शनिवार, 14 मई 2016

मुझे सरकार से न तो पैसे मिले और न ही मैं किसी पार्टी का कार्यकर्ता हूं!

कथित भगवा आतंकवाद के मुद्दे पर लिखने के साथ ही मुझे मोदी सरकार की रखैल जैसी गालियां तक सुनने को मिल रही हैं। ये गालियां निजी तौर पर नहीं बल्कि देश दुनिया की प्रतिष्ठित वेबसाइट्स ibnkhabar.com जैसी वेबसाइट के सार्वजिनक मंच पर सुनने को मिल रही हैं। कुछ लोगों ने मेरे लेखों पर ये आरोप भी लगाया कि मुझे सरकार की तरफ से ये काम करने के लिए पैसे मिले हैं? पहले तो ये सब पढ़कर थोड़ा सकपकाया लेकिन फिर बाद में ये सब पढ़कर खुद ब खुद एक मुस्कुराहट चेहरे पर आ गई। कौन हैं ये लोग जो गालियां बकते हैंजब इस तरह कि कोई बात आती है तो राजनैतिक कार्यकर्ता और खास तौर पर वो जो वैचारिक कार्यकर्ता होते हैं ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं। मेरा मन किया ऐसी टिप्पणियों पर कड़ी प्रतिक्रिया दूं। ठीक वैसा ही मनोभाव था जैसा अपमान के बाद होना चाहिए लेकिन फिर नजर नीचे ऐसी टिप्पणियों का जवाब देने वालों पर भी गई। उन्हें पढ़कर राहत मिली लेकिन मन में एक सवाल भी खड़ा हो गया। किसी एक राजनैतिक दल के कार्यकर्ताओं की सहानुभूति और अन्य दल के आक्रामक शब्द धीरे धीरे मुझे सचमुच इस पूरे मामले में एक पार्टी विशेष का ही व्यक्ति बना देंगे।

मैं एक शोधार्थी हूं। अपने किसी भी प्रोजेक्ट के लिए कड़ी मेहनत करता हूं। लेखन की विश्वसनियता बनाए रखने के लिए खुद इंटरव्यूज करता हूं और उन्हीं बातों को लिखता हूं जो मेरे विवेक से मुझे सत्य मालू पड़ती हैं। भगवा आतंकवाद के मुद्दे को मेरी निजी मान्यताओं और धर्म से भी जोड़े जाने का खतरा बना ही रहता है लेकिन ऐसे किसी डर की वजह से भी सच को सच न लिखना एक अपराधबोध ही देता है। कथित भगवा आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर लिखने की वजह है मेरा इस विषय पर किया गया अब तक का शोध। ये इस विषय में मेरी दिलचस्पी ही थी जो मैंने बीएम मोहन जैसे शख्स का संपर्क सूत्र बड़ी मुश्किल से ढूंढा। ये नाम इस मामले की सबसे महत्वपूर्ण कड़ियों में से एक लेकिन अब तक कई लोग इनसे अन्जान हैं। नार्को, लाइ डिटेक्टर और ब्रेन मैपिंग तीनों ही टेस्ट करने के बाद इन्होंने सिमी आतंकियों के समझौता ब्लास्ट कबूलनामे की बात कही थी।
उनकी इन जानकारियों के आधार पर यदि जांच की जाती तो शायद इस पूरे मामले की एक अलग थ्योरी हमारे सामने हो सकती थी। खैर बात सिर्फ बीएम मोहन के दावों की नहीं है यदि किसी ने एनआईए की चार्जशीट को पढ़ने की जेहमत उठायी होती तो यहां सुनी सुनाई बातों या दिमाग में बैठी राजनैतिक और धार्मिक मान्यताओँ के आधार पर टिप्पणियां नहीं कर रहे होते। वे इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि इस पूरे मामले में षड़यंत्रकारियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं ही नहीं। साथ ही इसका पूरा आधार सिर्फ और सिर्फ बयान ही हैं। कहानी भी एक ऐसे शख्स के इर्द गिर्द बुनी गई जो अब इस दुनिया में है ही नहीं। सुनील जोशी को ही हर किसी के बीच की कड़ी बनाया गया और इस शख्स की ये जांच एनआईए को जाने से पहले ही हत्या कर दी गई थी। मैं इस विषय पर इसीलिए लिख रहा हूं क्यूंकि इस विषय के शोधार्धी के तौर पर ये बात मेरे सामने बहुत स्पष्ट रूप से सामने आ रही है कि इस मामले की जांच कहीं न कहीं राजनीति से प्रेरित हो सकती है। इसका ताजा सबूत अब एनआईए का सबूतों के अभाव में साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित को क्लीन चिट देना भी है। 

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