गुरुवार, 16 अक्टूबर 2014

सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग!


एक सज्जन बाल झड़ने से बहुत परेशान थे। किसी की सलाह पर एक आयुर्वेदाचार्य के पास गए। वेद जी आयुर्वेद तो जानते ही थे तत्व ज्ञानी भी थी। वे मन और शरीर दोनों के इलाज में विश्वास करते थे। पीड़ित ने कहा वेद जी कोई ऐसा उपाय कीजिए कि बाल न झड़े। वेद जी ने पूछा बाल तो एक दिन जाने ही हैं फिर इनकी इतनी चिंता क्यूं करते हो। उस व्यक्ति ने कहा बाल झड़ गए तो लोग क्या सोचेंगे, मैं बड़ा ही बदसूरत दिखने लगूंगा। वेद जी ने कहा और बाल रहे तब क्या कर गुजरोगे। वो कुछ देर चुप रहा फिर बोला आत्मविश्वास बढ़ता है। वेद जी ने कहा मेरे पास दवा तो है और इतनी असरदार कि इस दवा से बाल झड़ना रुकेंगे भी और नए बाल भी आ जाएंगे पर परेशानी ये है कि तुम्हारी नेत्र ज्योति पर इसका बुरा असर पड़ेगा। उस व्यक्ति ने क्षण भर विचार किया और हां कह दिया। उसने कहा मैं भले ही साफ न देख पाउं लेकिन लोग तो मुझे देख पाएंगे। वेद जी समझ गए कि जब इसे बाह्य दृष्टि की ही कीमत नहीं तो ये अंतर्दृष्टि क्या समझ पाएगा। लगता है ना ये शख्स एक मूर्ख के समान। अगर हां तब तो आप बाह्यदृष्टि की कीमत करते हैं और सत्य की खोज में आगे बढ़ने को तैयार है और नहीं तो आप भी दूसरों की दृष्टि में आप कैसे और क्या हैं को ही महत्व दीजिए।
ये कहानी बेशक बहुत हास्यापद लगे लेकिन भूलवश हम जीवन में कई ऐसे ही काम किए चले जा रहे हैं। आपको बालों की नहीं तो गाड़ी, घर, पद आदि जाने कितनी बातों की असत पीड़ा होगी। फिर इस सबके मूल में भी दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं का ही चिंतन रहता है। एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ का स्तर बहुत गिरा हुआ है। प्रतिस्पर्धा उन्नति के लिए हो तो रचनात्मक होता है लेकिन मूर्खतापूर्ण हो तो विनाशकारी है। आप किसी से ज्यादा वैभवपूर्ण दिखे, किसी से ज्यादा सुंदर दिखे, ज्याद बड़ा घर लें जैसी बातों के मूल में क्या है? कभी विचार किया? इस सबके मूल में भेद है। मैं और मेरा को महत्व देना मनुष्य को आत्ममुग्ध और स्वार्थी बना देता है। हम अपनी सीमित दुनिया बनाकर उसी को दिन रात सजाने संवारने में जुटे रहते हैं। उस बाल झड़ने वाले की बात तो हमें मूर्खता लगेगी लेकिन अपने जीवन में दूसरों को दिखाने के लिए दिन रात गधा हम्माली करना हमें समझदार लगती है। इसकी बड़ी वजह ये है कि जब सभी मूर्खता करते हैं तो भीड़ मूर्खता को ही समझदारी मानने लगती है। ये मूर्खता इसीलिए है क्यूंकि हम अगर झूठे वैभव और झूठी सुंदरता में ही लगे रहेंगे तो सच्चे वैभव और सच्ची सुंदरता का क्या होगा?

महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, अलबर्ट आइंस्टाइन ये सब अपने बालों के बारे में या धन दौलत, वैभव के बारे में सोचते तो क्या होता? जवाब साफ है ये सब वो नहीं होते जिनके लिए दुनिया इन्हें सलाम करती है। इनकी तस्वीरें भर घर में टांग देने से बात नहीं बनेगी। एक युवक ने इस पर जवाब दिया सब तो इनकी तरह नहीं बन सकते। हां बात सच है लेकिन थोड़ा सुधार है। सब इनकी तरह बन सकते हैं लेकिन सब इनकी तरह बन सकने को सत्य मानते ही नहीं। फिर कहा ये भी जा सकता नहीं हम तो छोटे लक्ष्यों के साथ अपनी जिंदगी को ज्यादातर लोगों की तरह जीना ही बेहतर मानते हैं। कोई रोक नहीं आप ऐसे भी जी सकते हैं बस जीवन में कभी कोई शिकवा मत करना क्यूंकि ये आपकी अपनी पसंद है।

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