी गुहार लगाता रहा है। मामले सामने आने के बाद सीबीआई जांच करती रही और इस जांच में 8 साल लगा
दिए। इस बीच पाटीदार का परिवार उनके वापिस आने की हर उम्मीद को खो चुका है। वो
इंसाफ चाह रहा है और सीबीआई कोर्ट के इस आदेश ने उन्हें उम्मीद की एक किरण दिखाई।
साध्वी प्रज्ञा के वकील जे. पी. शर्मा ने IBN7 से EXCLUSIVE बातचीत
में ये जानकारी दी।
दिलीप इंदौर के
कनाड़िया रोड पर शांति विहार कॉलोनी में अपनी पत्नि पदमा और बेटे के साथ किराए के
मकान में रहते थए। वो पेशे से एक इलेक्ट्रिशियन थे और मूलतः शाजापुर के दुपाड़ा
गांव के रहने वाले थे। मालेगांव धमाकों में एक के बाद एक गिरफ्तारियां हो रही थी
और 16 अक्टूबर 2008 को शांति विहार कॉलोनी से ही शिवनारायण कलसांगरा, श्याम साहू,
दिलीप नाहर और देवास के धर्मेंद्र बैरागी को हिरासत में लिया गया था। करीब एक
हफ्ते बाद साध्वी प्रज्ञा को ब्लास्ट का आरोपी बताकर गिरफ्तार किया गया। वहीं
साध्वी प्रज्ञा जिन्हें हाल ही में इस मामले में क्लीन चिट दे दी गई और जिनके
द्वारा 8 सालों तक झेली गई यातनाओं का फिलहाल कोई हिसाब करने वाला नहीं। साध्वी के
साथ ही शिवनारायण और श्याम को भी ब्लास्ट का आरोपी बताया गया था। 31 अक्टूबर 2008
की देर रात एटीएस के अधिकारी शिवनारायण को उसके घर ले गए और उसकी लाइसेंसी
रिवॉल्वर को अपने कब्जे में ले लिया। ये सारी कार्रवाई शिवनारायण के किराएदार
दिलीप पाटीदार ने देखा था। इसके अलावा रामचंद्र कलसांगरा के बारे में 29 साल के इस
युवक से एनआईए ने पूछताछ का दावा किया था। दिलीप को उठाए जाने के बाद शिवनारायण के
पिता गोपालसिंह ने खजराना थाने में एटीएस अफसरों के खिलाफ गहने चोरी की रिपोर्ट के
लिए आवेदन दिया था। दिलीप और शिवनारायण के परिवार वालों ने आरोप लगाया था कि इस
मामले में एटीएस के अधिकारी फंस सकते थे इसीलिए उन्होंने जबरदस्ती दिलीप को उठाया।
एटीएस ने दावा किया कि
दिलीप को वापस इंदौर भेज दिया गया था लेकिन उसके परिवार ने बताया कि वो कभी घर आया
ही नहीं। उन्हें शक ही नहीं अब यकीन हो चला है कि वो शायद इस दुनिया में है ही
नहीं। ये मामला सिर्फ दिलीप के गायब होने तक ही सीमित नहीं है। ये एटीएस की उस समय
पर चल रही पूरी कार्रवाई पर सवाल खड़े करता है। सीबीआई जैसी तेज तर्रार संस्था
क्लोजर रिपोर्ट में दिलीप को ढूंढने में खुद को नाकाम बताती है। हांलाकि इस
रिपोर्ट ने एटीएस के कुछ अधिकारियों को संदेह के घेरे में खड़ा किया था। दिलीप को
एटीएस द्वारा उठाया जाना और फिर उसका गायब हो जाना ये भी बता रहा है कि उस वक्त के
जांच अधिकारी किस तरह बेलगाम थे। इसी मामले में लेकेश शर्मा और धनसिंह को भी
गिरफ्तार किया गया था लेकिन पर्याप्त सबूत नहीं होने की वजह से न चालान पेश किया
गया और न ही इनकी जांच एनआईए को सौंपी गई। एटीएस ने जो जांच की वो सवालों के घेरे
में है ही और कई गवाहों द्वारा एनआईए द्वारा की गई ज्यादतियों के आरोपों ने भी इस
मामले को और गंभीर बना दिया है। अब तस्वीर साफ होती जा रही है कि इस मामले की जांच
किसी खास मकसद से हो रही थी लेकिन इसकी हकीकत तभी सामने आएगी जब वो चेहरे बेनकाबू
होंगे जिनके इशारे पर ये सब हुआ।
कितना गहरा षड्यंत्र रचा था कोंग्रेस ने और कितने सारे सरकारी अधिकारी साथ दे रहे थे उसका
जवाब देंहटाएंअपराधिक और सामाजिक गुनाह