जीवन में परिश्रम पर बहुत जोर दिया जाता है लेकिन
जीवन का रस और अनंत आनंद तो विश्राम में है। विश्राम और आलस्य में फर्क करना आना
चाहिए। आलस्य जहां कमजोर और विसादग्रस्त बनाता है वहीं विश्राम शक्तिशाली और
आनंदपूर्ण बनाता है। किसी कार्य को करते वक्त श्रम किया जाता है लेकिन उसके बाद
उससे होने वाली प्राप्ति उसकी सफलता असफलता का चिंतन आदि में व्यर्थ परिश्रम किया
जाता है। कार्य के संपादन के बाद यही विश्राम का समय होता है। जिन्हें विश्राम की
कला आती है वे ज्यादा श्रमी होते हैं क्यूंकि उनके श्रम का शत-प्रतिशत इस्तेमाल
किसी कार्य के संपादन में होता है। आमतौर पर यही देखने में आता है कि हमारे जीवन
में ज्यादातर श्रम बेकार का है क्यूंकि हम उन बातों के विषय में चिंतन करते हैं
जिनका सचमुच उस कार्य से कोई लेना देना नहीं होता है। किसी छात्र के लिए परीक्षा
में किस तरह के प्रश्न आएंगे, वो पास होगा या फैल, अगर फैल हुआ तो क्या होगा आदि
इत्यादि जैसे सवाल व्यर्थ हैं। विवेकपूर्ण तरीकें से ये छात्र विचार करें तो
उन्हें भी अनुभव होगा कि परीक्षा की तैयारी में कम श्रम और इस व्यर्थ चिंतन में
अधिक परिश्रम लगता है। अगर तैयारी के श्रम के साथ विश्राम को अपनाया जाए तो अधिक
संभावनाशील परिणाम आने निश्चित हैं। प्रश्न ये उठता है कि आखिर विश्राम कैसे करें?
बढ़ी दिलचस्प बात ये
है कि कुछ नहीं करने को तो ही विश्राम कहते हैं। दरअसल शारीरिक श्रम तो कुछ नहीं,
आपको थकाने वाला असली श्रम मानसिक है। हम सभी जानते हैं और अनुभव करते है कि शांत
मन और मस्तिष्क शरीर को भी ऊर्जा से भरे रखता है। मन का तेज घोड़ा कुछ-कुछ देर में
हमें घसीटता हुआ कहां से कहां ले जाता है। घसीटे जाने में जो कुछ होता है वो सब
आपके साथ इस प्रक्रिया में होता है। आपकी दिशा, नियंत्रण, सुरक्षा कुछ भी आपके हाथ
में नहीं होती। सबसे अहम बात ये कि आप न चाहते हुए भी परिश्रम करते हैं, थकते हैं,
चोटिल होते हैं। क्यूंकि ये शारीरिक श्रम नहीं है इसीलिए चोटें भी बाहर महसूस नहीं
होंगी। अंदर की चोटें महसूस तो होती हैं लेकिन कभी समझ नहीं पाते ये क्यूं है किस
वजह से है। ये बेवजह के परिश्रम से है जो मन का घोड़ा आपसे करवाता है। विचारों से
मन बनता है। आपके अनुभव, जीवन की घटनाएं, चाहतें आदि आपके मन को संचालित करते हैं।
विचार के संस्कार इन्हीं से आते हैं। मन चंचल है इसीलिए अपनी जगह बीते कल और आने
वाले कल तक बनाता है। हम वर्तमान विचारों को इन्हीं के आधार पर कहीं के कहीं ले
जाते हैं। पुरानी असफलताएं और भय हमें नए प्रयासों में भी डरा कर रखते हैं। इतना
भर जान लेने से कि मन आपके अधीन है आप उसके अधीन नहीं, विचार आपके अधीन है आप उनके
अधीन नहीं विश्राम की ओर कदम बढ़ जाते हैं। जब विचार वर्तमान में स्थिर होते हैं
तो आप विश्राम में होते हैं। कभी अपनी सांसों, इर्दगिर्द की आवाजों, खुशबुओं,
दृश्यों आदि को निर्विचारता के साथ अनुभव कीजिए। उनकी समीक्षा मत कीजिए, कोई निर्णय
मत बनाइए बस देखिए, सुनिए और महसूस कीजिए। ये विश्राम की ओर पहला कदम होगा। इसका
अभ्यास जैसे जैसे बढ़ता जाएगा विश्राम की स्थिरता आती जाएगी। विश्राम ऊर्जा को सही
दिशा देता है और जब श्रम की आवश्यक्ता होती है तो वो पूरी तरह से कार्यसिद्धि में
लगता है। हमेशा याद रखिए जो विश्राम में है उनका श्रम अवश्य ही सुंदर सृजन करता
है।
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