पिछले कई दिनों से एक शख्स से बात करने का मन था।
मेरा ऐसा मानना है जिम्मेदार पद पर बैठे किसी शख्स के पास भगवा आतंकवाद के झूठ के
खिलाफ विश्वसनीय जानकारी है तो वो हैं बी एम मोहन। बी एम मोहन FSL कर्नाटक के
डायरेक्टर रह चुके हैं। कई अहम नारको टेस्ट उनके कार्यकाल में हुए है। बी एम मोहन
तक पहुंचना बहुत मुश्किल था बेंगलूरू के कुछ पत्रकारों से सहयोग की उम्मीद की
लेकिन सफल नहीं हो पाया। आखिर किसी तरह उनका नंबर मिला और फिर शुरू हुआ उनसे
इंटरव्यू का समय लेने का सिलसिला। उन्होंने पहली बार में ही मना कर दिया और कहा कि
मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता। मैंने उनसे कहा मैं इस विषय पर कुछ लिख रहा हूं
फिर एक लंबी अनौपचारिक बात हुई उन्होंने अगले दिन का समय दिया। इसके बाद की कहानी
लंबी है क्यूंकि अगले चार-पांच दिनों तक उन्होंने समय नहीं दिया। आज बेंगलूरू के
अपने सहयोगी कैमरामैंन दिनेश को उनके पास भेजा और उन्होंने मुझसे फोन पर कहा.. Praveen
you finally caught me. ये बात मेरे लिए राहत की खबर थी इसके बाद उनसे इंटरव्यू की शुरूआत
हुआ।
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Mr. B. M. Mohan, Former Director, FSL, Karnataka |
सिमी के कुछ आतंकियों का नार्को करते हुए समझौता
और मालेगांव धमाकों पर उन्हें महत्वपूर्ण जानकारियां मिली थी। बी एम मोहन का दावा
है कि इन जानकारियों के आधार पर यदि जांच एजेंसियां सबूत जुटाती तो आतंकी धमाकों
की कहानी कुछ और होती। उनका कहना है कि नार्को, ब्रेन मैपिंग, लाइ डिटेक्टर तीनों
ही टेस्ट में इन आतंकियों ने समझौता और मालेगांव मे हाथ होने की बात स्वीकार की थी।
इन लोगों ने सफदर नागौरी के द्वारा इस पूरी साजिश का खाका तैयार किए जाने की बात
भी कही थी। इस पूछताछ में जो सबसे महत्वपूर्ण बात सामने निकल कर आई थी वो ये कि इस
मामले की फंडिंग किसने की थी। दरअसल एनआईए की पूरी थ्योरी की सबसे कमजोर कड़ी उसकी
फंडिंग के मोर्चे पर कोई खुलासा नहीं कर पाना है। एनआईए की थ्योरी में कहीं इस बात
का जिक्र नहीं है कि पैसा कहां से आया था। जबकि ऐसा लगता है कि इसका खुलासा बीएम
मोहन के नेतृत्व में हुए इस नार्को में बहुत पहले ही हो गया था।
जिन तीन लोगो का नार्को किया गया था उन सभी के
नाम तो अब बीएम मोहन साहब को याद नहीं लेकिन उनका कहना है एक का नाम कमरूद्दीन था।
ये सभी सिमी से जुड़े हुए थे और इन्होंने सभी धमाकों में सिमी की साजिश के बारे
में विस्तार से बताया था। राहिल नाम के पाकिस्तानी मूल के लंदन में रहने वाले शख्स
ने इन धमाकों की फंडिंग की थी। बीएम मोहन ने कहा कि मैंने इस नार्को को सुपरवाईज
किया था। तीन चार अहम बातें सामने आई थी। पहली ये कि समझौता और मालेगांव मे सिमी
का हाथ है और बम प्लांट करने की बात इन लोगों ने स्वीकार की। इन लोगों ने सफदर
नागौरी का नाम भी लिया था जो उस वक्त शायद नागपुर में था। इंदौर के कटारिया बाजार की
एक दुकान से सूटकेस खरीदने की बात को भी स्वीकार किया था। इन्हीं सूटकेसों में
विस्फोटक रखा गया था जो समझौता ब्लास्ट में इस्तेमाल हुआ था। गौर करने वाली बात ये
है कि सूटकेस की थ्योरी एनआईए ने भी रखी लेकिन उसे खरीदने और बम प्लांट करने के
मामले में एनआईए की थ्योरी पर पुख्ता सबूत नहीं होने की बात बचाव पक्ष के वकीलों
द्वारा कही गई। सिमी के आतंकियों ने इस नार्को के दौरान समझौता के अलावा मालेगांव
और हैदराबाद धमाकों की बात भी स्वीकार की थी।
मुझे इस बात की खुशी थी कि अब कई ऐसी आवाजें
सामने आ रही है जो पहले किसी अप्रत्याशित डर से खामोश थीं। हांलाकि बी एम मोहन अब
इस मामले पर ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहते हैं। उनका कहना है एनआईए की नई थ्योरी
उनके इसके नार्को के बहुत बाद में सामने आई इसीलिए वो इस पर टिप्पणी नहीं करेंगे।
लेकिन उन्होंने ये जरूर कहा कि यदि उनके द्वारा नार्को टेस्ट के दौरान निकाली गई
जानकारियों को जांच के बाद सबूतों में बदला जाता तो इस मामले की तस्वीर कुछ और ही
होती है। अब देखना ये होगा कि एनआईए कि तरफ से साध्वी प्रज्ञा को भी क्लीन चिट
मिलने के बाद आखिर इन धमाकों के असली गुनहगार कब सामने आएंगे।
गौरतलब है कि ये नारको टेस्ट दूसरे मालेगांव
धमाकों से पहले हुआ था जिसमें प्रज्ञा ठाकुर को आरोपी बनाया गया था लेकिन ये पहले
मालेगांव धमाके और समझौता ब्लास्ट के बाद हुआ था। समझौता ब्लास्ट मे सूट केस की जो
थ्योरी एनआईए ने दी उससे कहीं पहले इस नारको में विस्फोटक और सूटकेस खरीदने का सच
सामने आ चुका था।
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